Thursday, October 01, 2015

आदते मेरे काम हो सकता है आपके काम आये -Habits can be my job to come work for you

हमारे जीवन की कुछ एक सच्चाई थी जो हो सकता है आपके भी काम की हो -स्टूडेंट लाइफ एक बिंदास लाइफ होती है-ये वो पल है जो उम्र के अंतिम पड़ाव पे जाने पर हमे याद करने को प्रेरित करती है -



                                    फोटो 35 वर्ष पहले -

यूँ ही बिना सोचे-समझे पैसा खर्च करने की आदत ने मुझे मेरे जीवन में बड़े आर्थिक-संकट(Financial problem ) में डाला -मै दुसरो में अपना रुतबा (Status ) बनाये रखने के लिए महंगे-से महंगे कपडे खरीद लेता -वास्तव में जिसकी मुझे कोई जरूरत नहीं थी -बाज़ार से महंगे Gift खरीद कर -दोस्तों को देना और उनके बीच अपनी अहमियत(Importance ) बनाए रखना शायद मेरी आदत में शुमार (Force of habit ) था -लेकिन जीवन में जब बुरा वक्त आता है और लोग आपको छोड़ जाते है -तब हो सकता है आपको संभलने की अक्ल आ जाए | मैंने आदतन पैसा खर्च करने के स्वभाव पर काबू पा लिया है। अब कुछ भी खरीदने से पहले मैं थोड़ा समय लगाता हूँ। मैं यह देखता हूँ कि क्या मेरे पास उसे खरीदने के लिए पैसे हैं, या मुझे उसकी वाकई ज़रूरत है या नहीं। 35 साल पहले मुझे इसका बहुत लाभ मिला होता-


मुझे अच्छी तरह याद है -जब हम हाई-स्कूल में थे तब भाग-दौड़ और बेडमिन्टन -रेसिंग में भाग लेता था |कालेज पंहुचने के बाद मेरी रूचि धीरे-धीरे कम होती गई -हमारे जीवन की गतिशीलता चली गई -और आज उसका परिणाम ये है कि थोडा सा भी बच्चो के साथ बाहर खेलने में ही मेरी साँस फूल जाती है मोटापा भी थोडा बहुत बढ़ गया -अब फिर से भाग-दौड़ की आदत शुरू की है -अब खाई-पी गई चर्बी का दोहन हो रहा है-


सभी जानते है और मै भी जानता हूँ कि अपने बजट और खर्चो पे मनुष्य को नियंत्रण करना चाहिए -इसके बावजूद मैने इस मामले में भी हमेशा आलस किया या फिर ये समझ ले कि मुझे ठीक से पता नहीं था कि इसे नियंत्रित केसे करते है -लेकिन अब बहुत सीख चुका हूँ कुछ अपनों ने सिखाया है -कुछ समाज ने सिखा दिया -क्युकि इस अनुभव की हमारे ज़माने में कोई किताब  नहीं थी -इसे व्यवहार द्वारा ही सीख सकते है और उम्मीद है कि ये ज्ञान अपने नाती-पोतो को भी दे सकूँगा -


बचपन से ही तली-भुनी चीजो में हमारी रूचि थी -लेकिन उस उम्र में गतिशीलता के चलते मोटा नहीं हुआ था -आज की लाइफ स्टाइल तो पिज्जा,बर्गर,पास्ता,नुडल्स से शुरू होती है जबकि इसमें क्या है ये सभी जानते है -पर्याप्त गुण कुछ नहीं -बस आपको मिलता है -विटामिन के रूप में "कब्ज "-लेकिन भगवान् का शुक्र है कि 55 में भी अब तक रोगों से मुक्त हूँ -


अपने स्वास्थ्य के बारे में तो हम तभी सोचना शुरू करते हैं जब हम कुछ प्रौढ़ होने लगते हैं। एक समय मेरी जींस बहुत टाइट होने लगी और कमर का नाप कई इंच बढ़ गया। उस दौरान पेट पर चढी चर्बी अभी भी पूरी तरह से नहीं निकली है। काश किसी ने मुझे उस समय ‘आज’ की तस्वीर दिखाई होती जब मैं जवाँ था और एक साँस में सोडे की बोतल ख़त्म कर दिया करता था-


