Thursday, October 01, 2015

संतान प्राप्ति के नियम और उपाय - Progeny of the rules and measures

आदि काल से ऋषियों ने पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और संयम आदि निर्धारित किये थे -जिस प्रकार प्रथ्वी पर उत्पत्ति और विनाश का क्रम हमेशा से चलता रहा है और आगे भी ये नियमित है -उसी प्रकार इस क्रम में जड़-चेतन का जन्म होता है -फिर उसका पालन होता है -पश्चात विनाश -





जीवन में हर दम्पति की अभिलाषा होती है कि उसकी कम से कम एक संतान अवश्य हो -



जिस प्रकार धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा-


इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा -


इनमे से अधिकांश औषधियों का चयन प्राचीन ग्रंथो से किया गया हैं और वैद्यों एवं प्रयोगकर्ता इन्हें पूर्ण सफल और अनुभव सिद्ध भी मानते हैं | कुछ मंत्रो के विधान से भी और निष्ठां पूर्वक किया गया ब्रत भी फलदायी होता है -


कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए -जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .


चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।


यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता(रोग ) को प्राप्त होता है. पांचवी रात्रि से संतान उत्पन्न करने की विधि करनी चाहिए .


इस समय में पुरूष का दायां एवम स्त्री का बांया स्वर ही चलना चाहिये, यह अत्यंत अनुभूत और अचूक उपाय है जो खाली नही जाता. इसमे ध्यान देने वाली बात यह है कि पुरुष का जब दाहिना स्वर चलता है तब उसका दाहिना अंडकोशः अधिक मात्रा में शुक्राणुओं का विसर्जन करता है जिससे कि अधिक मात्रा में पुल्लिग शुक्राणु निकलते हैं. अत: पुत्र ही उत्पन्न होता है.


यदि पति पत्नि संतान प्राप्ति के इच्छुक ना हों और सहवास करना ही चाहें तो मासिक धर्म के अठारहवें दिन से पुन: मासिक धर्म आने तक के समय में सहवास कर सकते हैं, इस काल में गर्भाधान की  संभावना नही के बराबर होती है.


चार मास का गर्भ हो जाने के पश्चात दंपति को सहवास नही करना चाहिये. अगर इसके बाद भी संभोग रत होते हैं तो भावी संतान अपंग और रोगी पैदा होने का खतरा बना रहता है. इस काल के बाद माता को पवित्र और सुख शांति के साथ देव आराधन और वीरोचित साहित्य के पठन पाठन में मन लगाना चाहिये. इसका गर्भस्थ शिशि पर अत्यंत प्रभावकारी असर पदता है-

अगर दंपति की जन्मकुंडली के दोषों से संतान प्राप्त होने में दिक्कत आरही हो तो बाधा दूर करने के लिये संतान गोपाल के सवा लाख जप करने चाहिये. यदि संतान मे सूर्य बाधा कारक बन रहा हो तो हरिवंश पुराण का श्रवण करें, राहु बाधक हो तो क्न्यादान से, केतु बाधक हो तो गोदान से, शनि या अमंगल बाधक बन रहे हों तो रूद्राभिषेक से संतान प्राप्ति में आने वाली बाधायें दूर की जा सकती हैं.


सहवास की कुछ राते :-




मासिक स्राव रुकने से अंतिम दिन (ऋतुकाल) के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।


* चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।


* पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।


* छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।


* सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।


* आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।


* नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।


* दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।


* ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।


* बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।


* तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।


* चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।


* पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।


* सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।


पुरातन काल के लोग उपरोक्त नियम -संयम से संतान-उत्त्पति किया करते थे -


सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एम दम से नहीं उठना चाहिए।


वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे प्रमुख दोष बताये गए है जिनके कारण संतान की प्राप्ति नहीं होती या वंश वृद्धि रुक जाती है | इस समस्या के पीछे की वास्तविकता-क्या है इसका शास्त्रीय और ज्योतिषीय आधार क्या है ये आप अपनी जन्म कुंडली के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सकते है -इसके लिए आप हरिवंश पुराण का पाठ या संतान गोपाल मंत्र का जाप करे


पति-पत्नी दोनों सुबह स्नान कर पूरी पवित्रता के साथ इस मंत्र का जप तुलसी की माला से करें।

संतान प्राप्ति गोपाल मन्त्र :-




" ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ।"


इस मंत्र का बार रोज 108 जाप करे और मंत्र जप के बाद भगवान से समर्पित भाव से निरोग, दीर्घजीवी, अच्छे चरित्रवाला, सेहतमंद पुत्र की कामना करें।


अपने कमरे में श्री कृष्ण भगवान की बाल रूप की फोटो लगाये या लड्डू गोपाल को रोज माखन मिसरी की भोग अर्पण करे.


