साधारण सी चीज है प्रक्रति ने हमें उपहार के रूप में दिया है -लेकिन इसके गुणों से अनजान है -
आइये जाने अलसी के गुणों को और जीवन में प्रयोग करे-
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयू एच ओ) ने अलसी को सुपर फुड माना है। अलसी में ओमेगा थ्री व सबसे अधिक फाइबर होता है। अतः यह स्वास्थ्यप्रद होने के साथ-साथ रोगों के उपचार में लाभप्रद है। इसमें सभी वनस्पितियों की तुलना में अधिक ओगेमा-3 होता है तभी इसे चिकित्सा विज्ञान में ‘‘वेज ओगेमा’’ कहते है ।
आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है ।
महात्मा गांधीजी ने स्वास्थ्य पर भी शोध की व बहुत सी पुस्तकें भी लिखीं। उन्होंने अलसी पर भी शोध किया, इसके चमत्कारी गुणों को पहचाना और अपनी एक पुस्तक में लिखा है, “जहां अलसी का सेवन किया जायेगा, वह समाज स्वस्थ व समृद्ध रहेगा।”
अलसी का बोटेनिकल नाम " लिनम यूजीटेटीसिमम् "यानी अति उपयोगी बीज है। इसे अंग्रेजी में" लिनसीड "या "फ्लेक्ससीड" कहते हैं।
ओमेगा 3 की शरीर में महत्वपूर्ण भूमिका:-
============================
यह उत्कृष्ट प्रति-आक्सीकरक है और शरीर की रक्षा प्रणाली सुदृढ़ रखता है।प्रदाह या इन्फ्लेमेशन को शांत करता है।तथा ऑखों, मस्तिष्क ओर नाड़ी-तन्त्र का विकास व इनकी हर कार्य प्रणाली में सहायक, अवसाद और व अन्य मानसिक रोगों के उपचार में सहायक, स्मरण शक्ति और शैक्षणिक क्षमता को बढ़ाता है।
ई.पी.ए. और डी.एच.ए. का निर्माण। रक्त चाप व रक्त शर्करा-नियन्त्रण, कॉलेस्ट्रोल-नियोजन, जोड़ों को स्वस्थ रखता है। यह भार कम करता है, क्योंकि यह बुनियादी चयापचय दर (ठडत्द्ध बढ़ाता है, वसा कम करता है, खाने की ललक कम करता है। यकृत, वृक्क और अन्य सभी ग्रंथियों की कार्य-क्षमता बढ़ाता है।
अलसी शुक्राणुओं के निर्माण में सहायता करता है। आधुनिक जीवन शैली के कारण शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 का अनुपात बिगड़ गया है।
शरीर में ओमेगा-3 की कमी व इन्फ्लेमेशन पैदा करने वाले ओमेगा-6 के ज्यादा हो जाने केे कारण ही हम उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक, डायबिटीज, मोटापा, गठिया, अवसाद, दमा, कैंसर आदि रोगों का शिकार हो रहे हैं। ओमेगा-3 की यह कमी 30-60 ग्राम अलसी से पूरी कर सकते हैं। ओमेगा-3 ही अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा दिलाता हैं।
अलसी के सेवन से उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक, डायबिटीज, मोटापा, गठिया, अवसाद, दमा, कैंसर आदि रोगों में लाभ होता है।
डाॅ. बुझवीड ने तो अन्तिम स्थिति के कैंसर तक का इलाज अलसी के तेल से किया है।
अलसी का सेवन किस रोग में व कैसे करें:-
===========================
सुपर फुड अलसी में ओमेगा थ्री व सबसे अधिक फाइबर होता है। यह डब्लयू एच ओ ने इसे सुपर फुड माना है। यह रोगों के उपचार में लाभप्रद है। लेकिन इसका सेवन अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग तरह से किया जाता है।
स्वस्थ व्यक्ति को रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच अलसी का पाउडर पानी के साथ ,सब्जी, दाल या सलाद में मिलाकर लेना चाहिए । अलसी के पाउडर को ज्यूस, दूध या दही में मिलाकर भी लिया जा सकता है। इसकी मात्रा 30 से 60 ग्राम प्रतिदिन तक ली जा सकती है। 100-500 ग्राम अलसी को मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भर कर रख लें। अलसी को अधिक मात्रा में पीस कर न रखें, यह पाउडर के रूप में खराब होने लगती है। सात दिन से ज्यादा पुराना पीसा हुआ पाउडर प्रयोग न करें। इसको एक साथ पीसने से तिलहन होने के कारण खराब हो जाता है। इसे बनाने के लिए हल्का से तवे पे गर्म करके मिक्सी में पीस ले और एयर टाईट डिब्बे में रख ले 30 ग्राम अलसी को नित्य ही दूध या पानी से लिया जा सकता है लेकिन आप इसे एक साथ पांच या छ दिन का ही पावडर बनाये क्युकी इसके बाद इसके गुण ख़त्म हो जाते है ये आपको अनाज बेचने वाले या पंसारी से मिल जाएगा .