धूम्रपान की शुरुआत मैंने कुछ बड़े होने के बाद ही की। क्यों की, यह बताना ज़रूरी नहीं है लेकिन मुझे हमेशा यह लगता था कि मैं इसे जब चाहे तब छोड़ सकता हूँ। ऐसा मुझे कई सालों तक लगता रहा जब एक दिन मैंने छोड़ने की कोशिश की लेकिन छोड़ नहीं पाया। पाँच असफल कोशिशों के बाद मुझे यह लगने लगा कि मेरी लत वाकई बहुत ताकतवर थी। आखिरकार 17 जुलाई 2001 को मैंने धूम्रपान करना पूरी तरह बंद कर दिया लेकिन इसने मेरा कितना कुछ मुझसे छीन लिया।ये शायद आपको समझने में कुछ वक्त लगे -


आप यह न सोचें कि मुझे इस बात का पता उस समय नहीं था जब मैं 18-20 साल का था। मैं इसे बखूबी जानता था लेकिन मैंने इसके बारे में कभी नहीं सोचा। जब तक मैं 40 की उम्र पार नहीं कर गया तब तक हमने अपने भविष्य की बचत सोचा ही नहीं था -आज लगता है काश कुछ जल्दी सोच लेते तो आज की व्यवस्था के साथ चल रहे होते -मगर आप जब सोचे तभी सवेरा ...!


जीवन में जो कुछ भी आपको कठिन लगता है वह आपके काम का होता है  यह ऐसी बात है जो ज्यादा काम की नहीं लगती। एक समय था जब मुझे काम मुश्किल लगता था। मैंने काम किया ज़रूर, लेकिन बेमन किया। अगर काम न करने की छूट होती तो मैं नहीं करता। परिश्रम ने मुझे बहुत तनाव में डाला। मैं कभी भी परिश्रम नहीं करना चाहता था। लेकिन मुझे मिलने वाला सबक यह है कि जितना भी परिश्रम मैंने जाने -अनजाने में किया उसने मुझे सदैव दूर तक लाभ पहुँचाया। आज भी मैं उन तनाव के दिनों में कठोर परिश्रम करते समय सीखे हुए हुनर और आदतों की कमाई खा रहा हूँ। उनके कारण मैं आज वह बन पाया हूँ जो मैं आज हूँ। इसके लिए मैं अपनी माँ का एहसान -मंद हूँ जिनके कठोर वचनों से मै मेहनत-कश इन्शान बन सका -


जांचे-परखे कोई पुराना सामान नहीं खरीदें - सबसे पहली बात पुराना सामान जिसने भी बेचने का फेसला किया है उसके कारण तो ये भी हो सकते है वो उससे परेशान हो -उस वस्तु में खराबी हो -किसी की नजर लगी हो -क्या पता आपको भी नुकसान दे -मेरे जीवन में जब भी कोई पुराना सामान खरीदा -मुझे लाभ की अपेक्षा सिर्फ नुक्सान ही हुआ है -

आप अपने से बलशाली और ताकतवर को पैसा दे रहे है उधार के रूप में - तो उस दिन ये अवश्य सोचे कि वो पैसा अब आपका नहीं है - क्युकि अब वापस देना उसकी मर्जी पे आधारित है -दे दिया तो भला व्यक्ति है -नहीं दिया तो आप में सामर्थ लेने की नहीं -


बचपन से एक रूचि थी पढने-और लिखने की -शायद आर्थिक स्थिति मजबूत न थी वर्ना आज लेखक ही होता -क्युकि लेखक को तब का वक्त था जब दयनीय परिस्थिति का सामना करना होता था -काम करना जीविको-पार्जन के लिए आवश्यक था - आज थोडा समय है तो इस शौक को पूरा कर लेता हूँ -

काम के दौरान बनने वाले दोस्त काम से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं -मैंने कई जगहों में काम किया और बहुत सारी चीज़ें खरीदीं और इसी प्रक्रिया में बहुत सारे दोस्त भी बनाये। काश मैं यहाँ-वहां की बातों में समय लगाने के बजाय अपने दोस्तों और परिजनों के साथ बेहतर वक़्त गुज़र पाता-