कई बार प्रायः देखने में आया है की विवाह के वर्षो बाद भी गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है, ज्योतिष में इस समस्या या दोष का एक प्रमुख कारण पति या पत्नी की कुंडली में संतान दोष अथवा पितृ दोष हो सकता है या घर का वास्तुदोष भी होता है, जिसके कारण गर्भ धारण नहीं हो पाता या बार-बार गर्भपात हो जाता है-

पुत्र-प्राप्ति गणपति मन्त्र:-



श्री गणपति की मूर्ति पर संतान प्राप्ति की इच्छुक महिला प्रतिदिन स्नानादि से निवृत होकर एक माह तक बिल्ब फल चढ़ाकर इस मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जपने से संतान प्राप्ति होती है।

 'ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नम:'

पुत्र-प्राप्ति शीतला-षष्ठी ब्रत:-



माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे 'बासियौरा' नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।

शीतला-षष्ठी व्रत-कथा :-



एक ब्राह्मण के सात बेटे थे। उन सबका विवाह हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के बेटों को कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी को पुत्र-वधुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने का उपदेश दिया। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई।


एक बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। भोजना ताजा खाया और बहुओं से भी वैसा करवाया। उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा। वह चौंक पड़ी। उसने अपने पति को जगाया; पर वह तो तब तक मर चुका था। ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी। जब वह अपने पुत्रों तथा बधुओं की ओर बढ़ी तो क्या देखती है कि वे भी मरे पड़े हैं। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी। पड़ोसी जाग गये। उसे पड़ोसियों ने बताया- ''ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से हुआ है।'' ऐसा सुनते ही ब्राह्मणी पागल हो गई। रोती-चिल्लाती वन की ओर चल दी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी। पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी उसी के कारण दुखी है। वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। ब्राह्मणी ने तुरन्त दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। उसकी ज्वाला शांत हो गई। शरीर स्वस्थ होकर शीतल हो गया।


ब्राह्मणी को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ। वह बार-बार क्षमा मांगने लगी। उसने अपने परिवार के मृतकों को जीवित करने की विनती की। शीतला माता ने प्रसन्न होकर मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ। ऐसी मान्यता है।

पुत्र-प्राप्ति -अहोई-अष्टमी ब्रत:-


कार्तिक माह में कश्ष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्रवती स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं। संध्या समय दीवार पर आठ कानों वाली एक पुतली अंकित की जाती है। जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूडयां रखकर उन पर थोडा-थोडा हलवा रखें। इसके साथ ही एक साडी ब्लाउज उस पर सामर्थ्यानुसार रुपए रखकर थाली के चारों ओर हाथ फेरकर श्रद्धापूर्वक सास के पांव छूकर वह सभी सामान सास को दे दें। हलवा पूरी लोगों को बांटें। पुतली के पास ही स्याऊ माता व उसके बच्चे बनाए जाते हैं। इस दिन शाम को चंद्रमा को अर्ध्य देकर कच्चा भोजन खाया जाता है तथा यह कथा पढी जाती है-

अहोई अष्टमी कथा :-



ननद-भाभी एक दिन मिट्टी खोदने गई। मिट्टी खोदते-खोदते ननद ने गलती से स्याऊ माता का घर खोद दिया। इससे स्याऊ माता के अण्डे टूट गये व बच्चे कुचले गये। स्याऊ माता ने जब अपने घर व बच्चों की दुर्दशा देखी तो क्रोधित होकर ननद से बोली कि तुमने मेरे बच्चों को कुचला है। मैं तुम्हारे पति व बच्चों को खा जाउंगी।

