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Sunday, October 25, 2015

ये करेंगे तो साइनस से आराम होगा -

हमारे चेहरे पर नाक के आसपास कुछ छिद्र होते हैं-जिन्हें साइनस कहा जाता है। इनमें संक्रमण को साइनोसाइटिस या साइनस ही कह दिया जाता है। जब साइनस का संक्रमण होता है तो इसके लक्षण आंखों पर और माथे पर महसूस होते हैं। सिरदर्द आगे झुकने व लेटने से बढ़ जाता है-





साइनस नाक का एक रोग है। आयुर्वेद में इसे प्रतिश्याय नाम से जाना जाता है। सर्दी के मौसम में नाक बंद होना, सिर में दर्द होना, आधे सिर में बहुत तेज दर्द होना, नाक से पानी गिरना इस रोग के लक्षण हैं। इसमें रोगी को हल्का बुखार, आंखों में पलकों के ऊपर या दोनों किनारों पर दर्द रहता है।

तनाव, निराशा के साथ ही चेहरे पर सूजन आ जाती है। इसके मरीज की नाक और गले में कफ जमता रहता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति धूल और धुवां बर्दाश्त नहीं कर सकता। साइनस ही आगे चलकर अस्थमा, दमा जैसी गंभीर बीमारियों में भी बदल सकता है। इससे गंभीर संक्रमण हो सकता है।

साइनस में नाक तो अवरूद्ध होती ही है, साथ ही नाक में कफ आदि का बहाव अधिक मात्रा में होता है। भारतीय वैज्ञानिक सुश्रुत एवं चरक के अनुसार चिकित्सा न करने से सभी तरह के साइनस रोग आगे जाकर 'दुष्ट प्रतिश्याय' में बदल जाते हैं और इससे अन्य रोग भी जन्म ले लेते हैं। जिस तरह मॉर्डन मेडिकल साइंस ने साइनुसाइटिस (Sinusitis ) को क्रोनिक और एक्यूट दो तरह का माना है। आयुर्वेद में भी प्रतिश्याय को नव प्रतिश्याय एक्यूट साइनुसाइटिस (Acute sinusitis ) और पक्व प्रतिश्याय क्रोनिक साइनुसाइटिस (Chronic sinusitis ) के नाम से जाना जाता है-

वैसे आम धारणा यह है कि इस रोग में नाक के अंदर की हड्डी का बढ़ जाती है या तिरछा हो जाती है जिसके कारण श्वास लेने में रुकावट आती है। ऐसे मरीज को जब भी ठंडी हवा या धूल, धुवां उस हड्डी पर टकराता है तो व्यक्ति परेशान हो जाता है।

चिकित्सकों अनुसार साइनस मानव शरीर की खोपड़ी में हवा भरी हुई कैविटी होती हैं जो हमारे सिर को हल्कापन व श्वास वाली हवा लाने में मदद करती है। श्वास लेने में अंदर आने वाली हवा इस थैली से होकर फेफड़ों तक जाती है। इस थैली में हवा के साथ आई गंदगी यानी धूल और दूसरे तरह की गंदगियों को रोकती है और बाहर फेंक दी जाती है। साइनस का मार्ग जब रुक जाता है अर्थात बलगम निकलने का मार्ग रुकता है तो 'साइनोसाइटिस' नामक बीमारी हो सकती है।

वास्तव में साइनस के संक्रमण होने पर साइनस की झिल्ली में सूजन आ जाती है। सूजन के कारण हवा की जगह साइनस में मवाद या बलगम आदि भर जाता है, जिससे साइनस बंद हो जाते हैं। इस वजह से माथे पर, गालों व ऊपर के जबाड़े में दर्द होने लगता है।

साइनस के लिए किया जाने वाला सबसे आम उपचार आपरेशन है, लेकिन अधिकांश मामलों में यह सफल नहीं होता। इसलिए चलिए आज हम आपको साइनस संक्रमण को दूर करने के लिए कुछ खास नुस्खे बता रहे है -

आप करे ये उपाय :-



एक चम्मच मेथी दाने को एक कप पानी में पांच मिनट तक उबालें। इसके बाद इस पानी को छान लें। चाय की तरह पानी को पिएं। फायदा होगा।

ऊबलते हुए पानी में नमक या डॉक्टर द्वारा दी गई कोई दवा डालें. उसके बाद पानी को आंच से उतार लें. उसके बाद 10 मिनट तक गर्म पानी की भाप लें. इसके बाद लगभग 20 मिनट तक हवा में ना जाएं. ध्यान रहे इस दौरान पंखा और कूलर भी बंद कर लें.

आधा कप पानी में कुछ बूंदे युकेलिप्स तेल की डालें। इस पानी को ढककर उबालें। फिर स्टीम लें। यह साइनस सिरदर्द से तुरंत राहत देने वाला नुस्खा है।

इसके अलावा सिकाई भी की जा सकती है. करना ये होगा कि गर्म पानी की बोतल गालों के ऊपर रखकर इसे प्रकिया को कुछ देर तक दोहराएं. ऐसा करने से आपको काफी राहत मिलगी.

जब साइनस की समस्या ज्यादा परेशान करने लगे तो सहजन की फली का सूप, लहसुन, प्याज, काली मिर्च और अदरक डालकर बनाएं। इस सूप को गर्मा गर्म पीने से बहुत लाभ होता है।

नाक में कई बार कफ जम जाती है इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि नाक को साफ करते रहें. नाक की झिल्ली पर वायरस, बैक्टीरिया, फंफूदी, धूल मिट्टी भी जमा हो सकता है. ऐसे में कई तरह की दिक्कतें पैदा हो सकती हैं. इसके लिए आधा गिलास गुनगुना पानी लेकर उसमें नमक मिला लें और रुई को नमक पानी में डुबोकर हल्के-हल्के नाक की सफाई करें.

