सफ़ेद दाग के रोगी को नमक कम से कम खाना चाहिए। अच्छे परिणाम के लिए सैंधा नमक खाए। दूध के साथ कोई भी नमक वाली वस्तु ना खाए। चाय बंद कर दे। यदि कुछ दिन दूध भी बंद कर दे तो अधिक लाभ होगा। चीनी, गुड व अन्य मीठा भी कम कर दे।
सफ़ेद दाग की दवाई शुरू करने से पहले पेट साफ की दवाई (Duphalac 25ml )जरूर ले। दवाई शुरू करने के बाद भी हर 15 दिन मे पेट साफ़ की दवाई जरूर ले। इससे लाभ जल्दी होता है।
यह केवल कल्पना है कि सफ़ेद वस्तुए खाने से सफ़ेद दाग बढ़ते हैं। सच्चाई यह है कि मुली, चावल जैसी सफ़ेद वस्तुए इस रोग मे कोई हानि नहीं करती।
परहेज (कम से कम प्रयोग करे)–दही, लस्सी, उरद(माह) की दाल, सेम, पिट्ठी से बनी वस्तुए जैसे दहीबड़ा, कचौरी आदि, मछली, अंडा, चाउमीन, पिज्जा (चाउमीन/पिज्जा मे अजीनोमोटों का प्रयोग होता है)। खटाई जैसे इमली, नींबू, अमचूर, कांजी आदि, जलन करने वाले भोजन जैसे लाल/हरी मिर्च, राई, अदरक,रायता, शराब/सिरका आदि, अभिष्यन्दी जैसे दही, खीर, बर्फी, आइसक्रीम आदि, विरोधी भोजन (जैसे दूध के साथ नमक, खटाई,जामुन आम आदि, घी के ऊपर ठंडा पानी, पानी मे शहद आदि), अध्यशन (पहले खाए हुए भोजन के न पचने पर भी भोजन खा लेना), अजीर्ण (अपच) मे भोजन, खाना दिन मे सोना और रात मे जागना छोड़ दे। शाकाहारी बने।
चिकित्सा- सफ़ेद दाग पर 100% सफल प्रयोग
1- सोमराजी घृत : इस दवाई की प्रशंसा के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। अभी तक बहुत सी दवाइयाँ प्रयोग करी। परंतु इसके बराबर की और आसानी से बन जाने वाली दवाई दूसरी नहीं मिली। जो सालों तक चिकित्सा करवा कर थक चुके हों निराश हो गए हों उन्हे भी यह दवाई जरूर प्रयोग करनी चाहिए। यदि अच्छी तरह बनाई जाए तो यह कभी भी असफल नहीं होती। बहुत ध्यान से नोट करे। तौल मे बदलाव ना करे।
देशी घी- 800 ग्राम
खैर की छाल = 650 ग्राम
बावची = 150 ग्राम +150 ग्राम =300 ग्राम
परवल की जड़, भृंगराज, जवासा,कुटकी = 40 ग्राम प्रत्येक
गूगल = 80 ग्राम
1- देशी घी गाय का ले। पथमेड़ा गौशाला का घी सबसे अच्छा व विश्वनीय है। यदि पथमेड़ा का ना मिले तो विश्वनीय भैंस का घी ले।
2- खैर = Acacia Catechu (चित्र के लिए Google पर सर्च करे)। इसकी छाल सभी जड़ी बूटी वालो से आसानी से मिल जाती है।
3- बावची – यह काले रंग के बीज हैं जो सभी जड़ी बूटी वालों के यहाँ से मिल जाते हैं।
4- परवल की जड़ मिल जाए तो बहुत अच्छा नहीं तो इसके पत्ते मिल जाते हैं वह प्रयोग करे । भृंगराज, कुटकी व जवासा भी आसानी से मिल जाते हैं।
5- गूगल – यह एक पेड़ का गोंद है। यह 2 तरह का आता है। एक साधारण गुगुल दूसरा शुद्ध किया हुआ गुगुल। इस प्रयोग मे साधारण गुगुल (जिसे शुद्ध ना किया हो) ही प्रयोग करे। यह चिपचिपा होता है। इसलिए 2 दिन धूप मे रख कर सूखा ले। फिर कूट कर प्रयोग करे।
बनाने की विधि –
1- 650 ग्राम खैर की छाल व 150 ग्राम बावची को मोटा कूट कर रख ले।
2- 150 ग्राम बावची, भृंगराज, परवल व जवासे को बारीक पीस ले।
3- गूगल के छोटे टुकड़े बना ले।