स्याऊ माता को क्रोधित देख ननद तो डर गई। पर भाभी स्याऊ माता के आगे हाथ जोडकर विनती करने लगी तथा ननद की सजा स्वयं सहने को तैयार हो गई। स्याऊ माता बोलीं कि मैं तेरी कोख व मांग दोनों हरूंगी। इस पर भाभी बोली कि मां तेरा इतना कहना मानो कोख चाहे हर लो पर मेरी मांग न हरना। स्याऊ माता मान गईं।

समय बीतता गया। भाभी के बच्चा पैदा हुआ और शर्त के अनुसार भाभी ने अपनी पहली संतान स्याऊ माता को दे दी। वह छह पुत्रों की मां बनकर भी निपूती ही रही। जब सातवीं संतान होने का समय आया तो एक पडोसन ने उसे सलाह दी कि अब स्याऊ मां के पैर छू लेना, फिर बातों के दौरान बच्चे को रुला देना। जब स्याऊ मां पूछे कि यह क्यों रो रहा है तो कहना कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। बाली देकर ले जाने लगे तो फिर पांव छू लेना। यदि वे पुत्रवती होने का आर्शीवाद दें तो बच्चे को मत ले जाने देना।


सातवीं संतान हुई। स्याऊ माता उसे लेने आईं। पडोसन की बताई विधि से उसने स्याऊ के आंचल में डाल दिया। बातें करते-करते बच्चे को चुटकी भी काट ली। बालक रोने लगा तो स्याऊ ने उसके रोने का कारण पूछा तो भाभी बोलीं कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। स्याऊ माता ने कान की बाली दे दी। जब चलने लगी तो भाभी ने पुनः पैर छुए, तो स्याऊ माता ने पुत्रवती होने का आर्शीवाद दिया तो भाभी ने स्याऊ माता से अपना बच्चा मांगा और कहने लगीं कि पुत्र के बिना पुत्रवती कैसे....? स्याऊ माता ने अपनी हार मान ली। तथा कहने लगीं कि मुझे तुम्हारे पुत्र नहीं चाहिएं मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रही थी। यह कहकर स्याऊ माता ने अपनी लट फटकारी तो छह पुत्र पश्थ्वी पर आ पडे। माता ने अपने पुत्र पाए तथा स्याऊ भी प्रसन्न मन से घर गईं।

पुत्र-प्राप्ति संतान गणपति-स्त्रोत :-



पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र
नमो स्तु गणनाथाय सिद्धिबुद्धियुताय च ।
सर्वप्रदाय देवाय पुत्रवृद्धिप्रदाय च ।।
गुरूदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते ।
गोप्याय गोपिताशेषभुवना चिदात्मने ।।
विŸवमूलाय भव्याय विŸवसृष्टिकराय ते ।
नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ।।
एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम: ।
प्रपन्नजनपालाय प्रणतार्तिविनाशिने ।।
शरणं भव देवेश संतति सुदृढां कुरू ।
भवष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ।।
ते सर्वे तव पूजार्थे निरता: स्युर्वरो मत: ।
पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्वसिद्धप्रदायकम् ।।


शिव महिमा स्त्रोत से पुत्र प्राप्ति :-



सावन में भगवान पार्थिव लिंग के अभिषेक करना और शिव की प्रसन्नता के लिए शिव स्तुति और स्त्रोत का पाठ करने का विशेष महत्व है। इन स्त्रोतों में शिव महिम्र स्त्रोत सबसे प्रभावी माना जाता है। इस स्त्रोत का पूरा पाठ तो शुभ फल देने वाला है ही, बल्कि यह ऐसा देव स्त्रोत है, जिसका कामना विशेष की पूर्ति के लिए प्रयोग भी निश्चित फल देने वाला होता है। शिव महिम्र स्त्रोत के इन प्रयोगों में एक है - पुत्र प्राप्ति प्रयोग। पुत्र की प्राप्ति दांपत्य जीवन का सबसे बड़ा सुख माना जाता है। इसलिए हर दंपत्ति ईश्वर से पुत्र प्राप्ति की कामना करता है। अनेक नि:संतान दंपत्ति भी पुत्र प्राप्ति के लिए धार्मिक उपाय अपनाते हैं। शास्त्रों में शिव महिम्र स्त्रोत के पाठ से पुत्र प्राप्ति का उपाय बताया है।