प्याज का रस नाक में डालने से साइनस के सिरदर्द से तुरंत राहत मिलती है।

कमल जड़, अदरक, और आटा मिलाकर लेप बनाएं। इस लेप को रात में सोने से पहले नाक और माथे पर लगाएं। सुबह होते ही उसे गर्म पानी से धो लें।

रोज कच्चे लहसुन की एक कली खाने से भी साइनस इंफेक्शन से राहत मिलती है।

अपने भोजन में विटामिन-ई से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करें. साबुत अनाज, बादाम, काजू, अंडे, पिस्ता और अखरोट, सूरजमुखी के बीज, हरी पत्तेदार सब्जियां, शकरकंद, सरसों, और पॉपकार्न ऐसे ही खाद्य पदार्थ हैं जिनमें विटामिन ई भरपूर मात्रा में पाया जाता है.

रोज सुबह नियमित रूप से शहद जरूर खाएं। इससे साइनस से होने वाली परेशानियों से राहत मिलेगी।

एक कप पानी गुनगुना कर लें। इस पानी में अदरक को बारीक काटकर डाल लें। कुछ देर बाद छानकर धीरे-धीरे इस पानी को पी जाएं। राहत मिलेगी।

एक कप साफ गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद और एक चौथाई चम्मच नमक डालें। इस घोल को ड्रापर की सहायता से दो बूंद नाक में डालें। इससे साइनस में राहत मिलती है।

सब्जियों का प्रयोग साइनस की समस्या में सबसे बेहतरीन घरेलू इलाज है। अगर आप 300 एमएल गाजर का रस, 100 एमएल चुकंदर का रस, 200 एमएल पालक का रस और 100 एमएल ककड़ी का रस मिलाकर रोज पिएं तो साइनस में बहुत जल्दी फायदा होगा।

एक लहसुन और एक प्याज एक साथ पानी में उबाल कर भाप लेने से साइनस के सिरदर्द में लाभ होता है।

गर्म कपड़ा या फिर गर्म पानी की बोतल गालों के ऊपर रखकर सिकाई करनी चाहिए। इससे साइनस के रोगियों को बहुत राहत मिलती है।

पाइनएप्पल में ब्रोमलेन होता है. यह साइनस से राहत दिलाने में काफी मददगार हैं. नारियल पानी में पोटेशियम पाया जाता है. जो कि साइनस के रोगियों के लिए लाभदायक है. इससे गले की तकलीफ में आराम मिलता है.

साइनस की दिक्कत होती है तो ऐसे में गरम पेय फायदेमेंद होता है जैसे कि सूप. सूप पीने से आपको काफी राहत महूसस होगी. क्योंकि सूप कफ को बाहर निकालने में मददगार होता है. अगर नाक बंद हो जाए और लगे कि यह दिक्कत बार-बार हो रही है तो आपको विशेषतौर पर चिकन सूप पीना चाहिए.

गाजर में प्राकृतिक रूप से ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो साइनस रोग में लाभकारी होता है. इसे आप चुकंदर, खारे पालक के रस के साथ भी ले सकते हैं और अकेले भी.

इसके लिए आप जीरा लेकर किसी कपडे़ में बांध लें. इसके बाद इसे नाक के करीब ले जाकर तेज-तेज सांस लें. ऐसा करने से आपको तुरंत राहत मिलेगी.

शुद्ध भोजन से ज्यादा जरूरी है शुद्ध जल और सबसे ज्यादा जरूरी है शुद्ध वायु। साइनस एक गंभीर रोग है। यह नाक का इंफेक्शन है। इससे जहां नाक प्रभावित होती है वहीं, फेंफड़े, आंख, कान और मस्तिष्क भी प्रभावित होता है इस इंफेक्शन के फैलने से उक्त सभी अंग कमजोर होते जाते हैं।

साइनसाइटिस के कुछ आयुर्वेदिक उपचार :-



अणु तेल:-


अणु तेल साइनसाइटिस के उपचार के लिए आयुर्वेद की एक औषधी है। यह तेल संकुलन को कम करने के लिए जाना जाता है। नाक बंद हो जाने पर यह तेल काफी असरदार होता है। हालांकि शुरू में कुछ समय आप लगातार छींकेंगे और नाक भी बहेगी, पर कुछ दिन बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा।

खदीरादी वटी:-


साइनस इंफैक्शन के उपचार के लिए जाने पर डाक्टर आपको खदीरादी वटी के प्रयोग की सलाह भी दे सकते हैं। मुख्य रूप से डाक्टर जलन को कम करने के लिए इस दवा के सेवन की सलाह देते हैं। इसके अलावा कांचनार गुग्गुल और व्योषादि वटी का इस्तेमाल भी इसी उद्देश्य के लिए किया जाता है।

चित्रक हरीतकी :-


डाक्टर के बताए गए निर्देशों के अनुसार इस दवाई का लगातार सेवन करना चाहिए। आमतौर पर दो चम्मच चित्रक हरीत की को दूध के साथ लिया जाता है।

जीवनधारा:-


यह कपूर और मेंथॉल का मिश्रण है और इसका इस्तेमाल साइनस इंफैक्शन के आयुर्वेदिक उपचार में किया जाता है। भांप को सूंघते समय इस दवाई को मिलाया जाता है। अगर एक हफ्ते तक दिन में दो बार इसकी सांस लेंगे तो काफी फायदा पहुंचेगा। इससे निश्चित रूप से आपको काफी आराम पहुंचेगा।

मिश्रण:-


ये भी हो सकता है आपका इम्युनिटी सिस्टम उतना मजबूत न हो। तो आपके इम्यूनिटी को बनाने की जरूरत है और ऐसा करने के लिए शरीर से टॉक्सिन को बाहर निकालना पड़ेगा। आप पूरे दिन पानी पी कर ऐसा आसानी से कर सकते हैं। साथ ही आप चाय में पुदीना, लौंग और अदरक मिलाकर अतिरिक्त आराम पा सकते हैं। साथ ही भोजन बनाने के दौरान खाने में हल्दी, काली मिर्च, सौंफ, जीरा, धनिया, अदरक और लहसुन भी मिलाएं।

