बवासीर आजकल एक आम बीमारी के रूप में प्रचलित है। इस रोग मे गुदे की खून की नसें (The blood veins of the anus) फ़ूलकर शोथयुक्त(turgescent ) हो जाती हैं-जिससे दर्द-जलन और कभी-कभी Bleeding भी होता है।बवासीर का प्रधान कारण कब्ज (Constipation ) का होना है-
बवासीर :-
मोटापा-व्यायाम नहीं करना और भोजन में रेशे(Fiber) की कमी से भी इस रोग की उत्पत्ति होती है-बवासीर दो प्रकार की होती है:-
खूनी बवासीर :-
जब गुदा के अंदर की बवासीर से खून निकलता है तो इसे खूनी बवासीर कहते हैं-
बादी बवासीर :-
बाहर की ओर फूले हुए मस्से की बवासीर में दर्द तो होता है लेकिन उनसे खून नहीं निकलता है इसलिए इसे बादी-बवासीर कहते हैं-
बवासीर रोग होने के कारण :-
बहुत ही उत्तेजक पदार्थों का अधिक सेवन करना | मलत्याग करते समय में अधिक जोर लगाकर मलत्याग करना और बार-बार जुलाव का सेवन करना या फिर बार-बार दस्त लाने वाली दवाईयों का सेवन करना |
अधिक मिर्च-मसालेदार भोजन का सेवन करना या फिर कब्ज की समस्या होना |
शारीरिक कार्य बिल्कुल न करना | वंशानुगत रोग या यकृत रोग होना |
अत्यधिक मात्रा शराब का सेवन करना -पेचिश रोग कई बार होना |
निम्न-स्तरीय चिकनाई रहित खुराक लेना |
गर्भावस्था के समय में अधिक कष्ट होना तथा इस समय में कमर पर अधिक कपड़ें का दबाव रखना |
रात के समय में अधिक जागना -मूत्र त्याग करने के लिए अधिक जोर लगना |
मस्से के लिये कई घरेलू ईलाज हैं,लेकिन सबसे महत्वपूर्ण और आधार भूत बात यह है कि रोगी को 24 घंटे में 4 से 6 लिटर पानी पीने की आदत डालनी चाहिये। ज्यादा पानी पीने से शरीर से Foreign substance बाहर निकलते रहेंगे और रोगी को कब्ज नहीं रहेगी जो इस रोग का मूल कारण है।
हरी पत्तेदार सब्जियां,फ़ल और ज्यादा रेशे वाले पदार्थों का सेवन करना जरुरी है।
घरेलू उपचार (Home remedies ) :-
1-कलमी शोरा (saltpeter ) और रसोंत (Rsot ) को आपस में बराबर मात्रा लेकर मूली के रस में मिला कर पीस लें-यह पेस्ट बवासीर के मस्सो पर लगाने से तुरंत राहत मिलती है।2-नागकेशर (Cobras saffron) मिश्री (sugar-candy ) और ताजा मक्खन (Fresh butter ) बराबर की मात्रा में मिलाकर खाने से बवासीर रोग नियंत्रण में आ जाता है ।
3-बवासीर में छाछ पीना भी अमृत की तरह है छाछ (Buttermilk ) में थोडा सा सैंधा नमक (Rock salt ) मिलाकर पीना चाहिए | तथा मूली का नियमित रूप से सेवन करे -मूली का प्रयोग बवासीर में लाभदायक है |
4- हरड (Myrrh ) और गुड (Molasses ) को आपस में मिलाकर खाए इससे भी काफी फायदा होता है |
5-मिश्री और कमल का हरा पत्ता (Lotus leaf green ) आपस में पीस के खाने से बवासीर का खून बंद हो जाता है |
6-बाजार में मिलने वाले जिमीकंद (Jminkand ) को आग में भून ले जब भुरभुरा हो जाए तब दही के साथ मिलाकर सेवन करे |