खाँसी होेने पर अलसी की चाय पीएं। पानी को उबालकर उसमें अलसी पाउडर मिलाकर चाय तैयार करें।एक चम्मच अलसी पावडर को दो कप (360 मिलीलीटर) पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक यह पानी एक कप न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद, गुड़ या शकर मिलाकर पीएँ। सर्दी, खाँसी, जुकाम, दमा आदि में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है।
डायबीटिज के मरीज को आटा गुन्धते वक्त प्रति व्यक्ति 25 ग्राम अलसी काॅफी ग्राईन्डर में ताजा पीसकर आटे में मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। अलसी मिलाकर रोटियाँ बनाकर खाई जा सकती हैं। अलसी एक जीरो-कार फूड है अर्थात् इसमें कार्बोहाइट्रेट अधिक होता है।शक्कर की मात्रा न्यूनतम है।
कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकला तीन चम्मच तेल, छः चम्मच पनीर में मिलाकर उसमें सूखे मेवे मिलाकर देने चाहिए। कैंसर की स्थिति मेें डाॅक्टर बुजविड के आहार-विहार की पालना श्रद्धा भाव से व पूर्णता से करनी चाहिए। कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकले तेल की मालिश भी करनी चाहिए।
साफ बीनी हुई और पोंछी हुई अलसी को धीमी आंच पर तिल की तरह भून लें।मुखवास की तरह इसका सेवन करें। इसमें सेधा नमक भी मिलाया जा सकता है। ज्यादा पुरानी भुनी हुई अलसी प्रयोग में न लें।
दमा रोगी एक चम्मच अलसी का पाउडर केा आधा गिलास पानी में 12 घंटे तक भिगो दे और उसका सुबह-शाम छानकर सेवन करे तो काफी लाभ होता है। गिलास काँच या चाँदी को होना चाहिए।
समान मात्रा में अलसी पाउडर, शहद, खोपराचूरा, मिल्क पाउडर व सूखे मेवे मिलाकर नील मधु तैयार करें। कमजोरी में व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नील मधु उपयोगी है।
बेसन में 25 प्रतिशत मिलाकर अलसी मिलाकर व्यंजन बनाएं। बाटी बनाते वक्त भी उसमें भी अलसी पाउडर मिलाया जा सकता है। सब्जी की ग्रेवी में भी अलसी पाउडर का प्रयोग करें।
अलसी सेवन के दौरान खूब पानी पीना चाहिए। इसमें अधिक फाइबर होता है, जो खूब पानी माँगता है।
उपचार और प्रयोग-
आइये जाने अलसी के गुणों को और जीवन में प्रयोग करे-
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयू एच ओ) ने अलसी को सुपर फुड माना है। अलसी में ओमेगा थ्री व सबसे अधिक फाइबर होता है। अतः यह स्वास्थ्यप्रद होने के साथ-साथ रोगों के उपचार में लाभप्रद है। इसमें सभी वनस्पितियों की तुलना में अधिक ओगेमा-3 होता है तभी इसे चिकित्सा विज्ञान में ‘‘वेज ओगेमा’’ कहते है ।
आयुर्वेद में अलसी को दैविक भोजन माना गया है ।
महात्मा गांधीजी ने स्वास्थ्य पर भी शोध की व बहुत सी पुस्तकें भी लिखीं। उन्होंने अलसी पर भी शोध किया, इसके चमत्कारी गुणों को पहचाना और अपनी एक पुस्तक में लिखा है, “जहां अलसी का सेवन किया जायेगा, वह समाज स्वस्थ व समृद्ध रहेगा।”
अलसी का बोटेनिकल नाम " लिनम यूजीटेटीसिमम् "यानी अति उपयोगी बीज है। इसे अंग्रेजी में" लिनसीड "या "फ्लेक्ससीड" कहते हैं।
ओमेगा 3 की शरीर में महत्वपूर्ण भूमिका:-
============================
यह उत्कृष्ट प्रति-आक्सीकरक है और शरीर की रक्षा प्रणाली सुदृढ़ रखता है।प्रदाह या इन्फ्लेमेशन को शांत करता है।तथा ऑखों, मस्तिष्क ओर नाड़ी-तन्त्र का विकास व इनकी हर कार्य प्रणाली में सहायक, अवसाद और व अन्य मानसिक रोगों के उपचार में सहायक, स्मरण शक्ति और शैक्षणिक क्षमता को बढ़ाता है।
ई.पी.ए. और डी.एच.ए. का निर्माण। रक्त चाप व रक्त शर्करा-नियन्त्रण, कॉलेस्ट्रोल-नियोजन, जोड़ों को स्वस्थ रखता है। यह भार कम करता है, क्योंकि यह बुनियादी चयापचय दर (ठडत्द्ध बढ़ाता है, वसा कम करता है, खाने की ललक कम करता है। यकृत, वृक्क और अन्य सभी ग्रंथियों की कार्य-क्षमता बढ़ाता है।
अलसी शुक्राणुओं के निर्माण में सहायता करता है। आधुनिक जीवन शैली के कारण शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 का अनुपात बिगड़ गया है।
