हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से परिभाषित करता है, किन्तु अगर हम इस बात पर अध्यन करे यह क्रिया जीवन में क्या स्थान रखती है और जीवन में ये कितनी बार नैतिक है तो भी इसका कोई हल सामने आ पाना बहुत ही जटिल है-
"एक बार जब सुकरात के शिष्य ने उनसे संभोग विषय में पूछा तो सुकरात का कहना ये था ये यह क्रिया मनुष्य को जीवन में सिर्फ एक बार संतानुत्पत्ति के समय पर ही करनी चाहिए, तब उनके शिष्य ने पूछा की अगर व्यक्ति मात्र एक बार इस क्रिया को करने से संतुष्ट न हो तो वो क्या करे तब सुकरात ने कहा की अगर जीवन में एक बार इस क्रिया द्वारा संतुष्टि न मिले तो एक वर्ष में एक बार वह इस सम्भोग क्रिया को कर सकता है , तो फिर शिष्य ने पूछा अगर उससे भी संतुष्टि न मिले तो-
तब सुकरात ने कहा ऐसी परिस्थिति में माह में एक बार और अगर उससे भी सतुष्टि ना मिले तो हफ्ते में एक बार ,तो फिर शिष्य ने पूछा अगर उससे भी संतुष्टि न मिले तो-तो सुकरात ने उत्तर दिया ऐसी परिस्थिति में वो पहले अपनी कब्र खोद ले और और फिर उससे जो करना है वो करे"
अगर हम पुराने प्रख्यात दार्शनिक और सम्मानित पुस्तकों का अध्यन करे तो आसानी से पा जायेंगे की सभी ने वीर्य संचय को एक बहुत ही बड़े कार्य की तरह माना है और इसे एक उच्च दर्जा दिया है साथ ही यह भी स्पष्ट किया है की मात्र वीर्य संचय के माध्यम से ही मनुष्य सच्ची सफलता को प्राप्त कर सकता है , पर जब हम आज के वातावरण पर नज़र डाले तो हर व्यक्ति इस क्रिया के पीछे छुपे हुए भोग को छुपाने के लिए नित्य नए मिथ्या तर्क देता है हर तरह से इस बात को साबित करने की कोशिश करता है की यह इंसान की रोज़मर्रा की आवश्यकता की तरह है या फिर इस फायदे होने की बात को प्रस्तुत कर इसे जरुरी बताता है -
वासना की अग्नि में भस्म करके मनुष्य खुद को उत्कृष्ठ साबित नहीं कर सकता है ।तब उनकी आयु भी जादा होती थी और असमय बाल सफ़ेद होना दांतों का गिरना या आज की प्रचलित बीमारियाँ नहीं हुआ करती थी आज के युग की नई -नई बीमारियों का कही भी नामोनिशान भी न था कोई इन्हें जानता तक न था आज जितने डॉक्टर उपलब्ध है उससे जादा बीमारियों ने घेर लिया है -
युवा हस्तमैथुन जेसी आदत और सेक्स से ओतप्रोत है जीवन का मूल उदेश्य समझ बेठे है . नासमझी की तर्कहीन बाते है इसलिए त्रस्त है और इन कारणों से असमय जवान होना और असमय बुढ़ापा आ जाना इन्ही नासमझी का दुष्परिणाम है -
सच चाहे जो भी हो मगर एक बात तो सिद्ध है की खुद को इस तरह की वैसे भी जब लोग नियम-पूर्वक संतानोत्पति के लिए इस क्रिया करते थे रोग का इजाफा कम था आज खान -पान का व्यवहार बदल गया है युवा पीढ़ी को पौष्टिक खाना नहीं है -
जीवन के सार को समझे जीवन की जीवनी शक्ति को यूँ ही न बर्बाद करे संजोये ये ही है जो आपका है सब कुछ करना समयानुसार ही उचित है क्युकि वक्त जब हाथ से निकल जाता है फिर कुछ नहीं मिलता है-
सुकरात की एक कथा :-
तब सुकरात ने कहा ऐसी परिस्थिति में माह में एक बार और अगर उससे भी सतुष्टि ना मिले तो हफ्ते में एक बार ,तो फिर शिष्य ने पूछा अगर उससे भी संतुष्टि न मिले तो-तो सुकरात ने उत्तर दिया ऐसी परिस्थिति में वो पहले अपनी कब्र खोद ले और और फिर उससे जो करना है वो करे"
अगर हम पुराने प्रख्यात दार्शनिक और सम्मानित पुस्तकों का अध्यन करे तो आसानी से पा जायेंगे की सभी ने वीर्य संचय को एक बहुत ही बड़े कार्य की तरह माना है और इसे एक उच्च दर्जा दिया है साथ ही यह भी स्पष्ट किया है की मात्र वीर्य संचय के माध्यम से ही मनुष्य सच्ची सफलता को प्राप्त कर सकता है , पर जब हम आज के वातावरण पर नज़र डाले तो हर व्यक्ति इस क्रिया के पीछे छुपे हुए भोग को छुपाने के लिए नित्य नए मिथ्या तर्क देता है हर तरह से इस बात को साबित करने की कोशिश करता है की यह इंसान की रोज़मर्रा की आवश्यकता की तरह है या फिर इस फायदे होने की बात को प्रस्तुत कर इसे जरुरी बताता है -
वासना की अग्नि में भस्म करके मनुष्य खुद को उत्कृष्ठ साबित नहीं कर सकता है ।तब उनकी आयु भी जादा होती थी और असमय बाल सफ़ेद होना दांतों का गिरना या आज की प्रचलित बीमारियाँ नहीं हुआ करती थी आज के युग की नई -नई बीमारियों का कही भी नामोनिशान भी न था कोई इन्हें जानता तक न था आज जितने डॉक्टर उपलब्ध है उससे जादा बीमारियों ने घेर लिया है -
युवा हस्तमैथुन जेसी आदत और सेक्स से ओतप्रोत है जीवन का मूल उदेश्य समझ बेठे है . नासमझी की तर्कहीन बाते है इसलिए त्रस्त है और इन कारणों से असमय जवान होना और असमय बुढ़ापा आ जाना इन्ही नासमझी का दुष्परिणाम है -
सच चाहे जो भी हो मगर एक बात तो सिद्ध है की खुद को इस तरह की वैसे भी जब लोग नियम-पूर्वक संतानोत्पति के लिए इस क्रिया करते थे रोग का इजाफा कम था आज खान -पान का व्यवहार बदल गया है युवा पीढ़ी को पौष्टिक खाना नहीं है -
जीवन के सार को समझे जीवन की जीवनी शक्ति को यूँ ही न बर्बाद करे संजोये ये ही है जो आपका है सब कुछ करना समयानुसार ही उचित है क्युकि वक्त जब हाथ से निकल जाता है फिर कुछ नहीं मिलता है-
उपचार और प्रयोग -
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