अगर आप अपने दाँतो की अच्छे से Care नहीं करते तो दाँतो एवं मसूडों में होने वाली Diseases आपके दाँतो को समय से पहले Finished कर सकते हैं | कुछ बहुत ही Simple से तरीकों से आपके दाँत आपके साथ बहुत Long time तक रह सकते हैं -
हम सबके मुंह में हमेशा लाखों Bacteria रहते हैं जिनका कि एक ही लक्ष्य होता है कि किसी तरह से कोई कड़ी सतह मिल जाए तो उस पर जाकर चिपक जाएँ और फिर एक बड़ा समूह बना लें| यह प्रक्रिया साल के 365 दिन, और चौबीसों घंटे हमारे मुंह में होती रहती है | इस Process को रोका नहीं जा सकता क्योंकि ये बैक्टीरिया हमारे शरीर का एक हिस्सा हैं | जब ये बेक्टीरिया कड़ी सतह यानी हमारे दाँतो पर चिपकते हैं तो एक अदृश्य सतह, जिसको कि प्लेक कहते हैं, हमारे दांतों के चारों ओर बना देते हैं | आपने शायद सुबह को उठकर अपने दाँतो पर जीभ फिराते हुए कभी उस प्लेक को महसूस भी किया हो | The main purpose of taking care of teeth with the help of brush or Foss has to clear the plaque-
अपने दाँतो को दिन में कम से कम दो बार लगभग दो मिनट या इससे ज्यादा ब्रश करना चाहिए | ब्रश सभी दांतों के आगे पीछे सभी जगह करना चाहिए और जीभ को भी साफ़ रखना चाहिए |
सोने से पहले ब्रश करना सबसे ज्यादा Beneficial रहता है | दिन में मुँह में रहने वाली राल भी हमारे दांतों को बचाती है जबकि रात में हमारा मुह सूखा रहता है और फंसा हुआ खाना उनको नुक्सान पहुंचाता है | अगर किसी कारण कभी आप रात में ब्रश न कर पाए तो आपको पानी से जोरदार कुल्ला जरूर करना चाहिए |
हमारे दाँतो की सभी सतहो तक ब्रश नहीं पहुँच पाता | दो दांतों के बाच की जगह में फंसा खाना दांतों को बहुत ही नुक्सान पहुंचाता है इसको निकालने के लिए बहुत ही पतले धागे का इस्तेमाल किया जाता है जिसको फ्लोस करना कहते हैं | पुराने ज़माने में लोग खाना खाने के बाद दांत को कुरेदना अच्छा मानते थे | ऐसा करना दांतों के साथ मसूडो को भी बहुत फायदा पहुंचाता है |
मुँह को स्वस्थ रखने के लिए जीभ को साफ़ करना भी उसी तरह जरूरी है जैसे दाँतो को साफ़ करना जबकि हम अक्सर जीभ (Tongue) की तरफ ध्यान नहीं देते |
मुँह में बदबू, मसूडों या जीभ पर जमी मैल के कारण ही होती है | आपकी साफ़ जीभ आपके दाँतो और मसूडो को तो स्वस्थ रखती ही है साथ ही साथ ये आपकी साँस को भी Freshness प्रदान करती है |
Snacks खाने से जितना बच सकें बचना चाहिए क्यूंकि Snacks में प्रयुक्त मसाले बहुत जल्दी ही दांतों में प्लेक को बनने में मदद करते हैं जिससे जल्दी ही दाँतो में Cavity हो जाती है |
चॉकलेट (Chocolate) खाने से बचना चाहिए | चीज़ और दूध स्वस्थ दांतों के लिए अच्छे होते हैं | मीठा कम खाना चाहिए | Green vegetables खानी चाहियें | सोडा या जूस के स्थान पर पानी पीना चाहिए क्योंकि फलों के जूस में भी Acids and sugar होते हैं जोकि दांतों को नुक्सान पहुंचाते हैं |