शरीर में ओमेगा-3 की कमी व इन्फ्लेमेशन पैदा करने वाले ओमेगा-6 के ज्यादा हो जाने केे कारण ही हम उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक, डायबिटीज, मोटापा, गठिया, अवसाद, दमा, कैंसर आदि रोगों का शिकार हो रहे हैं। ओमेगा-3 की यह कमी 30-60 ग्राम अलसी से पूरी कर सकते हैं। ओमेगा-3 ही अलसी को सुपर स्टार फूड का दर्जा दिलाता हैं।
अलसी के सेवन से उच्च रक्तचाप, हृदयाघात, स्ट्रोक, डायबिटीज, मोटापा, गठिया, अवसाद, दमा, कैंसर आदि रोगों में लाभ होता है।
डाॅ. बुझवीड ने तो अन्तिम स्थिति के कैंसर तक का इलाज अलसी के तेल से किया है।
अलसी का सेवन किस रोग में व कैसे करें:-
===========================
सुपर फुड अलसी में ओमेगा थ्री व सबसे अधिक फाइबर होता है। यह डब्लयू एच ओ ने इसे सुपर फुड माना है। यह रोगों के उपचार में लाभप्रद है। लेकिन इसका सेवन अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग तरह से किया जाता है।
स्वस्थ व्यक्ति को रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच अलसी का पाउडर पानी के साथ ,सब्जी, दाल या सलाद में मिलाकर लेना चाहिए । अलसी के पाउडर को ज्यूस, दूध या दही में मिलाकर भी लिया जा सकता है। इसकी मात्रा 30 से 60 ग्राम प्रतिदिन तक ली जा सकती है। 100-500 ग्राम अलसी को मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भर कर रख लें। अलसी को अधिक मात्रा में पीस कर न रखें, यह पाउडर के रूप में खराब होने लगती है। सात दिन से ज्यादा पुराना पीसा हुआ पाउडर प्रयोग न करें। इसको एक साथ पीसने से तिलहन होने के कारण खराब हो जाता है। इसे बनाने के लिए हल्का से तवे पे गर्म करके मिक्सी में पीस ले और एयर टाईट डिब्बे में रख ले 30 ग्राम अलसी को नित्य ही दूध या पानी से लिया जा सकता है लेकिन आप इसे एक साथ पांच या छ दिन का ही पावडर बनाये क्युकी इसके बाद इसके गुण ख़त्म हो जाते है ये आपको अनाज बेचने वाले या पंसारी से मिल जाएगा .
खाँसी होेने पर अलसी की चाय पीएं। पानी को उबालकर उसमें अलसी पाउडर मिलाकर चाय तैयार करें।एक चम्मच अलसी पावडर को दो कप (360 मिलीलीटर) पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक यह पानी एक कप न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद, गुड़ या शकर मिलाकर पीएँ। सर्दी, खाँसी, जुकाम, दमा आदि में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है।
डायबीटिज के मरीज को आटा गुन्धते वक्त प्रति व्यक्ति 25 ग्राम अलसी काॅफी ग्राईन्डर में ताजा पीसकर आटे में मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। अलसी मिलाकर रोटियाँ बनाकर खाई जा सकती हैं। अलसी एक जीरो-कार फूड है अर्थात् इसमें कार्बोहाइट्रेट अधिक होता है।शक्कर की मात्रा न्यूनतम है।
कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकला तीन चम्मच तेल, छः चम्मच पनीर में मिलाकर उसमें सूखे मेवे मिलाकर देने चाहिए। कैंसर की स्थिति मेें डाॅक्टर बुजविड के आहार-विहार की पालना श्रद्धा भाव से व पूर्णता से करनी चाहिए। कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकले तेल की मालिश भी करनी चाहिए।
साफ बीनी हुई और पोंछी हुई अलसी को धीमी आंच पर तिल की तरह भून लें।मुखवास की तरह इसका सेवन करें। इसमें सेधा नमक भी मिलाया जा सकता है। ज्यादा पुरानी भुनी हुई अलसी प्रयोग में न लें।
दमा रोगी एक चम्मच अलसी का पाउडर केा आधा गिलास पानी में 12 घंटे तक भिगो दे और उसका सुबह-शाम छानकर सेवन करे तो काफी लाभ होता है। गिलास काँच या चाँदी को होना चाहिए।
समान मात्रा में अलसी पाउडर, शहद, खोपराचूरा, मिल्क पाउडर व सूखे मेवे मिलाकर नील मधु तैयार करें। कमजोरी में व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नील मधु उपयोगी है।
बेसन में 25 प्रतिशत मिलाकर अलसी मिलाकर व्यंजन बनाएं। बाटी बनाते वक्त भी उसमें भी अलसी पाउडर मिलाया जा सकता है। सब्जी की ग्रेवी में भी अलसी पाउडर का प्रयोग करें।
अलसी सेवन के दौरान खूब पानी पीना चाहिए। इसमें अधिक फाइबर होता है, जो खूब पानी माँगता है।
उपचार और प्रयोग-
No comments:
Post a Comment