7-गेंदे के हरे पत्ते 10 ग्राम,काली मिर्च के 5 दाने मिश्री 10 ग्राम सबको 50 मिली पानी में पीस कर मिला दें | ऐसा मिश्रण चार दिन तक लेते रहने से खूनी बवासीर खत्म हो जाती है |
8-कडवी तोरई ( Bitter Luffa ) की जड को पीसकर यह पेस्ट मस्से पर लगाने से लाभ होता है।
9-करंज- हरसिंगार- बबूल- जामुन- बकायन- ईमली (Krnj- Hrsingar- Bbul- Jamun- Bkayn-tamarind ) इन छ: की बीजों की गिरी और काली मिर्च (black pepper ) इन सभी चीजों को बराबर मात्रा में लेकर कूट पीसकर मटर के दाने के बराबर गोलियां बनालें। 2 गोली दिन में दो बार छाछ के साथ लेने से बवासीर में अचूक लाभ होता है।
10-चिरायता-सोंठ-दारूहल्दी-नागकेशर-लाल चन्दन-खिरेंटी (Salicylic-ginger-Daruhldi-cobras saffron-red sandal-Kirenti ) इन सबको समान मात्रा मे लेकर चूर्ण बनालें। 5ग्राम चूर्ण दही के साथ लेने से पाईल्स ठीक होंगा |
11-पके केले को बीच से चीरकर दो टुकडे कर लें और उसपर कत्था पीसकर छिडक दें,इसके बाद उस केले को खुली जगह पर शाम को रख दें,सुबह शौच से निवृत्त होने के बाद उस केले को खालें, केवल 15 दिन तक यह उपचार करने से भयंकर से भयंकर बवासीर समाप्त हो जाती है।
12-हर-सिंगार के फ़ूल तीन ग्राम काली मिर्च एक ग्राम और पीपल एक ग्राम सभी को पीसकर उसका चूर्ण तीस ग्राम शकर की चासनी में मिला लें,रात को सोते समय पांच छ: दिन तक इसे खायें। इस उपचार से खूनी बवासीर में आशातीत लाभ होता है। कब्ज करने वाले भोजन पदार्थ वर्जित हैं।
13-प्याज के छोटे छोटे टुकडे करने के बाद सुखालें,सूखे टुकडे दस ग्राम घी में तलें,बाद में एक ग्राम तिल और बीस ग्राम मिश्री मिलाकर रोजाना खाने से बवासीर का नाश होता है| या बवासीर की समस्या हो तो प्याज के 4-5 चम्मच रस में मिश्री और पानी मिलाकर नियमित रूप से लें, खून आना बंद हो जाएगा। प्याज के स्वास्थ लाभ के लिए देखे -
प्याज़ के स्वास्थ्य लाभ - Health Benefits of Onion
14-बिदारीकंद और पीपल समान भाग लेकर चूर्ण बनालें। 3 ग्राम चूर्ण बकरी के दूध के साथ पियें।
15-आक के पत्ते और तम्बाखू के पत्ते गीले कपडे मे लपेटकर गरम राख में रखकर सेक लें। फ़िर इन पत्तों को निचोडने से जो रस निकले उसे मस्सों पर लगाने से मस्से समाप्त होते हैं।
16-एक नीबू लेकर उसे काट लें,और दोनो फ़ांकों पर पांच ग्राम कत्था पीस कर छिडक दें, खुली जगह पर रात भर रहने दें,सुबह बासी मुंह दोनो फ़ांकों को चूस लें,कैसी भी खूनी बबासीर दो या तीन हफ़्तों में ठीक हो जायेगी।
अब मैं यहां खूनी बवासीर का एक उपचार प्रस्तुत कर रहा हूं जो आश्चर्य जनक रूप से लाभकारी है ये खूनी और बादी दोनों प्रकार के बवासीर में ये औधषि कारगर है-
सूखे नारियल की जटा, जिससे रस्सी, चटाई आदि बनाते हैं। इस भूरे जटा को जलाकर राख बना लें और इसे अच्छी तरह छान लें। इस छनी हुई जटा-भष्म में तीन चम्मच निकालें और एक-एक चम्मच की पुड़िया बनाएं।एक पुड़िया जटा-भष्म को मीठे दही या छाछ(जो खट्टा नहीं हो) में मिलाकर एकबार ले लें। बादी-ववासीर जड़-मूल से नष्ट हो जाएगा। जरूरत पड़े तो दोबारा भी इस्तेमाल किया जा सकता है। वैसे दुबारा इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ती है।
