प्राणायाम प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर खाली पेट करें -
उज्जायी प्राणायाम :-
पद्मासन या सुखासन में बैठकर आँखें बंद कर लें | अपनी जिह्वा को तालू से सटा दें अब कंठ से श्वास को इस प्रकार खींचे कि गले से ध्वनि व् कम्पन उत्पन्न होने लगे | इस प्राणायाम को दस से बढाकर बीस बार तक प्रति-दिन करें |
नाड़ीशोधन प्राणायाम :-
कमर-गर्दन सीधी रखकर एक नाक से धीरे-धीरे लंबी गहरी श्वास लेकर दूसरे स्वर से निकालें, फिर उसी स्वर से श्वास लेकर दूसरी नाक से छोड़ें। 10 बार यह प्रक्रिया करें।
ध्यान :-
आँखें बंद कर मन को सामान्य श्वास-प्रश्वास पर ध्यान करते हुए मन में श्वास भीतर आने पर 'सो' और श्वास बाहर निकालते समय 'हम' का विचार 5 से 10 मिनट करें।
ब्रह्ममुद्रा :-
वज्रासन में या कमर सीधी रखकर बैठें और गर्दन को 10 बार ऊपर-नीचे चलाएँ। दाएँ-बाएँ 10 बार चलाएँ और 10 बार सीधे-उल्टे घुमाएँ।
मांजरासन :-
चौपाये की तरह होकर गर्दन, कमर ऊपर-नीचे 10 बार चलाना चाहिए।
उष्ट्रासन :-
घुटनों पर खड़े होकर पीछे झुकते हुए एड़ियों को दोनों हाथों से पकड़कर गर्दन पीछे झुकाएँ और पेट को आगे की तरफ उठाएँ। 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।
शशकासन :-
वज्रासन में बैठकर सामने झुककर 10-15 बार श्वास -प्रश्वास करें।
मत्स्यासन :-
वज्रासन या पद्मासन में बैठकर कोहनियों की मदद से पीछे झुककर गर्दन लटकाते हुए सिर के ऊपरी हिस्से को जमीन से स्पर्श करें और 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।
सर्वांगासन :-
पीठ के बल लेटकर हाथों की मदद से पैर उठाते हुए शरीर को काँधों पर रोकें। 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।
भुजंगासन : -
पीठ के बल लेटकर हथेलियाँ कंधों के नीचे जमाकर नाभि तक उठाकर 10- 15 श्वास-प्रश्वास करें।
धनुरासन : -
पेट के बल लेटकर दोनों टखनों को पकड़कर गर्दन, सिर, छाती और घुटनों को ऊपर उठाकर 10-15 श्वास-प्रश्वास करें।
शवासन :-
पीठ के बल लेटकर, शरीर ढीला छोड़कर 10-15 श्वास-प्रश्वास लंबी-गहरी श्वास लेकर छोड़ें तथा 30 साधारण श्वास करें और आँखें बंद रखें।
नोट :- किसी योग्य योग शिक्षक से सभी आसन की जानकारी ले के ही करे .
थायरायड की एक्युप्रेशर चिकित्सा :-
एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार थायरायड व् पैराथायरायड के प्रतिबिम्ब केंद्र दोनों हांथो एवं पैरों के अंगूठे के बिलकुल नीचे व् अंगूठे की जड़ के नीचे ऊँचे उठे हुए भाग में स्थित हैं |
थायरायड के अल्पस्राव की अवस्था में इन केन्द्रों पर घडी की सुई की दिशा में अर्थात बाएं से दायें प्रेशर दें तथा अतिस्राव की स्थिति में प्रेशर दायें से बाएं [ घडी की सुई की उलटी दिशा में ] देना चाहिए | इसके साथ ही पियुष ग्रंथि के भी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए |
विशेष :-
प्रत्येक केंद्र पर एक से तीन मिनट तक प्रतिदिन दो बार प्रेशर दें | पियुष ग्रंथि के केंद्र पर पम्पिंग मैथेड [ पम्प की तरह दो-तीन सेकेण्ड के लिए दबाएँ फिर एक दो सेकेण्ड के लिए ढीला छोड़ दें ] से प्रेशर देना चाहिए |
आप किसी एक्युप्रेशर चिकित्सक से संपर्क करके आप उन केन्द्रों को एक बार समझ सकते है और फिर स्वयं भी कर सकते है |
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