आज कल करीब 90 फीसदी लोगों को दांतों से जुड़ी कोईन कोई बीमारी या परेशानी होती है , लेकिन ज्यादातर लोग बहुत ज्यादा दिक्कत होने पर ही Dentist के पास जाना पसंद करते हैं। इससे कई बार छोटी बीमारी सीरियस बन जाती है। अगर सही ढंग से साफ - सफाई के अलावा हर 6 महीने में रेग्युलर चेकअप कराते रहें तो दांतों कीज्यादातर बीमारियों को काफी हद तक Serious बनने रोका जा सकता है।
दांतों में ठंडा - गरम लगना , कीड़ा लगना ( कैविटी ) , पायरिया ( मसूड़ों से खून आना ) , मुंह से बदबू आना और दांतों का Discolouration होना जैसी बीमारियां सबसे कॉमन हैं।
दांत में कीड़ा लगना (Loss of tooth worm):-
दांत में सूराख(Eyelet) होने की वजह होती है , मुंह में बननेवाला एसिड। हमारे मुंह में आम तौर पर बैक्टीरिया रहते हैं। जब हम खाना खाते हैं तो खाने के बाद अगर हम कुल्ला या ब्रश न करें तो खाने के कुछ कण मुंह में रह जाते हैं। ऐसी सूरत में खाना खा चुकने के 20 मिनटों के अंदर ही बैक्टीरिया खाने के कणों खासकर मीठी या स्टार्च वाली चीजों को एसिड में बदल देते हैं। बैक्टीरिया वाला यह एसिड और मुंह की लार मिलकर एक चिपचिपा पदार्थ ( प्लाक ) बनाते हैं। यह कुछ दांतों पर चिपक जाता है। अगर काफी दिनों तक उन दांतों की ढंग से सफाई न हो तो यह प्लाक सख्त होकर टारटर बन जाता है और दांतों व मसूड़ों को खराब करने लगता है। प्लाक का बैक्टीरिया जब दांतों में सूराख ( कैविटी ) कर देता है तो इसे ही कीड़ा लगना ( कैरीज ) कहते हैं।
बचाव (Rescue):-
कीड़ा लगने से बचने का सबसे सही तरीका है कि रात को ब्रश करके सोएं। मीठी और स्टार्च आदि की चीजें कम खाएं और बार - बार न खाएं। मीठी चीजें खाने के बाद कुल्ला करें या ब्रश करें। दांतों की अच्छी तरह सफाई करें-
अगर दांतों पर काले - भूरे धब्बे नजर आने लगें , खाना किसी दांत में फंसने लगे और ठंडा - गरम लगने लगे तो कैविटी हो सकती है। इस हालत में तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। शुरुआत में ही ध्यान देने पर कैविटी बढ़ने से रुक जाती है।
तुरंत राहत के लिए :-
अगर दांत में दर्द हो रहा हो तो पैरासिटामोल , एस्प्रिन , इबो - प्रोफिन आदि ले सकते हैं। दवा न होने पर लौंग दाढ़ पर दबा सकते हैं या लौंग का तेल भी लगा सकते हैं। यह मसूड़ों के दर्द से राहत दिलाता है। इसके बाद डॉक्टर के पास जाकर फिलिंग कराएं।
फिलिंग क्यों जरूरी :-
फिलिंग(Filling) न कराएं तो दांत में ठंडा - गरम और खट्टा - मीठा लगता रहेगा। फिर दांत में दर्द होने लगता है और पस बन जाती है। आगे जाकर रूट कनाल ट्रीटमंट की नौबत आ जाती है। यानी जितनी जल्दी फिलिंग कराएं , उतना अच्छा है।
कौन सी Filling :-
टेंपरेरी फिलिंग (Temporary fillings):-