650 ग्राम खैर की छाल + 150 ग्राम बावची को 6.500 किलो पानी मे पकाए। धीमी आग पर पकाए। जब लगभग 1.500 (डेढ़ किलो) ग्राम पानी रह जाए तब छान ले। ठंडा होने पर जो बचा हुआ अंश है उसे कपड़े मे से निचोड़ ले। यह काढ़ा साफ बर्तन मे 1 रात के लिए रख ले। सुबह ऊपर का साफ पानी निथार ले। जो अंश नीचे बैठ जाए उसे छोड़ दे। {छानने के बाद जो बचता है उसे कचरे मे ना फेंके। किसी पेड़ की जड़ में डाल दे। खाद का काम करेगी।}
एक पीतल की कली की हुई कड़ाही (ना मिले तो लौहे की कड़ाही) मे 800 ग्राम देशी घी व का 1.500 किलो काढ़ा व बाकी बारीक पीसा हुआ पाउडर व गूगल के टुकड़े मिलाकर धीमी आग पर पकाए। बीच बीच कड़छी से हिलाते रहे। कुछ समय बाद कड़ाही मे नीचे काला काला चिपचिपा अंश दिखाई देगा। 1 सलाई पर रुई लपेट कर इस पर घी लगाए। इस घी लगी रुई को जलाए। यदि चटर चटर की आवाज आए तो समझे अभी पकाना बाकी है। यदि बिना किसी आवाज के रुई जल जाए तो आग बंद कर दे। जब लगभग सारा पानी जल जाए और केवल घी रह जाए तो आग बंद कर दे। उसके बाद कड़ाही के हल्का ठंडा होने पर ध्यान से घी को एक सूखे बर्तन मे निकाल ले। ध्यान रहे घी पकाते समय मिश्रण पूरी तरह न जले। जब तली मे शहद जैसा गाढ़ा बच जाए तब आग बंद करके घी को अलग कर ले। घी अलग करते समय बर्तन मे जरा सा काले रंग का काढ़ा भी आ जाता है । इसलिए बर्तन से घी को एक चौड़े मुंह की काँच की शीशी मे डाल ले।
प्रयोग विधि- यह घी लगाने व खाने मे प्रयोग करे। जिसको रोग कम हो उसे 1 समय व जिसे रोग अधिक हो उसे सुबह नाश्ते के बाद व रात को सोने से पहले प्रयोग करे। मात्रा – 10 ग्राम छोटे बच्चो को भी दे सकते हैं कम मात्रा मे। इसको लगाने से कुछ दिन बाद दाग का रंग बदलने लगता है। यदि इसको लगाने से यदि जलन हो तो बीच बीच मे इसका प्रयोग बंद कर दे। उस समय नारियल का तेल लगाए। बाद मे जब जलन शांत हो जाए तब फिर दवाई लगाना शुरू कर दे। दाग पर दवाई लगाकर ऊपर किसी भी पेड़ का पत्ता रख कर बांधने से जल्दी लाभ होता है । किसी किसी को इस दवाई के लगभग 20 दिन के प्रयोग के बाद शरीर मे जलन व गर्मी महसूस होने लगती है। तब इसे बीच मे बन्द कर दे। इस दवाई के समय नारियल खाने व नारियल का पानी पीने से जलन नहीं होती।
2- लगाने की दवाई – सफ़ेद दाग मे लगाने की दवाइयाँ प्रायः जलन पैदा करती हैं। परंतु यह दवाई बिलकुल भी जलन पैदा नहीं करती। खाने की दवाइयों के साथ लगाने के लिए यह प्रयोग करे। यदि किसी कि आँख के पास या अन्य किसी कोमल अंग पर सफ़ेद दाग हो तब यह जरूर प्रयोग करें। यह भी बहुत सफल दवाई है।
• सरसों का तेल 250 ग्राम (कच्ची घानी का अधिक लाभदायक है)
• हल्दी (साबुत हल्दी ले)
• यदि कच्ची हल्दी मिल जाए जो आधिक गुणकारी है तो वह 1 किलो ले।
• यदि कच्ची हल्दी ना मिले तो सुखी साबुत हल्दी 500 ग्राम ले । ध्यान दे कि साबुत सुखी हल्दी मे घुन ना लगा हो।
बनाने का तरीका –
• 1 किलो कच्ची या गीली हल्दी को या 500 ग्राम सुखी साबुत हल्दी को मोटा मोटा कूट ले।
• इसे 4 किलो पानी मे उबाले।
• जब 1 किलो पानी बचे तब छान कर इस हल्दी के पानी को रख ले।
• एक लौहे कि कड़ाही ले जिसमे 4 किलो पानी आ सके।
• इसमे 250 ग्राम सरसों का तेल व 1 किलो हल्दी का पानी मिलाकर धीमी आग पर पकाए।
• जब हल्दी का पानी खत्म हो जाए व कड़ाही मे नीचे कीचड़ सा बच जाए तब आग बंद कर दे।