योगा पैकेज : -



शुद्ध वायु के लिए सभी तरह के उपाय जरूर करें और फिर क्रियाओं में सूत्रनेती और जल नेती, प्राणायाम में अनुलोम-विलोम और भ्रामरी, आसनों में सिंहासन और ब्रह्ममुद्रा करें। असके अलावा मुंह और नाक के लिए बनाए गए अंगसंचालन जरूर करें। कुछ योग हस्त मुद्राएं भी इस रोग में लाभदायक सिद्ध हो सकती है। मूलत: क्रिया, प्राणायाम और ब्रह्ममुद्रा नियमित करें-

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Sunday, September 27, 2015

दांतों की बेहतरी के लिए -

अगर आप अपने दाँतो की अच्छे से Care नहीं करते तो दाँतो एवं मसूडों में होने वाली Diseases आपके दाँतो को समय से पहले Finished कर सकते हैं | कुछ बहुत ही Simple से तरीकों से आपके दाँत आपके साथ बहुत Long time तक रह सकते हैं -



हम सबके मुंह में हमेशा लाखों Bacteria रहते हैं जिनका कि एक ही लक्ष्य होता है कि किसी तरह से कोई कड़ी सतह मिल जाए तो उस पर जाकर चिपक जाएँ और फिर एक बड़ा समूह बना लें| यह प्रक्रिया साल के 365 दिन, और चौबीसों घंटे हमारे मुंह में होती रहती है | इस Process को रोका नहीं जा सकता क्योंकि ये बैक्टीरिया हमारे शरीर का एक हिस्सा हैं | जब ये बेक्टीरिया कड़ी सतह यानी हमारे दाँतो पर चिपकते हैं तो एक अदृश्य सतह, जिसको कि प्लेक कहते हैं, हमारे दांतों के चारों ओर बना देते हैं | आपने शायद सुबह को उठकर अपने दाँतो पर जीभ फिराते हुए कभी उस प्लेक को महसूस भी किया हो | The main purpose of taking care of teeth with the help of brush or Foss has to clear the plaque-


अपने दाँतो को दिन में कम से कम दो बार लगभग दो मिनट या इससे ज्यादा ब्रश करना चाहिए | ब्रश सभी दांतों के आगे पीछे सभी जगह करना चाहिए और जीभ को भी साफ़ रखना चाहिए |


सोने से पहले ब्रश करना सबसे ज्यादा Beneficial रहता है | दिन में मुँह में रहने वाली राल भी हमारे दांतों को बचाती है जबकि रात में हमारा मुह सूखा रहता है और फंसा हुआ खाना उनको नुक्सान पहुंचाता है | अगर किसी कारण कभी आप रात में ब्रश न कर पाए तो आपको पानी से जोरदार कुल्ला जरूर करना चाहिए |


हमारे दाँतो की सभी सतहो तक ब्रश नहीं पहुँच पाता | दो दांतों के बाच की जगह में फंसा खाना दांतों को बहुत ही नुक्सान पहुंचाता है इसको निकालने के लिए बहुत ही पतले धागे का इस्तेमाल किया जाता है जिसको फ्लोस करना कहते हैं | पुराने ज़माने में लोग खाना खाने के बाद दांत को कुरेदना अच्छा मानते थे | ऐसा करना दांतों के साथ मसूडो को भी बहुत फायदा पहुंचाता है |


मुँह को स्वस्थ रखने के लिए जीभ को साफ़ करना भी उसी तरह जरूरी है जैसे दाँतो को साफ़ करना जबकि हम अक्सर जीभ (Tongue) की तरफ ध्यान नहीं देते |


मुँह में बदबू, मसूडों या जीभ पर जमी मैल के कारण ही होती है | आपकी साफ़ जीभ आपके दाँतो और मसूडो को तो स्वस्थ रखती ही है साथ ही साथ ये आपकी साँस को भी Freshness प्रदान करती है |


Snacks खाने से जितना बच सकें बचना चाहिए क्यूंकि Snacks  में प्रयुक्त मसाले बहुत जल्दी ही दांतों में प्लेक को बनने  में मदद करते हैं जिससे जल्दी ही दाँतो में Cavity हो जाती है |


चॉकलेट (Chocolate) खाने से बचना चाहिए | चीज़ और दूध स्वस्थ दांतों के लिए अच्छे होते हैं | मीठा कम खाना चाहिए | Green vegetables खानी चाहियें | सोडा या जूस के स्थान पर पानी पीना चाहिए क्योंकि फलों के जूस में भी Acids and sugar होते हैं जोकि दांतों को नुक्सान पहुंचाते हैं |


आज कल करीब 90 फीसदी लोगों को दांतों से जुड़ी कोईन कोई बीमारी या परेशानी होती है , लेकिन ज्यादातर लोग बहुत ज्यादा दिक्कत होने पर ही Dentist के पास जाना पसंद करते हैं। इससे कई बार छोटी बीमारी सीरियस बन जाती है। अगर सही ढंग से साफ - सफाई के अलावा हर 6 महीने में रेग्युलर चेकअप कराते रहें तो दांतों कीज्यादातर बीमारियों को काफी हद तक Serious बनने रोका जा सकता है।


दांतों में ठंडा - गरम लगना , कीड़ा लगना ( कैविटी ) , पायरिया ( मसूड़ों से खून आना ) , मुंह से बदबू आना और दांतों का Discolouration होना जैसी बीमारियां सबसे कॉमन हैं।


दांत में कीड़ा लगना (Loss of tooth worm):-



दांत में सूराख(Eyelet) होने की वजह होती है , मुंह में बननेवाला एसिड। हमारे मुंह में आम तौर पर बैक्टीरिया रहते हैं। जब हम खाना खाते हैं तो खाने के बाद अगर हम कुल्ला या ब्रश न करें तो खाने के कुछ कण मुंह में रह जाते हैं। ऐसी सूरत में खाना खा चुकने के 20 मिनटों के अंदर ही बैक्टीरिया खाने के कणों खासकर मीठी या स्टार्च वाली चीजों को एसिड में बदल देते हैं। बैक्टीरिया वाला यह एसिड और मुंह की लार मिलकर एक चिपचिपा पदार्थ ( प्लाक ) बनाते हैं। यह कुछ दांतों पर चिपक जाता है। अगर काफी दिनों तक उन दांतों की ढंग से सफाई न हो तो यह प्लाक सख्त होकर टारटर बन जाता है और दांतों व मसूड़ों को खराब करने लगता है। प्लाक का बैक्टीरिया जब दांतों में सूराख ( कैविटी ) कर देता है तो इसे ही कीड़ा लगना ( कैरीज ) कहते हैं।