टीवी देखना समय की बहुत बड़ी बर्बादी है ये मुझे लगता है कि साल भर में हम कई महीने टी वी देख चुके होते हैं। रियालिटी में  टी वी देखने का क्या तुक है जब रियालिटी हाथ से फिसली जा रही हो-खोया हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता -इसे टी वी देखने में बरबाद न करें।टीआरपी उनकी बढ़ रही है आप अपना ब्लड-प्रेशर क्यों बढ़ा रहे है - समय का सदुपयोग जितना ही करेगे वही आपका भविष्य निर्धारण करेगा - महिलायों को टी वी देखने दे -क्युकि उनको सास-बहु का चरित्र देख कर ट्रेनिग लेनी है -


मेरे काम में और निजी ज़िंदगी में मेरे साथ ऐसा कई बार हुआ जब मुझे लगने लगा कि मेरी दुनिया बस ख़त्म हो गयी। जब समस्याएँ सर पे सवार हो जाती थीं तो अच्छा खासा तमाशा बन जाता था। इस सबके कारण मैं कई बार अवसाद का शिकार हुआ। वह बहुत बुरा वक़्त था। सच तो यह था कि हर समस्या मेरे भीतर थी और मैं सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर खुश रह सकता था। मैं यह सोचकर खुश हो सकता था कि मेरे पास कितना कुछ है जो औरों के पास नहीं है। अपने सारे दुःख-दर्द मैं ताक पर रख सकता था-


ब्लॉग्स केवल निजी पसंद-नापसंद का रोजनामचा नहीं हैं पहली बार मैंने ब्लॉग्स 7-8 साल पहले पढ़े। पहली नज़र में मुझे उनमें कुछ ख़ास रूचि का नहीं लगा -बस कुछ लोगों के निजी विचार और उनकी पसंद-नापसंद-उनको पढ़के मुझे भला क्या मिलता-मुझे अपनी बातों को दुनिया के साथ बांटकर क्या मिलेगा- मैं इन्टरनेट पर बहुत समय बिताता था और एक वेबसाईट से दूसरी वेबसाईट पर जाता रहता था लेकिन ब्लॉग्स से हमेशा कन्नी काट जाता था। पिछले 3-4 सालों के भीतर ही मुझे लगने लगा कि ब्लॉग्स बेहतर पढने-लिखने और लोगों तक अपनी बात पहुंचाने और जानकारी बांटने का बेहतरीन माध्यम हैं। 7-8 साल पहले ही यदि मैंने ब्लॉगिंग शुरू कर दी होती तो अब तक मैं काफी लाभ उठा चुका होता।


याददाश्त बहुत धोखा देती है -मेरी याददाश्त बहुत कमज़ोर है। मैं न सिर्फ़ हाल की बल्कि पुरानी बातें भी भूल जाता हूँ। अपने बच्चों से जुडी बहुत सारी बातें मुझे याद नहीं हैं क्योंकि मैंने उन्हें कहीं लिखकर नहीं रखा। मुझे ख़ुद से जुडी बहुत सारी बातें याद नहीं रहतीं। ऐसा लगता है जैसे स्मृतिपटल पर एक गहरी धुंध सी छाई हुई है। यदि मैंने ज़रूरी बातों को नोट कर लेने की आदत डाली होती तो मुझे इसका बहुत लाभ मिलता।


शराब बुरी चीज़ है -मैं इसके विस्तार में नहीं जाऊँगा। बस इतना कहना ही काफी होगा कि मुझे कई बुरे अनुभव हुए हैं। शराब और ऐसी ही कई दूसरी चीज़ों ने मुझे बस एक बात का ज्ञान करवाया है -शराब सिर्फ़ शैतान के काम की चीज़ है।इन्शान शैतान बनने के लिए ही शराब का सेवन करता है - इसे पी कर कोई सात्विक कार्य नहीं होता है -हाँ -कमजोर मन वाले इसे पी कर -अपना अंतर्मन के उद्दगार जरुर प्रकट कर लेते है -

उपचार और प्रयोग-

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