यह उस वक्त करते हैं , जब दांत में काफी गहरी कैविटी हो। बाद में दर्द या सेंसटिविटी नहीं होने पर परमानेंट फिलिंग कर देते हैं। अगर दिक्कत होती है तो रूट कनाल या फिर दांत निकाला जाता है।
सिल्वर फिलिंग (Silver fillings):-
इसे एमैल्गम(Malgm) भी कहते हैं। इसमें सिल्वर , टिन , कॉपर को मरकरी के साथ मिला कर मिक्सचर तैयार किया जाता है।
सबसे पहले कीड़े की सफाई और कैविटी कटिंग की जाती है। इसके बाद जिंक फॉस्फेट सीमेंट की लेयर लगाई जाती है ताकि फिलिंग में इस्तेमाल होनेवाली मरकरी जड़ तक पहुंचकर नुकसान न पहुंचाए। इसके बाद एमैल्गम भरा जाता है। फिलिंग कराने के एक घंटे बाद तक कुछ न खाएं। बाद में फिलिंग वाली दाढ़ के दूसरी तरफ से खा सकते हैं। 24 घंटे बाद फिलिंग वाले दांत से खा सकते हैं। यह दूसरी फिलिंग्स से सस्ती और ज्यादा मजबूत होती है।
यह ग्रे / ब्लैक होती है। देखने में खराब लगती है। इसे मरकरी से मिक्स किया जाता है। नॉर्वे और स्वीडन में इस अमैलगम पर बैन है। साथ ही , लीकेज होने के खतरे के अलावा कई बार इसमें जंग भी लग जाती है।
कंपोजिट फिलिंग (Composite fillings):-
इसे Cosmetic या Tooth-colored fillings भी कहते हैं। इसे बॉन्डिंग टेक्निक और लाइट क्योर मैथड से तैयार किया जाता है।
इसमें सबसे पहले कैविटी कटिंग की जाती है , फिर Surface को फॉस्फेरिक एसिड के साथ खुरदुरा किया जाता है। इससे सरफेस एरिया बढ़ने के अलावा मटीरियल अच्छी तरह सेट हो जाता है। इसके बाद मटीरियल भरा जाता है। छोटी - छोटी मात्रा में कई बार मटीरियल भरा जाता है। हर बार करीब 30 सेकंड तक एलईडी लाइट गन की नीली रोशनी से उसे पक्का किया जाता है। इसके बाद उभरी सतह को घिसकर शेप दी जाती है और Polishing होती है। फिलिंग कराने के तुरंत बाद खा सकते हैं।
यह टूथ कलर की होती है। देखने में पता भी नहीं चलता कि फिलिंग की गई है। यह ज्यादा टिकाऊ होती है। अब नैनो तकनीक(Nanotechnology) का मटीरियल आने से यह फिलिंग और भी बेहतर हो गई है।
नुकसान :-
फिलिंग कराते हुए दांत सूखा होना चाहिए , वरना मटीरियल निकलने का डर होता है। बच्चों में यह फिलिंग नहीं की जाती। आमतौर पर उन्हीं दांतों में की जाती है , जिनसे खाना चबाते हैं।
जीआईसी फिलिंग (GIC Filling):-
इसका पूरा नाम ग्लास इनोमर सीमेंट फिलिंग है। यह ज्यादातर बच्चों में या बड़ों में कुछ सेंसेटिव दांतों में की जाती है। इसमें सिलिका होता है। यह हल्की होती है , इसलिए चबाने वाले दांतों में यह फिलिंग नहीं की जाती। फिलिंग कराने के एक घंटे बाद तक कुछ न खाना बेहतर रहता है।
यह सेल्फ क्योर और लाइट क्योर , दोनों तरीकों से लगाई जाती है।
इसमें मौजूद फ्लोराइड आगे कीड़ा लगने से रोकता है , इसलिए इसे प्रिवेंटिव फिलिंग (Preventive filling) भी कहा जाता है।
नुकसान :-