बचाव (Rescue):-



कीड़ा लगने से बचने का सबसे सही तरीका है कि रात को ब्रश करके सोएं। मीठी और स्टार्च आदि की चीजें कम खाएं और बार - बार न खाएं। मीठी चीजें खाने के बाद कुल्ला करें या ब्रश करें। दांतों की अच्छी तरह सफाई करें-

अगर दांतों पर काले - भूरे धब्बे नजर आने लगें , खाना किसी दांत में फंसने लगे और ठंडा - गरम लगने लगे तो कैविटी हो सकती है। इस हालत में तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। शुरुआत में ही ध्यान देने पर कैविटी बढ़ने से रुक जाती है।

तुरंत राहत के लिए :-



अगर दांत में दर्द हो रहा हो तो पैरासिटामोल , एस्प्रिन , इबो - प्रोफिन आदि ले सकते हैं। दवा न होने पर लौंग दाढ़ पर दबा सकते हैं या लौंग का तेल भी लगा सकते हैं। यह मसूड़ों के दर्द से राहत दिलाता है। इसके बाद डॉक्टर के पास जाकर फिलिंग कराएं।

फिलिंग क्यों जरूरी :-



फिलिंग(Filling) न कराएं तो दांत में ठंडा - गरम और खट्टा - मीठा लगता रहेगा। फिर दांत में दर्द होने लगता है और पस बन जाती है। आगे जाकर रूट कनाल ट्रीटमंट की नौबत आ जाती है। यानी जितनी जल्दी फिलिंग कराएं , उतना अच्छा है।

कौन सी Filling :-



टेंपरेरी फिलिंग (Temporary fillings):-



यह उस वक्त करते हैं , जब दांत में काफी गहरी कैविटी हो। बाद में दर्द या सेंसटिविटी नहीं होने पर परमानेंट फिलिंग कर देते हैं। अगर दिक्कत होती है तो रूट कनाल या फिर दांत निकाला जाता है।

सिल्वर फिलिंग (Silver fillings):-



इसे एमैल्गम(Malgm) भी कहते हैं। इसमें सिल्वर , टिन , कॉपर को मरकरी के साथ मिला कर मिक्सचर तैयार किया जाता है।

सबसे पहले कीड़े की सफाई और कैविटी कटिंग की जाती है। इसके बाद जिंक फॉस्फेट सीमेंट की लेयर लगाई जाती है ताकि फिलिंग में इस्तेमाल होनेवाली मरकरी जड़ तक पहुंचकर नुकसान न पहुंचाए। इसके बाद एमैल्गम भरा जाता है। फिलिंग कराने के एक घंटे बाद तक कुछ न खाएं। बाद में फिलिंग वाली दाढ़ के दूसरी तरफ से खा सकते हैं। 24 घंटे बाद फिलिंग वाले दांत से खा सकते हैं। यह दूसरी फिलिंग्स से सस्ती और ज्यादा मजबूत होती है।

यह ग्रे / ब्लैक होती है। देखने में खराब लगती है। इसे मरकरी से मिक्स किया जाता है। नॉर्वे और स्वीडन में इस अमैलगम पर बैन है। साथ ही , लीकेज होने के खतरे के अलावा कई बार इसमें जंग भी लग जाती है।

कंपोजिट फिलिंग (Composite fillings):-



इसे Cosmetic या Tooth-colored fillings भी कहते हैं। इसे बॉन्डिंग टेक्निक और लाइट क्योर मैथड से तैयार किया जाता है।

इसमें सबसे पहले कैविटी कटिंग की जाती है , फिर Surface को फॉस्फेरिक एसिड के साथ खुरदुरा किया जाता है। इससे सरफेस एरिया बढ़ने के अलावा मटीरियल अच्छी तरह सेट हो जाता है। इसके बाद मटीरियल भरा जाता है। छोटी - छोटी मात्रा में कई बार मटीरियल भरा जाता है। हर बार करीब 30 सेकंड तक एलईडी लाइट गन की नीली रोशनी से उसे पक्का किया जाता है। इसके बाद उभरी सतह को घिसकर शेप दी जाती है और Polishing होती है। फिलिंग कराने के तुरंत बाद खा सकते हैं।

यह टूथ कलर की होती है। देखने में पता भी नहीं चलता कि फिलिंग की गई है। यह ज्यादा टिकाऊ होती है। अब नैनो तकनीक(Nanotechnology) का मटीरियल आने से यह फिलिंग और भी बेहतर हो गई है।

नुकसान :-



फिलिंग कराते हुए दांत सूखा होना चाहिए , वरना मटीरियल निकलने का डर होता है। बच्चों में यह फिलिंग नहीं की जाती। आमतौर पर उन्हीं दांतों में की जाती है , जिनसे खाना चबाते हैं।

जीआईसी फिलिंग (GIC Filling):-



इसका पूरा नाम ग्लास इनोमर सीमेंट फिलिंग है। यह ज्यादातर बच्चों में या बड़ों में कुछ सेंसेटिव दांतों में की जाती है। इसमें सिलिका होता है। यह हल्की होती है , इसलिए चबाने वाले दांतों में यह फिलिंग नहीं की जाती। फिलिंग कराने के एक घंटे बाद तक कुछ न खाना बेहतर रहता है।

यह सेल्फ क्योर और लाइट क्योर , दोनों तरीकों से लगाई जाती है।

इसमें मौजूद फ्लोराइड आगे कीड़ा लगने से रोकता है , इसलिए इसे प्रिवेंटिव फिलिंग (Preventive filling) भी कहा जाता है।