प्रयोग-विधि :-



पुत्र प्राप्ति का यह उपाय विशेष तौर पर सावन माह से शुरु करें।


स्त्री और पुरुष दोनों सुबह जल्दी उठे। स्त्री इस दिन उपवास रखे।


पति-पत्नी दोनों साथ मिलकर गेंहू के आटे से 11 पार्थिव लिंग बनाए। पार्थिव लिंग विशेष मिट्टी के बनाए जाते हैं।


पार्थिव लिंग को बनाने के बाद इनका शिव महिम्र स्त्रोत के श्लोकों से पूजा और अभिषेक के ११ पाठ स्वयं करें। अगर ऐसा संभव न हो तो पूजा और अभिषेक के लिए सबसे श्रेष्ठ उपाय है कि यह कर्म किसी विद्वान ब्राह्मण से कराएं। पार्थिव लिंग निर्माण और पूजा भी ब्राह्मण के बताए अनुसार कर सकते हैं।


पार्थिव लिंग के अभिषेक का पवित्र जल पति-पत्नी दोनों पीएं और शिव से पुत्र पाने के लिए प्रार्थना करें।


यह प्रयोग 21 या 41 दिन तक पूरी श्रद्धा और भक्ति से करने पर शिव कृपा से पुत्र जन्म की कामना शीघ्र ही पूरी होती है।


पुत्र-प्राप्ति के अन्य-उपाय :-



यदि कन्या के बाद पुत्र कि कामना हो तो ये प्रयोग करें - उत्पन्न हुई कन्या का विदिवत पूजन करें | उसे नमस्कार करें और बन्धु - बांधवों को खीर एवं जलेबी का भोजन कराए | ऐसा करने से भविष्य में पुत्र अवस्य होता हैं |


जिस स्त्री के पहली संतान लड़का हो, उस लड़के कि नाल जो नि: संतान स्त्री खोलती हैं, वह अवस्य ही पुत्र रत्न से विभूषित होगी |


पीपल का वृक्ष जिस शमी के उपर उग रहा हो, उस वृक्ष के नीचे जाकर पति - पत्नी दोनों अपनी मनोकामना प्रकट करते हुए वृक्ष का स्पर्श व् प्रणाम कर यह संकल्प करे कि " गर्भाधान होने तथा पुंसवन के पश्चात जब पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी, तब 'मुंडन - संस्कार ' यहीं पर आक की छाया में बैठकर कराएगे | इस टोटके को करने से बंध्या स्त्री भी पुत्र - रत्न को प्राप्त कर लेती हैं |


पुष्य नक्षत्र में असगन्ध की जड़ को उखाड़कर गाय के दूध के साथ सिल पर पीसकर पीने से दूध का आहार, ऋतुकाल के उपरांत शुद्ध होने पर पीते रहने से, स्त्री की पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा अवस्य पूरण हो जाती हैं |


पलाश (टेशू) के पांच कोमल पत्ते किसी स्त्री के दूध में पीसे और जो बांझ स्त्री मासिक धर्म के चोथे दिन स्नान करके उसे खा लेगी, वह निश्चय हैं पुत्र की माता बनने का सोभाग्य प्राप्त करती हैं | ताकतवर और गोरे पुत्र के लिए गर्भवती स्‍त्री को पलाश के एक पत्‍ते को लेकर पीसकर गाय के दूध के साथ रोज पीना चाहिए।


श्रेष्ठ-मनचाही संतान-प्राप्ति योग:-



यदि किसी व्यक्ति को संतान प्राप्ति में समस्या आ रही हो, तो ऐसे व्यक्ति इस लेख में लिखे गये सरल उपायों को अपना कर संतान की प्राप्ति अति ही सहजता के साथ कर सकते हैं। किंतु उपायों को अति सावधानी से व श्रद्धा के साथ करना अति आवश्यक होता है।

उपाय निम्नवत हैं:-



दंपति को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए।


गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करें, पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभव पीला भोजन ही करें।


माता बनने की इच्छुक महिला को चाहिए गुरुवार के दिन गेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमें भीगी चने की दाल और थोड़ी सी हल्दी मिलाकर नियमपूर्वक गाय को खिलाएं।


शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एक सुपारी रखकर सूर्यास्त से पहले किसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतान का वरदान देने के लिए प्रार्थना करें निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी ।


गुरुवार के दिन पीले धागे में पीली कौड़ी को कमर में बांधने से संतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।


माता बनने की इच्छुक महिला को पारद शिवलिंग का रोजाना दूध से अभिषेक करें उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।