होमियो-पेथी से इलाज :-
होमियोपैथी की मदर-टिंचर हेमेमिलिस और बायो-काम्बिनेशन नम्बर सत्रह की पाँच-पाँच बूंद हेमेमिलिस आधा कप पानी में मिला कर दिन में तीन बार और बायो-काम्बिनेशन सत्रह की चार-चार गोलियाँ तीन बार लेने से खूनी और साधारण बवासीर ठीक हो जाती है।
भगंदर (Fistula):-
भगंदर (फिस्टुला) एक जटिल समस्या है। इसका इलाज और इसे जड़ से समाप्त करना चिकित्सकों के लिए कड़ी चुनौती साबित हो रही है। इस रोग में गुदा मार्ग के बाहर एक या एक से अधिक पिंडिकाएं उत्पन्न हो जाती है। इससे स्राव आता रहता है।
गुदा के भीतरी भाग में वेदनायुक्त पिंडिकाओ से बनने नासूर को भगंदर कहते है | नाड़ीव्रण का ही एक प्रकार है | क्योंकि गुदा के चारों ओर का भाग अधिक पोला होता है | अतः पिंडिका के पककर फूटने पर मवाद पोलो स्थान की धातुओं की तरफ चला जाता है, जिसका फिर ठीक प्रकार से निर्हरण नहीं हो पाता | इसमें रोगी को अत्यंत पीड़ा होती है और वह उठने बैठने एवं चलने फिरने में भी बहुत कष्ट महसूस करता है | ठीक प्रकार से उपचार न होने पर यह नासूर बढ़कर दूसरी तरफ भी अपना मुख बना लेता है | तब इसकी स्थिति दो मुखी नली के समान हो जाती है | कभी कभी तो इसका दूसरा मुख नितंब या जांघ तक पहुंचकर खुलता है | ऐसी स्थिति में भगंदर के नासूर से रक्त, लसिका और दुर्गन्धयुक्त मल रिसता है |
भगंदर रोग में व्रण बहुत गहरे हो जाते हैं कई कार व्रण के अधिक गहरे हो जाने से मल भी उनसे लगता है। ऐसे में कोष्ठबद्धता हो जाने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है।भगंदर से हर समय रक्तमिश्रित पीब-स्त्राव होने से कपड़े खराब होते है। रोगी को चलने-फिरने में भी बहुत कठिनाई होती है। भगंदर रोग से सूक्ष्म कीटाणु भी उत्पन्न होते है।
भगंदर से पीड़ित रोगी न बिस्तर पर पीठ के बल लेट सकता है और न कुर्सी पर बैठकर कोई काम कर सकता है। सीढ़ियां चढ़ने-उतरने में भी रोगी को बहुत पीड़ा होती है।
भगंदर रोग में मल-द्वार के ऊपर की ओर व्रण (पिड़िकाएं) बनते है। व्रण त्वचा में काफी गहरे हो जाते हैं। नासूर की तरह व्रण से रक्त-मिश्रित पीब-स्त्राव होता है। लम्बे समय तक भगंदर रोग नष्ट नहीं होती। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार अधिक समय तक उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों के सेवन से रक्त दूषित होन पर भगंदर रोग की उत्पत्ति होती है।
शौच के बाद स्वच्छ जल से मल-द्वार के आस-पास स्वच्छ नहीं करने से भी गंदगी के कारण व्रण की विकृति होती है। अधिक समय तक कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले इस रोग से अधिक पीड़ित होते है। साइकिल पर लम्बी दूरी तक यात्रा करने वाले, साइकिल पर अधिक सामान ढोने वाले, ऊंट, घोड़े की अधिक सवारी करने वाले भंगदर रोग से पीड़ित होते है।