नुकसान :-



यह होती तो सफेद ही है , पर दांतों के रंग से मैच न करने से देखने में अच्छी नहीं लगती और सभी दांतों में इसे नहीं भरा जाता। चबाने वाले और सामने वाले दांतों में इसके इस्तेमाल से बचा जाता है क्योंकि यह ज्यादा मजबूत नहीं होती। वैसे , अब जीआईसी फिलिंग में भी दांतों के रंग के शेड आने लगे हैं।

कभी -कभी कब निकल जाती है फिलिंग :-



जब फिलिंग को पूरा सपोर्ट न मिला हो

जब सही मटीरियल और तकनीक इस्तेमाल न की गई हो

जब फिलिंग कराते हुए दांत सूखा न रहा हो , उसमें लार आ गई हो

जब दांत और फिलिंग के बीच गैप आने से माइक्रो लीकेज हो जाए

जब कैविटी की शेप और साइज ठीक न हो

जब कैविटी काफी बड़ी हो



फिलिंग से जुड़े दो और जरूरी बात :-



फिलिंग कराने के बाद कई बार दांत में सेंसिटिविटी आ जाती है यानी उस दांत पर ठंडा या गर्म महसूस होने लगता है। लेकिन यह कुछ दिनों में ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं।

फिलिंग कराने के बाद कीड़ा बढ़ता नहीं है लेकिन कई बार थोड़ी - बहुत लीकेज हो सकती है तो कई बार फिलिंग के नीचे ही कीड़ा लग जाता है। ऐसे में अगर फिलिंग पुरानी हो गई है तो हर 6 महीने में चेक करानी चाहिए।

रूट कनाल (Root Canal):-



जब कीड़ा काफी बढ़ जाता है , दांत में गहरा सूराख कर देता है और जड़ों तक इंफेक्शन फैल जाता है तो रूट कनाल किया जाता है। जिन टिश्यूज में इंफेक्शन हो गया है , उन्हें Sterilization करके दांत में एक मटीरियल भर दिया जाता है , ताकि वह बरकरार रहे। यानी दांत ऊपर से पहले जैसा ही रहता है और काम करता है , जबकि दांत की ब्लड सप्लाई काट देते हैं। इससे कोई नुकसान नहीं होता। हां , दांत में इंफेक्शन या किसी और बीमारी की आशंका खत्म हो जाती है। इस प्रक्रिया में अक्सर दांत के टूटने की आशंका बढ़ जाती है , इसलिए जरूरी है कि दांत पर Crown लगाया जाए। इससे दांत का फ्रेक्चर भी रुकता है , लुक भी पहले जैसा बना रहता है। कभी - कभी रूट कनाल फेल भी हो जाती है। उसमें पस पड़ जाती है , तब डॉक्टर तय करता है दांत निकालें या नहीं। ऐसी स्थिति में फिर से इलाज किया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में चार - पांच सिटिंग लगती हैं।

ठंडा-गरम लगना (Cold-Hot embark):-



दांत के टूटने , नींद में किटकिटाने , घिसने के बाद , मसूड़ों की जड़ें दिखने और दांतों में कीड़ा लगने पर ठंडा - गरम लगने लगता है। कई बार बेहद दबाव के साथ ब्रश करने से भी दांत घिस जाते हैं और दांत Sensitive बन जाते हैं।

इसलिए ध्यान रक्खे कि ज्यादा दबाव से ब्रश न करें और दांत पीसने से बचें।

इलाज :-



इलाज वजह के मुताबिक होता है। फिर भी आमतौर पर डॉक्टर इसके लिए मेडिकेटेड टूथपेस्ट की सलाह देते हैं , जैसे कि सेंसोडाइन , थर्मोसील रैपिड एक्शन , सेंसोफॉर्म , कोलगेटिव सेंसटिव आदि। बिना डॉक्टर की सलाह लिए भी इन्हें इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन दो - तीन महीने के बाद भी समस्या बनी रहे तो डॉक्टर को दिखाएं।

सांस में बदबू (Breath stink):-



अधिकतर 95 फीसदी मामलों में Gums and teeth की ढंग से सफाई न होने और उनमें सड़न व बीमारी होने पर मुंह से बदबू आती है। कुछ मामलों में पेट खराब होना या मुंह की लार का गाढ़ा होना भी इसकी वजह होती है। प्याज और लहसुन आदि खाने से भी मुंह से बदबू आने लगती है।

इलाज (Treatment):-



लौंग , इलायची चबाने से इससे छुटकारा मिल जाता है। थोड़ी देर तक शुगर - फ्री च्यूइंगगम चबाने से मुंह की बदबू के अलावा दांतों में फंसा कचरा निकल जाता है और मसाज भी हो जाती है। इसके लिए बाजार में माउथवॉश भी मिलते हैं।

पायरिया (Pyorrhea):-



मुंह से बदबू आने लगे , मसूड़ों में सूजन और खून निकलने लगे और चबाते हुए दर्द होने लगे तो पायरिया हो सकता है। पायरिया होने पर दांत के पीछे सफेद - पीले रंग की परत बन जाती है। कई बार हड्डी गल जाती है और दांत हिलने लगता है।पायरिया की मूल वजह दांतों की ढंग से सफाई न करना है।

इलाज (Treatment):-



पायरिया का सर्जिकल और नॉन सर्जिकल दोनों तरह से इलाज होता है। शुरू में इलाज कराने से सर्जरी की नौबत नहीं आती। क्लीनिंग , डीप क्लीनिंग ( मसूड़ों के नीचे ) और फ्लैप सर्जरी से पायरिया का ट्रीटमंट होता है।

दांत निकालना कब जरूरी :-



दांत अगर पूरा खोखला हो गया हो , भयंकर इन्फेक्शन हो गया हो , मसूड़ों की बीमारी से दांत हिल गए हों या बीमारी दांतों की जड़ तक पहुंच गई हो तो दांत निकालना जरूरी हो जाता है।


