Friday, June 12, 2015

विविध रोगों में आभूषण-चिकित्सा -

बड़े-बड़े अन्वेषक तथा विज्ञानवेत्ता भी हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों-ब्रह्मवेत्ताओं एवं पूर्वजों द्वारा प्रमाणित अनेक तथ्यों एवं रहस्यों को नहीं सुलझा पाये हैं।


पाश्चात्य जगत के लोग भारतीय संस्कृति के अनेक सिद्धान्तों को व्यर्थ की बकवास बोलकर कुप्रचार करते थे लेकिन अब वे ही शीश झुकाकर उन्हें स्वीकार कर किसी-न-किसी रूप में मानते भी चले जा रहे हैं।

भारतीय समाज में स्त्री-पुरुषों में आभूषण पहनने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है। आभूषण धारण करने का अपना एक महत्त्व है जो शरीर और मन से जुड़ा हुआ है। स्वर्ण के आभूषणों की प्रकृति गर्म है तथा चाँदी के गहनों की प्रकृति शीतल है। यही कारण है ग्रीष्म ऋतु में जब किसी के मुँह में छाले पड़ जाते हैं तो प्रायः ठंडक के लिए मुँह में चाँदी रखने की सलाह दी जाती है। इसके विपरीत सोने का टुकड़ा मुँह में रखा जाये तो गर्मी महसूस होगी।

स्त्रियों पर सन्तानोतपत्ति का भार होता है। उसकी पूर्ति के लिए उन्हें आभूषणों द्वारा ऊर्जा व शक्ति मिलती रहती है। सिर में सोना और पैरों में चाँदी के आभूषण धारण किये जायें तो सोने के आभूषणों से उत्पन्न हुई बिजली पैरों में तथा चाँदी आभूषणों से उत्पन्न होने वाली ठंडक सिर में चली जायेगी क्योंकि सर्दी गर्मी को खींच लेती है। इस तरह से सिर को ठंडा व पैरों को गर्म रखने के मूल्यवान चिकित्सकीय नियम का पूर्ण पालन हो जायेगा।

इसके विपरीत यदि सिर चाँदी के तथा पैरों में सोने के गहने पहने जायें तो इस प्रकार के गहने धारण करने वाली स्त्रियाँ पागलपन या किसी अन्य रोग की शिकार बन सकती हैं। अतैव सिर में चाँदी के व पैरों में सोने के आभूषण कभी नहीं पहनने चाहिए। प्राचीन काल की स्त्रियाँ सिर पर स्वर्ण के एवं पैरों में चाँदी के वजनी आभूषण धारण कर दीर्घजीवी,स्वस्थ व सुन्दर बनी रहती थीं।

यदि सिर और पाँव दोनों में स्वर्णाभूषण पहने जायें तो मस्तिष्क एवं पैरों में से एक समान दो गर्म विद्युत धारा प्रवाहित होने लगेगी जिसके परस्पर टकराव से, जिस तरह दो रेलगाड़ियों के आपस में टकराने से हानि होती है वैसा ही असर हमारे स्वास्थ्य पर भी होगा।

जिन धनवान परिवारों की महिलाएँ केवल स्वर्णाभूषण ही अधिक धारण करती हैं तथा चाँदी पहनना ठीक नहीं समझतीं वे इसी वजह से स्थायी रोगिणी रहा करती हैं।

विद्युत का विधान अति जटिल है। तनिक सी गड़बड़ में परिणाम कुछ-का-कुछ हो जाता है। यदि सोने के साथ चाँदी की भी मिलावट कर दी जाये तो कुछ और ही प्रकार की विद्युत बन जाती है। जैसे गर्मी से सर्दी के जोरदार मिलाप से सरसाम हो जाता है तथा समुद्रों में तुफान उत्पन्न हो जाते हैं। उसी प्रकार जो स्त्रियाँ सोने के पतरे का खोल बनवाकर भीतर चाँदी,ताँबा या जस्ते की धातुएँ भरवाकर कड़े,हंसली आदि आभूषण धारण करती हैं वे हकीकत में तो बहुत त्रुटि करती हैं। वे सरेआम रोगों एवं विकृतियों को आमंत्रित करने का कार्य करती हैं।

आभूषणों में किसी विपरीत धातु के टाँके से भी गड़बड़ी हो जाती है अतः सदैव टाँकारहित आभूषण पहनना चाहिए अथवा यदि टाँका हो तो उसी धातु का होना चाहिए जिससे गहना बना हो।

विद्युत सदैव सिरों तथा किनारों की ओर से प्रवेश किया करती है। अतः मस्तिष्क के दोनों भागों को विद्युत के प्रभावों से प्रभावशाली बनाना हो तो नाक और कान में छिद्र करके सोना पहनना चाहिए। कानों में सोने की बालियाँ अथवा झुमके आदि पहनने से स्त्रियों में मासिक धर्म संबंधी अनियमितता कम होती है, हिस्टीरिया रोग में लाभ होता है तथा आँत उतरने अर्थात् हार्निया को रोग नहीं होता है।

नाक में नथुनी धारण करने से नासिका संबंधी रोग नहीं होते तथा सर्दी-खाँसी में राहत मिलती है। पैरों की अँगुलियों में चाँदी की बिछिया पहनने से स्त्रियों में प्रसवपीड़ा कम होती है, साइटिका रोग एवं दिमागी विकार दूर होकर स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। पायल पहनने से पीठ, एड़ी एवं घुटनों के दर्द में राहत मिलती है, हिस्टीरिया के दौरे नहीं पड़ते तथा श्वास रोग की संभावना दूर हो जाती है। इसके साथ ही रक्तशुद्धि होती है तथा मूत्ररोग की शिकायत नहीं रहती।

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