हर गुरुवार को भिखारियों को गुड़ का दान देने से भी संतान सुख प्राप्त होता है ।


पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को लाकर उसे दूध में घिसकर स्त्री को पिलाएं यह सिद्ध एंवम परीक्षित प्रयोग है ।


रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाए और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।


श्वेत लक्ष्मणा बूटी की 21 गोली बनाकर उसे नियमपूर्वक गाय के दूध के साथ लेने से संतान सुख की अवश्य ही प्राप्ति होती है ।


उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ लाकर सदैव अपने पास रखने से निसंतान दम्पति को संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है ।


नींबू की जड़ को दूध में पीसकर उसमे शुद्ध देशी घी मिला कर सेवन करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना बड़ जाती है ।


पहली बार ब्याही गाय के दूध के साथ नागकेसर के चूर्ण का लगातार 7 दिन सेवन करने से संतान पुत्र उत्पन्न होता है ।


सवि ( सांवा) का भात और मुंग की दाल खाने से बांझ पन दूर होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है ।


गर्भ का जब तीसरा महीना चल रहा हो तो गर्भवती स्त्री को शनिवार को थोडा सा जायफल और गुड़ मिलाकर खिलाने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।


पुराने चावल को धोकर भिगो दें बनाने से पहले उसके पानी को अलग करके उसमें नीबूं की जड़ को महीन पीसकर उस पानी को स्त्री पी कर अपने पति से सम्बन्ध बनाये वह स्त्री कन्या को जन्म देगी ।


संतान प्राप्ति के लिए पति-पत्नी दोनों को रामेश्वरम् की यात्रा करनी चाहिए तथा वहां सर्प-पूजन करवाना चाहिए। इस कार्य को करने से संतान-दोष समाप्त होता है।


स्त्री में कमी के कारण संतान होने में बाधा आ रही हो, तो लाल गाय व बछड़े की सेवा करनी चाहिए। लाल या भूरा कुत्ता पालना भी शुभ रहता है।


यदि विवाह के दस या बारह वर्ष बाद भी संतान न हो, तो मदार की जड़ को शुक्रवार को उखाड़ लें। उसे कमर में बांधने से स्त्री अवश्य ही गर्भवती हो जाएगी।


जब गर्भ धारण हो गया हो, तो चांदी की एक बांसुरी बनाकर राधा-कृष्ण के मंदिर में पति-पत्नी दोनों गुरुवार के दिन चढ़ायें तो गर्भपात का भय/खतरा नहीं होता।


यदि बार-बार गर्भपात होता है, तो शुक्रवार के दिन एक गोमती चक्र लाल वस्त्र में सिलकर गर्भवती महिला के कमर पर बांध दें। गर्भपात नहीं होगा।


जिन स्त्रियों के सिर्फ कन्या ही होती है, उन्हें शुक्र मुक्ता पहना दी जाये, तो एक वर्ष के अंदर ही पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी।


यदि बच्चे न होते हों या होते ही मर जाते हों, तो मंगलवार के दिन मिट्टी की हांडी में शहद भरकर श्मशान में दबायें।


विशेष :-


भारत में पितृ सत्‍तात्‍मक परिवार होने तथा लगभग सभी धर्मों में पुत्र को विशेषाधिकार प्रदान किये जाने के कारण ज्‍यादातर मॉं-बाप की अभिलाषा रहती है कि उनके आंगन में लड़के की किलकारियां अवश्‍य गूंजे। इसी चाहत का फायदा उठाकर जहां बहुत से नीम-हकीम लोगों की जेबें ढीली करते रहते हैं, वही बाबा, स्‍वामी और तांत्रिकों को लोगों का शोषण करने का सौभाग्‍य प्राप्‍त होता रहा है। हालांकि बदलते समय के साथ लड़कियों ने अपनी योग्‍यता के द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि वे लड़कों से किसी मामले में कम नहीं होतीं, बावजूद इसके यह भेड़चाल जारी है।


लिखे गए सभी प्रयोग में जो उचित लगे आप किसी पे बुधि विवेक से निष्ठां पूर्वक संकल्प के साथ प्रयोग करे और बाकी प्रभु पे छोड दे ....!

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1 comment:

Unknown said...

Daya swar and baya swar kya he