ब्रश करने का सही तरीका :-



हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। ऐसे में दिन में कम - से - कम दो बार ब्रश जरूर करें और हर बार खाने के बाद कुल्ला करें। दांतों को तीन - चार मिनट ब्रश करना चाहिए। कई लोग दांतों को बर्तन की तरह मांजते हैं , जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग जिस तरह दांत साफ करते हैं , उससे 60-70 फीसदी ही सफाई हो पाती है।

दांतों को हमेशा सॉफ्ट ब्रश से हल्के दबाव से धीरे - धीरे साफ करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी - बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों के बीच में फंसे कणों को फ्लॉस ( प्लास्टिक का धागा ) से निकालें। इसमें 7-8 मिनट लगते हैं और यह अपने देश में ज्यादा कॉमन नहीं है। दांतों और मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। उंगली या ब्रश से धीरे - धीरे मसूड़ों की मालिश करने से वे मजबूत होते हैं।

जीभ की सफाई (Tongue cleaning):-



जीभ को टंग क्लीनर और ब्रश , दोनों से साफ किया जा सकता है। टंग क्लीनर का इस्तेमाल इस तरह करें कि खून न निकले।

कैसा ब्रश ले (How to Brush):-



ब्रश सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए। करीब दो - तीन महीने में या फिर जब ब्रसल्स फैल जाएं , तो ब्रश बदल देना चाहिए।

टूथपेस्ट की भूमिका (The role of toothpaste):-



दांतों की सफाई में टूथपेस्ट की ज्यादा भूमिका नहीं होती। यह एक Medium है , जो लुब्रिकेशन , फॉमिंग और फ्रेशनिंग का काम करता है। असली एक्शन ब्रश करता है। लेकिन फिर भी अगर टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें , तो उसमें फ्लॉराइड होना चाहिए। यह दांतों में कीड़ा लगने से बचाता है। पिपरमिंट वगैरह से ताजगी का अहसास होता है। टूथपेस्ट मटर के दाने जितना लेना काफी होता है।

पाउडर(Powder) यानी मंजन :-




टूथपाउडर और मंजन के इस्तेमाल से बचें। टूथपाउडर बेशक महीन दिखता है लेकिन काफी खुरदुरा होता है। टूथपाउडर करें तो उंगली से नहीं , बल्कि ब्रश से। मंजन इनेमल को घिस देता है।

दातुन (Datun):-



नीम के दातुन में बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है लेकिन यह दांतों को पूरी तरह साफ नहीं कर पाता। बेहतर विकल्प ब्रश ही है। दातुन करनी ही हो तो पहले उसे अच्छी तरह चबाते रहें। जब दातुन का अगला हिस्सा नरम हो जाए तो फिर उसमें दांत धीरे - धीरे साफ करें। सख्त दातुन दांतों पर जोर - जोर से रगड़ने से दांत घिस जाते हैं।

माउथवॉश (Mouthwash):-



मुंह में अच्छी खुशबू का अहसास कराता है। हाइजीन के लिहाज से अच्छा है लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

नींद में दांत पीसना(Sleep bruxism):-



गुस्सा , तनाव और आदत की वजह से कई लोग नींद में दांत पीसते हैं। इससे आगे जाकर दांत घिस जाते हैं।

इससे बचाव के लिए नाइटगार्ड यूज करना चाहिए।

स्केलिंग और पॉलिशिंग (Scaling and polishing):-



दांतों पर जमा गंदगी को साफ करने के लिए स्केलिंग और फिर पॉलिशिंग की जाती है। यह हाथ और अल्ट्रासाउंड मशीन दोनों तरीकों से की जाती है। चाय - कॉफी , पान और तंबाकू आदि खाने से बदरंग हुए दांतों को सफेद करने के लिए ब्लीचिंग(Bleaching) की जाती है। दांतों की सफेदी करीब डेढ़ - दो साल टिकती है और उसके बाद दोबारा ब्लीचिंग की जरूरत पड़ सकती है।

ध्यान रक्खे :-



अगर कोई परेशानी नहीं है तो कैविटी के लिए अलग से चेकअप कराने की जरूरत नहीं है लेकिन हर छह महीने में एक बार दांतों की पूरी जांच करानी चाहिए।

मुस्कराहट और अच्छे व खूबसूरत दांतों के बीच दोतरफा संबंध है। सुंदर दांतों से जहां मुस्कराहट अच्छी होती है , वहीं मुस्कराहट(Grin) से दांत अच्छे बनते हैं। तनाव दांत पीसने की वजह बनता है , जिससे दांत बिगड़ जाते हैं। तनाव से एसिड भी बनता है , जो दांतों को नुकसान पहुंचाता है।

बच्चों के दांतों की देखभाल(Children's Dental Care):-



छोटे बच्चों के मुंह में दूध की बोतल लगाकर न सुलाएं।

चॉकलेट और च्यूइंगम न खिलाएं। खाएं भी तो तुरंत कुल्ला करें।

बच्चे को अंगूठा न चूसने दें। इससे दांत टेढ़े - मेढ़े हो जाते हैं।

डेढ़ साल की उम्र से ही अच्छी तरह ब्रशिंग की आदत डालें।

छह साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट न दें।


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Friday, May 15, 2015

मुंह के छाले के लिए करे ये उपाय -

जीवन में लगभग सभी  को कभी न कभी एक बार मुंह में छाले अवश्य ही हुआ होगा ,इसका दर्द तो केवल वही जानता है, जिसे कभी मुँह में छाले हुए हों-



मुँह में छाले होने पर तेज जलन और दर्द होता है, कुछ भी खाना या पीना मुश्किल हो जाता है। कुछ लोगों को तो भोजन नली तक में छाले हो जाते हैं।


मुँह में छाले होना एक सामान्य तकलीफ है, जो कुछ समय बाद अपने आप ठीक हो जाती है। कुछ लोगों को ये छाले बार-बार होते हैं और परेशान करते हैं। ऐसे लोगों को अपनी पूरी डॉक्टरी जाँच करानी चाहिए, ताकि उनके कारणों का पता लगाकर उचित इलाज किया जा सके।

