हमारे देश की भारी जनसँख्या मधुमेह (Diabetes) बीमारी से पीड़ित है -एक आयुर्वेदिक पौधा है जो इस खतरनाक बीमारी से राहत दिलाने में अहम भूमिका निभाता है और इस पौधे का नाम है -स्टीविया
स्टीविया (मधुरगुणा) इसमें मधुमेह तक मिटाने का गुण है। अब इसने चीनी की जगह लेनी शुरू कर दी है। इससे तैयार उत्पाद न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि दिल के रोग और मोटापे से पीड़ित लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं। यही नहीं इसके पौधे में कई औषधीय व जीवाणुरोधी गुण हैं-
हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर (आइएचबीटी) ने 2000 में इसका अनुसंधान व शोध कार्य शुरू किया था। इसके पत्तों को सीधे उपभोक्ताओं को देना संभव नहीं था, इसलिए संस्थान ने इसी साल इसके ऐसे उत्पाद बाजार में उतारे, जिन्हें सीधे प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके उत्पाद आइपीआर (इनटेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट) संरक्षण प्राप्त हैं। संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ.अनिल सूद ने बताया कि स्टीविया की कई प्रजातियां विकसित की गई हैं। इसके बाद प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी विकसित की गई और इस टेक्नोलॉजी का पेटेंट करवाया गया है।
चीनी विभिन्न रसायनों से गुजरने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानि-कारक है, जबकि स्टीविया एस्ट्रेसी कुल का बहुवर्षीय शाकीय पौधा है, जिससे मधुमेह, दिल के रोग और मोटापे में लाभ मिलता है। इसका प्रयोग स्वाद बढ़ाने, हर्बल चाय और पेय में किया जाता है। यह शरीर में शर्करा स्तर को प्रभावित नहीं करता-
बाजार में स्टीविया(madhurguna) पाउडर डिप पैकेट में उपलब्ध है। इसका मूल्य 100 रुपये प्रति पैकेट है। यह पानी में शीघ्र ही घुल जाता है। इसे हिम स्टीविया, जीरो क्लोरीज व स्टीविया स्वीटर के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा स्टीविया गोलियां भी बाजार में उपलब्ध हैं-
स्टीविया शाकीय पौधा है। इसको खेत में उगाया जाता है और इसकी पत्तियों का उपयोग होता है। आइएचबीटी ने इसकी सुधरी हुई संकर प्रजातियां विकसित की हैं, जिन्हें बीज से उगाया है। व्यावसायिक तौर पर इस पौधे की पत्तियों से स्टीवियोसाइड, रेबाडियोसाइड व यौगिकों के मिश्रण को निष्पादन कर उपयोग में लाया जाता है। वैज्ञानिकों ने इसके परिशोधन करने के लिए ऑन विनिमन रेजिन एवं पोलिमेरिक एडजौंरेंट रेजिन प्रक्रियाओं का विकास किया है-
दक्षिण अमेरिका के पौध विविधता केंद्र में इस पौधे की उत्पत्ति हुई थी। जापान, चीन, ताइवान, थाईलैंड, कोरिया, मैक्सिको, मलेशिया, इंडोनेशिया, तंजानिया, कनाडा व अमेरिका में इसकी खेती जारी है।
भारत में साल 2000 से इसकी व्यावसायिक खेती शुरू हुई।
स्टीविया की फसल को बहुवर्षीय फसल के रूप में उगाया जा सकता है लेकिन यह सूखे को सहन नहीं करसकती। इसको बार-बार सिंचाई की जरूरत होती है। पहली सिंचाई के दो या तीन दिन के बाद दूसरी बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है।
डायबिटीज के मरीजों के लिए मीठा खाना जहर नहीं बनेगा बशर्ते वह मीठा खाने के तुरंत बाद आयुर्वेदिक पौधे स्टीविया की कुछ पत्तियों को चबा लें। गन्ने से तीन सौ गुणा अधिक मीठा होने के बावजूद स्टीविया पौधे फैट व शुगर से फ्री है। इतना अधिक मीठा होने के बावजूद यह शुगर को कम तो करता ही है साथ ही इसे रोकने में भी सहायक है।