आज लोगों का खान-पान पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता पर आधारित हो गया है। लोग तेल, मिर्च, मसाला, तली, भूनी चीजें, फास्ट फूड, अनियमित भोजन का अधिक सेवन करते हैं। खाने में हरी सब्जियां, सलाद, पौष्टिक आहार का सेवन कम कर रहे हैं। व्यायाम, परिश्रम आदि से लोग दूर भाग रहे हैं जिसके कारण लोग मोटापे का शिकार हो रहे हैं। उपरोक्त निदान अनियमित आहार-विहार सेवन के कारण लोग एक जटिल बीमारी भगंदर का शिकार हो रहे हैं।
प्रमुख कारण निम्न है :-
गुदामार्ग के अस्वच्छता रहना या लगातार लम्बे समय तक कब्ज बने रहना | अत्यधिक साइकिल या घोड़े की सवारी करना | बहुत अधिक समय तक कठोर, ठंडे गीले स्थान पर बैठना |
गुदामैथुन की प्रवृत्ति | मलद्वार पास उपस्थित कृमियों के उपद्रव के कारण | गुदा में खुजली होने पर उसे नाखून आदि से खुरच देने के कारण बने घाव के फलस्वरूप |
गुदा में आघात लगने या कट - फट जाने पर | गुदा मार्ग पर फोड़ा-फुंसी हों जाने पर | गुदा मार्ग से किसी नुकीले वस्तु के प्रवेश कराने के उपरांत बने घाव से |
आयुर्वेदानुसार जब किसी भी कारण से वात और कफ प्रकुपित हो जाता है तो इस रोग के उत्पत्ति होती है |
भगंदर को दो प्रकार माने गए है (two types of fistula ):-
अपूर्ण भगंदर :-
जब नासूर का केवल एक सिरा ही खुला होता है और दूसरा बंद होता है जब नासूर का मुख मालाशय पर खुलता है तो इसे अंतर्मुख भगंदर एवं मुख वाहर की त्वचा पर खुले उसे बाहिमुख भगंदर कहते है |
पूर्ण भगंदर : -
जब नासूर का दूसरा सिरा भी दूसरी तरफ जाकर खुल जाता है तो उसे पूर्ण भगंदर कहते है |
लक्षण (Symptoms ):-
भगंदर होने से पूर्व गुदा में छोटी छोटी फुंसिया का बार बार होना जिन्हें पिंडिकायें कहते है | कुछ समय पश्चात ये फुंसियां ठीक न होकर लाल रंग की हो जाती है और फूटकर व्रण का निर्माण करती है | गुदा प्रवेश में खुजली व पीड़ा जो कि मल त्याग के समय बढ़ जाती है |
गुदा से रक्त एवं मवाद आने लगता है | व्रण में बहुत तेज़ दर्द होता है जिससे रोगी को उठने बैठने, चलने फिरने में कष्ट होता है | ठीक से चिकित्सा न होने पर फुंसियां मुनक्के एवं छुआरे जितने बड़ी होकर रोगी के अत्यधिक कष्ट देती है |
कमर के पास सुई चुभने जैसा दर्द, जलन, खुजली व वेदना के अनुभूती होती है | यदि भगंदर वातिक है तो तीव्र वेदना, पिंडिका के फूटने पर रक्त वर्ण का फेनयुक्त स्राव व अनेक मुख वाले वृणों से मल एवं मूत्र निकलता है |
पैत्तिक भगंदर में पिंडिका शीघ्रता से पकती है और उसमे से दुर्गन्ध, ऊष्ण स्राव होने लगता है | पिंडिका का आकार ऊंट की गर्दन के समान होता है |
कफज भगंदर में गुदामार्ग में खुजली के साथ लगातार गाढ़ा स्राव होता है इसमें सफेद कठिन पिंडिका होती है | इस प्रकार के भगंदर में पीड़ा कम होती है |