मुँह में छाले होने के कोई एक नहीं, अनेक कारण हैं। जरूरी नहीं कि जिस कारण से किसी एक को छाले हुए हों, दूसरे व्यक्ति को भी उसी कारण से हों। कई बार पेट की गर्मी से भी छाले हो जाते हैं। अत्यधिक मिर्च-मसालों का सेवन भी इसके लिए जिम्मेदार होता है, क्योंकि यदि पेट की क्रिया सही नहीं है, तो उसकी प्रतिक्रिया मुँह के छाले के रूप में प्रकट होती है।

भोजन में तीखे मसाले, घी, तेल, मांस, खटाई आदि अधिक मात्रा में खाने से पेट की पाचनक्रिया खराब हो जाती है जिससे मुंह व जीभ पर छाले पड़ जाते हैं। पेट में कब्ज होने से या गर्म पदार्थ खाने से गर्मी के कारण मुंह में छाले, घाव व दाने निकल आते हैं। ये छाले लाल व सफेद रंग के होते हैं। मुंह में छाले हो जाने पर मुंह में बार-बार लार आता रहता है। कभी-कभी मुंह के छालों से पीब भी निकलने लगती हैं। मुंह को ढकने वाली झिल्ली लाल, फूली और दर्द या जख्म से भरी होती है। इसमें जीभ लाल, फूली हुई और दांत के मसूढ़े फूले हुए होते हैं। तालुमूल में जलन होती रहती है। इस रोग में भोजन चबाने पर छाले व दानों पर लगने से दर्द होता है। पानी पीने व जीभ तालू में लगने से तेज दर्द होता है।

जब पेट के अंदर गर्मी का प्रकोप बढ़ जाता है तो जीभ की ऊपरी परत पर छाले उभर आते हैं। ऐसा उस दशा में होता है जब हम खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं। गर्म पदार्थों में आलू, चाट, पकौड़े, अदरक, खट्टी मीठी चीजें, अरहर या मसूर की दाल, बाजरे का आटा आते हैं। कभी-कभी शरीर भोजन को ठीक से नहीं पचा पाता है। तब आंतों में अपच का प्रदाह उत्पन्न हो जाता है। यदि हम किसी कारणवश मल-मूत्र को रोके रहते हैं तो तब मल दुबारा पचने लगता है और आंतों में सड़न क्रिया आरम्भ हो जाती है। इन सभी कारणों से जीभ पर छाले पड़ जाते हैं। इन छालों में असहनीय दर्द होता है लगता है जैसे कांटे चुभ रहे हों। मिर्च-मसालेदार चीजें खाने पर इनमें असहनीय दर्द होने लगता है तथा भोजन करना मुश्किल हो जाता है। साधारण भाषा में इसे मुंह का आना कहते हैं। इसके लिए धनिये का मिश्रण बहुत ही लाभकारी इलाज होता है।

इस रोग मे जीभ, तालु व होठों के भीतर छोटी-छोटी फुंसियां या छाले निकल आते हैं। ये दाने लाल व सफेद रंगों के होते हैं। इस रोग में मुंह में लार बार-बार आती है। मुंह में छाले होने पर मुंह से बदबू आने लगती है, छालों में जलन होती है तथा सुई चुभने की तरह दर्द होता है। मुंह में छाले होने पर भोजन करने में कठिनाई होती है। बच्चों के मुंह में छाले होने पर लाल छाले, जीभ लाल व होठ के भीतरी भाग में लाल-लाल दाने निकल आते हैं।

दांतों में गंदगी से भी मुंह में छाले पैदा हो जाते हैं अत: दिन में 2 से 3 बार दांत साफ करना जरूरी है। भोजन में लालमरसा का साग खायें। मुंह के छाले होने पर 2 केले रोजाना सुबह दही के साथ खायें। छाले होने पर टमाटर अधिक खाने चाहिए। ठण्डी फल व सब्जियां खायें। पेट की कब्ज खत्म करने के लियें सुबह 1 गिलास पानी शौच जाने से पहले पीने से लाभ होता है। भोजन में अधिक तेल, मिर्च, मांस, तेज मसाले व गर्म पदार्थ न खायें। पेट में कब्ज होने पर छाले बनते हैं। पेट में कब्ज को बनाने वाले कोई भी पदार्थ न खाएं। अधिक गरिष्ठ भोजन न करें। चाय, शराब, बीड़ी-सिगरेट या किसी भी नशीली चीज का सेवन न करें।

एलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) की वजह से भी मुँह में छाले हो सकते हैं, विशेषकर लंबे समय तक एंटीबॉयोटिक दवाओं का इस्तेमाल करने से। अधिक मात्रा में एंटीबॉयोटिक का इस्तेमाल करने से हमारी आंतों में लाभदायक कीटाणुओं की संख्या घट जाती है। नतीजतन मुँह में छाले पैदा हो जाते हैं।

करे ये उपाय :-


नमक और बेकिंग सोडा को चुटकी भर पानी मिलाएं और छाले पर लगाकर 10 मिनट तक छोड़ दें। इसके बाद पानी से कुल्ला करें।

अमरूद के पत्तों का पेस्ट बनाकर छाले पर लगाएं, इससे तुरंत आराम मिलेगा।

आंवला को उबालकर पेस्ट बनाएं और छाले पर लगाएं। छाला जल्दी ठीक होगा।

नारियल पानी न सिर्फ पेट के लिए अच्छा है बल्कि छालों के दर्द में भी आराम देता है और मुंह को ठंडक पहुंचाता है।

शहद में केला मिलाकर खाने से भी मुंह के छाले जल्दी ठीक होते हैं और दर्द कम होता है। बहुत अधिक तकलीफ पर इनका पेस्ट बनाकर भी लगाया जा सकता है।

कैमोमाइल नींद उत्प्रेरण करता है और लोगों को मुंह के अंदर छालों के दर्द को महसूस करना भुला देता है । १ मिनट के लिए पानी में इस चाय की बैग भिगोकर छालों पर ५-१० मिनट के लिए रख दें ।