• ठंडा होने पर तेल को सावधानी से अलग कर ले।
• यदि आप अधिक प्रभावशाली दवाई बनाना चाहते हैं तो इस तेल मे 3 बार 1-1 किलो हल्दी का पानी मिलाकर पकाए।
यह तेल लगाने पर धीरे धीरे सफ़ेद दाग को खत्म कर देता है। साथ मे खाने की दवाई भी जरूर खाए।
3- सरल प्रयोग- बावची का 1 दाना सुबह पानी से खाली पेट ले। अगले दिन 2 दाने ले। इसी तरह 1-1 बढ़ाते हुए 21 तक बढ़ाए। फिर 1-1 कम करते हुए 1 दाने पर ले आए। दोबारा बढ़ाते हुए 1 से 21 तक व 21 से 1 तक ले आए। यह प्रयोग 3-4 बार करने से सफ़ेद दाग ठीक हो जाते हैं। इस प्रयोग से कभी कभी बीच मे गर्मी लगने लगे तो आगे ना बढ़ाए। वहीं से कम करना शुरू कर दे। नारियल का पानी पीने व नारियल की गिरि खाने से गर्मी लगने कि समस्या कम हो जाती है। अधिक लाभ के लिए रात को 2 कप पानी मे 2 चम्मच आंवला चूर्ण डाल दे। सुबह छान कर इस पानी से बावची के दाने ले तो गर्मी नहीं लगती।
4- 100 ग्राम तिल व 100 ग्राम बावची मिलाकर बारीक कूट ले। 1 चम्मच सुबह हर दिन पानी से ले। बीच मे यदि गर्मी लगे तो कुछ दिन बंद कर दे। फिर दोबारा शुरू कर दे। इससे भी सफ़ेद दाग ठीक हो जाते हैं।
5- बावची 100 ग्राम व चित्रक्मूल 100 ग्राम ले। मोटा मोटा कूट ले। रात को 2 चम्मच यह मिश्रण +1 कप पानी +2 कप दूध उबाले। जब केवल दूध बच जाए। तब छान कर दहि जमा दे। इस दहि मे ½ कप पानी मिलाकर लस्सी बना ले। इसमे नमक या चीनी ना मिलाए। एसे प्रतिदिन पिए। कभी कभी इसमे से मक्खन निकाल कर उस मक्खन को सफ़ेद दागों पर लगाए व लस्सी पी ले।
6- यदि लगाने कि दवाई ना बना सके तो स्वामी रामदेव का कायाकल्प तेल या किसी दूसरी कम्पनी का मरीच्यादी तेल ले। सफ़ेद दाग पर दवाई लगाने से पहले उसे सूखे कपड़े से रगड़ लें।
7- कृष्ण गोपाल आयुर्वेद भवन कालेड़ा (राजस्थान) या गुरुकुल काँगड़ी का “पञ्चनिम्ब चूर्ण PANCHNIMBA CHURNA ” भी चमत्कारी लाभ करता है। ½ से 1 चम्मच सुबह शाम ले। इससे भी बहुत अधिक लाभ होता है।
8- 100 ग्राम बावची को लाकर साफ करके कूट ले। इसमे खैर व विजयसार का काढ़ा डाल कर धूप मे सुखाए। काढ़ा इतना ही डालें कि 1 दिन मे सुख जाए। इस तरह कम से कम 10 दिन करे। यदि इस तरह 21 बार काढ़ा डालकर सूखा ले तो अधिक अच्छा। उसके बाद इस बावची को बारीक पीस ले। ½ चम्मच इस बावची पाउडर को सुबह शाम आंवले के पानी से ले। बहुत जल्दी लाभ होता है।
खैर विजयसार का काढ़ा बनाने की विधि- जड़ी बूटी वाले से 250 ग्राम खैर की छाल व 250 ग्राम विजयसार की लकड़ी ले आए। कूट कर मिला ले।
50 ग्राम इस मिश्रण को 400 ग्राम पानी मे पकाए। धीमी आग पर पकाए। जब लगभग 100 ग्राम पानी रह जाए तब छान ले। ठंडा होने पर जो बचा हुआ अंश है उसे कपड़े मे से निचोड़ ले। यह काढ़ा साफ बर्तन मे 1 रात के लिए रख ले। सुबह ऊपर का साफ पानी निथार ले। जो अंश नीचे बैठ जाए उसे छोड़ दे। {छानने के बाद जो बचता है उसे कचरे मे ना फेंके। किसी पेड़ की जड़ में डाल दे। खाद का काम करेगी।}यह काढ़ा प्रतिदिन ताजा बनाए।
आंवले का पनि बनाने की विधि- रात को 2 कप पानी मे 2 चम्मच आंवला चूर्ण डाल दे। सुबह छान कर इस पानी का प्रयोग करे।
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