यदि अन्दर सन्निपारज प्रकृति का है तो पिंडिका का रंग विविध प्रकार होता है | इस प्रकार का भगंदर पीड़ादायक एवं स्रावयुक्त होता है | इसकी आकृति गाय के थान के समान होती है |
आगंतुज भगंदर शल्यकर्म के दौरान क्षत उत्पन्न होने से बनता है | कालांतर में इससमे कृमि पड़ जाते है, जो कि गुदामार्ग के विदीर्ण करके नाड़ी में अनेक मुख बना देते है | जी जिनसे पूय, मूत्र, पुरिष आदि का क्षरण होता है |
भगंदर से बचाव के लिए गुदामार्ग को स्वच्छ रखना चाहिए | पेट में यदि कृमि हो तो उनको बाहर निकालने के लिए औषधि लेनी चाहिए, अन्यथा वे गुदामार्ग को क्षतिग्रस्त कर सकते है |
आयुर्वेद में भगंदर के लिए अग्निकर्म, शस्त्रकर्म, क्षारकर्म एवं औषधि चिकित्सा का विधान है-
घरेलू उपचार (Home remedies ):-
1-25 ग्राम अनार के ताजे, कोमल पत्ते 300 ग्राम पानी में देर तक उबालें। जब आधा जल शेष रह जाए तो उस जल को छानकर भगंदर को धोने से बहुत लाभ होता है।
2-नीम के पत्तों को जल में उबालकर, छानकर भगंदर को दिन में दो बार अवष्य साफ करें।तथा नीम की पत्तियों को पीसकर भगंदर पर लेप करने से बहुत लाभ होता है।
3-काली मिर्च और खदिर (लाजवंती) को जल के छींटे मारकर पीसकर भगंदर पर लेप करें।
4-लहसुन को पीसकर, घी में भूनकर भंगदर पर बांधने से जीवाणु नष्ट होते हैं।
5-आक के दूध में रुई भिगोकर सुखाकर रखें। इस रुई को सरसों के तेल के साथ भिगोकर काजल बनाएं काजल मिट्टी के पात्र पर बनाएं। इस काजल को भगंदर पर लगाने से बहुत लाभ होता है। या आक का दूध और हल्दी मिलाकर उसको पीसकर शुष्क होने पर बत्ती बना लें। इस बत्ती को भगंदर के व्रण पर लगाने से बहुत लाभ होता है।
6-चमेली के पत्ते, गिलोय, सोंठ और सेंधा नमक को कूट-पीसकर तक्र (मट्ठा) मिलाकर भंगदर पर लेप करें।
7-त्रिफला क्वाथ से नियमित भगंदर के व्रण को धोकर बिल्ली अथवा कुत्ते की हड्डी के महीन चूर्ण का लेप कर देने से भगंदर ठीक हो जाता है |
8-रोगी को किशोर गूगल, कांचनार गूगल एवं आरोग्यवर्द्धिनी वटी की दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म पानी के साथ करने पर उत्तम लाभ होता है नियमित दो माह तक इसका प्रयोग करने से भगंदर ठीक हो जाता है |
9-भगंदर के रोगी को भोजन के बाद विंडगारिष्ट, अभयारिस्ट एवं खादिरारिष्ट 20-20 मिली. की मात्रा में सामान जल मिलाकर सेवन करना चाहिए |
परहेज (Avoiding ):-
घी, तेल से बने पकवानों का सेवन न करें।उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रसों से निर्मित खाद्य पदार्थो का सेवन न करें। ऊंट, घोडे, व स्कूटर, साईकिल पर लम्बी यात्रा न करें।
अधिक समय कुर्सी पर बैठकर काम न करें।दूषित जल से स्नान न करें।
भंगदर रोग के चलते समलेंगिक सहवास से अलग रहे।
बाजार के चटपटे-स्वादिष्ट छोले-भठूरे-समोसे-कचौड़ी-चाट-पकौड़ी आदि का सेवन न करें।
2 comments:
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