यह होती तो सफेद ही है , पर दांतों के रंग से मैच न करने से देखने में अच्छी नहीं लगती और सभी दांतों में इसे नहीं भरा जाता। चबाने वाले और सामने वाले दांतों में इसके इस्तेमाल से बचा जाता है क्योंकि यह ज्यादा मजबूत नहीं होती। वैसे , अब जीआईसी फिलिंग में भी दांतों के रंग के शेड आने लगे हैं।
कभी -कभी कब निकल जाती है फिलिंग :-
जब फिलिंग को पूरा सपोर्ट न मिला हो
जब सही मटीरियल और तकनीक इस्तेमाल न की गई हो
जब फिलिंग कराते हुए दांत सूखा न रहा हो , उसमें लार आ गई हो
जब दांत और फिलिंग के बीच गैप आने से माइक्रो लीकेज हो जाए
जब कैविटी की शेप और साइज ठीक न हो
जब कैविटी काफी बड़ी हो
फिलिंग से जुड़े दो और जरूरी बात :-
फिलिंग कराने के बाद कई बार दांत में सेंसिटिविटी आ जाती है यानी उस दांत पर ठंडा या गर्म महसूस होने लगता है। लेकिन यह कुछ दिनों में ठीक न हो तो डॉक्टर को दिखाएं।
फिलिंग कराने के बाद कीड़ा बढ़ता नहीं है लेकिन कई बार थोड़ी - बहुत लीकेज हो सकती है तो कई बार फिलिंग के नीचे ही कीड़ा लग जाता है। ऐसे में अगर फिलिंग पुरानी हो गई है तो हर 6 महीने में चेक करानी चाहिए।
रूट कनाल (Root Canal):-
जब कीड़ा काफी बढ़ जाता है , दांत में गहरा सूराख कर देता है और जड़ों तक इंफेक्शन फैल जाता है तो रूट कनाल किया जाता है। जिन टिश्यूज में इंफेक्शन हो गया है , उन्हें Sterilization करके दांत में एक मटीरियल भर दिया जाता है , ताकि वह बरकरार रहे। यानी दांत ऊपर से पहले जैसा ही रहता है और काम करता है , जबकि दांत की ब्लड सप्लाई काट देते हैं। इससे कोई नुकसान नहीं होता। हां , दांत में इंफेक्शन या किसी और बीमारी की आशंका खत्म हो जाती है। इस प्रक्रिया में अक्सर दांत के टूटने की आशंका बढ़ जाती है , इसलिए जरूरी है कि दांत पर Crown लगाया जाए। इससे दांत का फ्रेक्चर भी रुकता है , लुक भी पहले जैसा बना रहता है। कभी - कभी रूट कनाल फेल भी हो जाती है। उसमें पस पड़ जाती है , तब डॉक्टर तय करता है दांत निकालें या नहीं। ऐसी स्थिति में फिर से इलाज किया जाता है। इस पूरे प्रॉसेस में चार - पांच सिटिंग लगती हैं।
ठंडा-गरम लगना (Cold-Hot embark):-
दांत के टूटने , नींद में किटकिटाने , घिसने के बाद , मसूड़ों की जड़ें दिखने और दांतों में कीड़ा लगने पर ठंडा - गरम लगने लगता है। कई बार बेहद दबाव के साथ ब्रश करने से भी दांत घिस जाते हैं और दांत Sensitive बन जाते हैं।
इसलिए ध्यान रक्खे कि ज्यादा दबाव से ब्रश न करें और दांत पीसने से बचें।
इलाज :-
इलाज वजह के मुताबिक होता है। फिर भी आमतौर पर डॉक्टर इसके लिए मेडिकेटेड टूथपेस्ट की सलाह देते हैं , जैसे कि सेंसोडाइन , थर्मोसील रैपिड एक्शन , सेंसोफॉर्म , कोलगेटिव सेंसटिव आदि। बिना डॉक्टर की सलाह लिए भी इन्हें इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन दो - तीन महीने के बाद भी समस्या बनी रहे तो डॉक्टर को दिखाएं।
सांस में बदबू (Breath stink):-