लाल मिर्च में कप्सैसिन की उपस्थिति गर्म होती है। लेकिन यह घटक शरीर के भीतर दर्द प्रतिक्रियाओं को कम करता है। यह घटक नासूर घावों के लिए अद्भुत उपाय माना जाता है।लाल मिर्च का पाउडर १ चम्मच गर्म पानी में मिलाएं । इसमें रुई को  डुबोकर प्रभावित क्षेत्र पर लगायें। राहत पाने के लिए दिन में २-३ बार इस्तेमाल करें ।

दही किण्वित दूध से बनाया गया है| उसके कार्बोहाइड्रेट कार्बनिक अम्ल में बदलने से आप कीटाणुओं से समृद्ध पदार्थ प्राप्त करते हैं। दही विविध रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। मुंह के छाले और नासूर दही खाने से खत्म किये जा सकते हैं । दही का १ बड़ा चम्मच दिन में ३ बार खाएं ।

एक  बड़ा चम्मच मधुमक्खी के छत्ते का मोम पिघलाकर २ बड़े चम्मच नारियल तेल के साथ मिलाएं और दिन में २ से ३ बार छालों पर लगायें ।

बेनाड्रिल और मालोक्स का १ हिस्सा मिलाकर कुल्ला करके थूक दें ।

विटामिन ई कैप्सूल का तेल दिन में कई बार लगाने से छाले कम होते हैं ।

सौंफ को मुंह में रखकर चबाने से मुंह के छाले, पीब और दाने आदि खत्म हो जाते हैं।

भोजन करने के बाद थोड़ी सौंफ खाने से मुंह में नए छाले नहीं होते हैं।

सौंफ का चूर्ण बनाकर छालों पर लगाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।

जिन लोगों के मुंह में छाले अक्सर होते रहते हैं वे खाने के पश्चात थोड़ी सौंफ खाया करें तो उनके मुंह में छाले नही होते हैं।

छोटी हरड़ को बारीक पीसकर छालों पर दिन में दो तीन बार लगाने से मुंह तथा जबान दोनों के छाले ठीक हो जाते हैं।

तुलसी की चार पांच पत्तियां रोजना सुबह और शाम को चबाकर ऊपर से थोड़ा पानी पी लें( ऐसा चार पांच दिनों तक करें) ।

करीब दो ग्राम सुहागे का पावडर बनाकर थोड़ी सी ग्लिसरीन में मिलाकर छालों पर दिन में दो तीन बार लगाएं छालों में जल्दी फायदा होगा।

उपचार और प्रयोग -

Friday, December 26, 2014

सोते समय दांत पीसना-

आमतौर पर लोगो को इसका पता ही नहीं होता -दांत पीसना या ब्रूसिज्‍म खर्राटों की ही तरह है। आमतौर पर यह सोते हुए होती है- और ज्‍यादातर मौकों पर आप इससे अनजान रहते हैं। लेकिन, आपकी यह आदत आपके साथी की नींद खराब कर सकती है। और शायद वही आपको सबसे पहले आपकी इस आदत के बारे में बताये-अगर आप सोचते हैं कि ब्रूकिज्‍म एक दौर है, जो कुछ समय बाद अपने आप रुक जाएगा, तो आप गलत हैं-




खर्राटों की ही तरह आपको इससे बाहर आने के लिए मदद की जरूरत होगी। दांत पीसना दांतों की समस्‍या का उत्‍प्रेरक ही है। दांत पीसने से लेकर पिसाई करने तक हम जानेंगे कि आखिर कौन सी आदतें आपके दांतों को खराब कर सकती हैं।


बच्‍चे दो बार अपने दांत पीसते हैं- पहली बार वे छोटे होते हैं और दूसरी बार जब उनके दांत निकलने लगते हैं। लेकिन, बच्‍चों में इस आदत के स्‍थायी प्रभाव नहीं होते, केवल सिरदर्द, जबड़ों में दर्द और दांत बाहर निकलने के...जैसे-जैसे बच्‍चे बड़े होते हैं उनके स्‍थायी दांत निकल आते हैं। कुछ बच्‍चों में दांत पीसने की यह आदत लगातार चलती रहती है। हालांकि इसके कारणों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन माना जाता है कि ऊपर और नीचे के दांतों में असामान्‍य दांतों के साथ यह समस्‍या होती है।
इसके लिए एलर्जी, एंडोक्रिन डिस्‍ऑर्डर और तनाव को भी कारण माना जा सकता है।


दांतों से पिसाई, झंझरी, पीसना इस बीमारी के स्‍थायी लक्षण हैं। ये सब तेज आवाज करते हैं। अगर आप अपने दांतों को पीसते हैं, तो
सुबह उठते समय आपको तेज सिरदर्द और जबड़ों में सूजन की शिकायत हो सकती है


दांतों को पीसने को चिकित्‍सीय भाषा में ब्रूकिज्‍म कहा जाता है। और इसके कारणों को लेकर बहस होती रहती है। तनाव इसका अहम कारण है। लेकिन, भंग दांत या दांत न होना भी इसके पीछे की वजह माना जा सकता है। इलाज दंत चिकित्‍सक आपको टी‍थ-गार्ड दे सकता है। कुछ दुर्लभ मामलों में आपको रूट कैनाल कराने की जरूरत भी पड़ सकती है। इसके साथ ही क्राउन, ब्रिज, और दांत इम्‍प्‍लांट करना या पूरी तरह से नया भी लगवाना पड़ सकता है।



इसलिए, अगर आपका साथी आपसे कहे कि आप नियमित रूप से दांतों खटखटाते हैं या दांत पीसते हैं, तो उसकी बातों को अनसुना न करें। इस बीमारी के इलाज के लिए फौरन अपने दंत चिकित्‍सक से संपर्क करें। क्‍या न करें सबसे पहले तनाव से दूर रहें। इसके साथ ही ध्‍यान और व्‍यायाम करें। इसके बाद अपना लाइफस्‍टाइल बदलें, जिसमें कॉफी, कैफीन और अल्‍कोहल का सेवन न करना। च्‍युइंगम अथवा भोजन के अलावा अन्‍य चीज चबाने से बचें। इसके साथ ही अपने खानपान संबंधी आदतों में भी सकारात्‍मक बदलाव करें।