अधिकतर 95 फीसदी मामलों में Gums and teeth की ढंग से सफाई न होने और उनमें सड़न व बीमारी होने पर मुंह से बदबू आती है। कुछ मामलों में पेट खराब होना या मुंह की लार का गाढ़ा होना भी इसकी वजह होती है। प्याज और लहसुन आदि खाने से भी मुंह से बदबू आने लगती है।
इलाज (Treatment):-
लौंग , इलायची चबाने से इससे छुटकारा मिल जाता है। थोड़ी देर तक शुगर - फ्री च्यूइंगगम चबाने से मुंह की बदबू के अलावा दांतों में फंसा कचरा निकल जाता है और मसाज भी हो जाती है। इसके लिए बाजार में माउथवॉश भी मिलते हैं।
पायरिया (Pyorrhea):-
मुंह से बदबू आने लगे , मसूड़ों में सूजन और खून निकलने लगे और चबाते हुए दर्द होने लगे तो पायरिया हो सकता है। पायरिया होने पर दांत के पीछे सफेद - पीले रंग की परत बन जाती है। कई बार हड्डी गल जाती है और दांत हिलने लगता है।पायरिया की मूल वजह दांतों की ढंग से सफाई न करना है।
इलाज (Treatment):-
पायरिया का सर्जिकल और नॉन सर्जिकल दोनों तरह से इलाज होता है। शुरू में इलाज कराने से सर्जरी की नौबत नहीं आती। क्लीनिंग , डीप क्लीनिंग ( मसूड़ों के नीचे ) और फ्लैप सर्जरी से पायरिया का ट्रीटमंट होता है।
दांत निकालना कब जरूरी :-
दांत अगर पूरा खोखला हो गया हो , भयंकर इन्फेक्शन हो गया हो , मसूड़ों की बीमारी से दांत हिल गए हों या बीमारी दांतों की जड़ तक पहुंच गई हो तो दांत निकालना जरूरी हो जाता है।
ब्रश करने का सही तरीका :-
हर बार खाने के बाद ब्रश करना चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। ऐसे में दिन में कम - से - कम दो बार ब्रश जरूर करें और हर बार खाने के बाद कुल्ला करें। दांतों को तीन - चार मिनट ब्रश करना चाहिए। कई लोग दांतों को बर्तन की तरह मांजते हैं , जोकि गलत है। इससे दांत घिस जाते हैं। आमतौर पर लोग जिस तरह दांत साफ करते हैं , उससे 60-70 फीसदी ही सफाई हो पाती है।
दांतों को हमेशा सॉफ्ट ब्रश से हल्के दबाव से धीरे - धीरे साफ करें। मुंह में एक तरफ से ब्रशिंग शुरू कर दूसरी तरफ जाएं। बारी - बारी से हर दांत को साफ करें। ऊपर के दांतों को नीचे की ओर और नीचे के दांतों को ऊपर की ओर ब्रश करें। दांतों के बीच में फंसे कणों को फ्लॉस ( प्लास्टिक का धागा ) से निकालें। इसमें 7-8 मिनट लगते हैं और यह अपने देश में ज्यादा कॉमन नहीं है। दांतों और मसूड़ों के जोड़ों की सफाई भी ढंग से करें। उंगली या ब्रश से धीरे - धीरे मसूड़ों की मालिश करने से वे मजबूत होते हैं।
जीभ की सफाई (Tongue cleaning):-
जीभ को टंग क्लीनर और ब्रश , दोनों से साफ किया जा सकता है। टंग क्लीनर का इस्तेमाल इस तरह करें कि खून न निकले।
कैसा ब्रश ले (How to Brush):-
ब्रश सॉफ्ट और आगे से पतला होना चाहिए। करीब दो - तीन महीने में या फिर जब ब्रसल्स फैल जाएं , तो ब्रश बदल देना चाहिए।
टूथपेस्ट की भूमिका (The role of toothpaste):-
दांतों की सफाई में टूथपेस्ट की ज्यादा भूमिका नहीं होती। यह एक Medium है , जो लुब्रिकेशन , फॉमिंग और फ्रेशनिंग का काम करता है। असली एक्शन ब्रश करता है। लेकिन फिर भी अगर टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें , तो उसमें फ्लॉराइड होना चाहिए। यह दांतों में कीड़ा लगने से बचाता है। पिपरमिंट वगैरह से ताजगी का अहसास होता है। टूथपेस्ट मटर के दाने जितना लेना काफी होता है।
पाउडर(Powder) यानी मंजन :-
टूथपाउडर और मंजन के इस्तेमाल से बचें। टूथपाउडर बेशक महीन दिखता है लेकिन काफी खुरदुरा होता है। टूथपाउडर करें तो उंगली से नहीं , बल्कि ब्रश से। मंजन इनेमल को घिस देता है।
दातुन (Datun):-
नीम के दातुन में बीमारियों से लड़ने की क्षमता होती है लेकिन यह दांतों को पूरी तरह साफ नहीं कर पाता। बेहतर विकल्प ब्रश ही है। दातुन करनी ही हो तो पहले उसे अच्छी तरह चबाते रहें। जब दातुन का अगला हिस्सा नरम हो जाए तो फिर उसमें दांत धीरे - धीरे साफ करें। सख्त दातुन दांतों पर जोर - जोर से रगड़ने से दांत घिस जाते हैं।
माउथवॉश (Mouthwash):-
मुंह में अच्छी खुशबू का अहसास कराता है। हाइजीन के लिहाज से अच्छा है लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
नींद में दांत पीसना(Sleep bruxism):-
गुस्सा , तनाव और आदत की वजह से कई लोग नींद में दांत पीसते हैं। इससे आगे जाकर दांत घिस जाते हैं।
इससे बचाव के लिए नाइटगार्ड यूज करना चाहिए।
स्केलिंग और पॉलिशिंग (Scaling and polishing):-
दांतों पर जमा गंदगी को साफ करने के लिए स्केलिंग और फिर पॉलिशिंग की जाती है। यह हाथ और अल्ट्रासाउंड मशीन दोनों तरीकों से की जाती है। चाय - कॉफी , पान और तंबाकू आदि खाने से बदरंग हुए दांतों को सफेद करने के लिए ब्लीचिंग(Bleaching) की जाती है। दांतों की सफेदी करीब डेढ़ - दो साल टिकती है और उसके बाद दोबारा ब्लीचिंग की जरूरत पड़ सकती है।
ध्यान रक्खे :-
अगर कोई परेशानी नहीं है तो कैविटी के लिए अलग से चेकअप कराने की जरूरत नहीं है लेकिन हर छह महीने में एक बार दांतों की पूरी जांच करानी चाहिए।
मुस्कराहट और अच्छे व खूबसूरत दांतों के बीच दोतरफा संबंध है। सुंदर दांतों से जहां मुस्कराहट अच्छी होती है , वहीं मुस्कराहट(Grin) से दांत अच्छे बनते हैं। तनाव दांत पीसने की वजह बनता है , जिससे दांत बिगड़ जाते हैं। तनाव से एसिड भी बनता है , जो दांतों को नुकसान पहुंचाता है।
बच्चों के दांतों की देखभाल(Children's Dental Care):-
छोटे बच्चों के मुंह में दूध की बोतल लगाकर न सुलाएं।
चॉकलेट और च्यूइंगम न खिलाएं। खाएं भी तो तुरंत कुल्ला करें।
बच्चे को अंगूठा न चूसने दें। इससे दांत टेढ़े - मेढ़े हो जाते हैं।
डेढ़ साल की उम्र से ही अच्छी तरह ब्रशिंग की आदत डालें।
छह साल से कम उम्र के बच्चों को फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट न दें।
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