खाना खाने से बीस मिनट पहले स्टीविया की पत्तियों का सेवन अत्यधिक फायदेमंद होता है। अद्भुत गुणों का संगम आयुर्वेदिक पौधा घर में भी लगाया जा सकता है। एक बार लगाया गया पौधा पांच वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है-
स्टीविया का पौधा मधुमेह रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। स्टीविया बहुत मीठा होता है लेकिन शुगर फ्री होता है। स्टीविया खाने से पैंक्रियाज से इंसुलिन आसानी से मुक्त होता है।
आपको दूर करना हो शूगर या फिर मोटापा या आ रही हो कैलोरी की दिक्कत तीनों मर्ज में स्टीविया का करेंगे यूज तो होगा लाभ भरपूर।
कुछ यहीं कहना है आयुर्वेद चिकित्सकों का, उनकी माने तो यदि रोजाना स्टीविया के चार पत्तों का चायपत्ति के रूप में सेवन किया जाए तो यह रामबाण की तरह साबित होगा।
मौजूदा समय में शुगर, मोटापा, कैलोरी आदि रोग आम हो चुके है, रोगियों की संख्या भी बढ़ने लगी है। रोग से निजात पाने को पीड़ित लोग उपचार के लिए अंग्रेजी दवाओं का सहारा ले रहे है, तो दूसरी ओर कई तरह के परहेज कर राहत पाने के प्रयास करते है। किंतु अयुर्वेद में तीनों मर्ज के हरबल प्लांट स्टीविया पौधे का उल्लेख किया गया है, जिस पर आयुर्वेद चिकित्सकों को अभी भी विश्वास कायम है। उनकी माने तो स्टीविया साइट नाम का एक रसायन होता है, जोकि चीनी से तीन सौ गुना अधिक मीठा होता है, इसे पचाने से शरीर में एंजाइम नहीं
होता और न ही ग्लूकोस की मात्रा बढ़ती है।
अक्सर डाक्टर शुगर के मरीजों से चीनी के सेवन न करने की हिदायद देते है। ऐसे में इस बीमारी से पीड़ित काफी समय के लिए मिठास को तरस जाते है। किंतु शुगर के मरीज स्टीविया में चीनी से अधिक मिठास होने के चलते मीठास को तरसेंगे भी नहीं और इसके लगातार सेवन से शुगर पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार स्टीविया से शुगर के अलावा मोटापे से भी निजात पाई जा सकती है। मोटापे के शिकार व्यक्तियों के लिए भी यह पौधा किसी वरदान से कम नहीं है। शुगर ही मोटापे का कारण बनती दिखाई दे रही है, यदि शुगर न भी हो और इसका सेवन किया जाए तो न ही शुगर होने की नोबत बन पाएगी और न ही मोटापा हो-
आज कैलोरी की प्रोबलम भी काफी बढने लगी है ऐसे में भले ही स्टीविया चीनी से अधिक मीठा हो किंतु इसमें ग्लूकोस की मात्रा न होने के चलते इससे कैलोरी के अनियंत्रित होने की संभावना नहीं रहती। यही कारण है कि स्टीविया का मौजूदा समय में कई शुगर फ्री पदार्थो को बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाने लगा है।
स्टीविया में शुगर, मोटापा, कैलोरी को दूर करने के अलावा कई खूबियों का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है-
शक्कर से 25 गुना ज्यादा मीठा परंतु शक्कर रहित है।
15 आवश्यक खनीजों तथा विटामिन्स होते है।
पूर्णतया कैलोरी शून्य उत्पाद।
इसे पकाया जा सकता है आर्थात इसे चाय, काफी, दूध आदि के साथ उबालकर भी प्रयोग किया जा सकता है।
मधुमेय रोगियों के लिए उपयुक्त है क्योकि यह पेनक्रियाज की बीटा कोशिकाओं पर अपना प्रभाव डालकर उन्हें इन्सुलिन तैयार करने में मदद करता है।
दांतो की केवेटीज, बैक्टीरिया, सड़न आदि को भी रोकता है।
ब्लड प्रेशर में नियंत्रित करता है।
इसमें एंटी एजिंग, एंटी डैंड्रफ जैसे गुण पाये जाता है तथा नॉन फर्मन्टेबल होता है।
अमुमन, शुगर के मरीज का मीठा खाने से ग्लूकोस बढ़ता है, इसी कारण उसे तकलीफ होती है। ऐसे में यदि वह मीठे के स्थान पर स्टीविया का सेवन करता है, तो इसमें ग्लूकोस की मात्रा नहीं होती और साथ ही यह मीठे का काम भी करता है। ऐसे में इसका सेवन शुगर के रोगियों के लिए लाभकारी साबित होता है।
10 मिग्रा आंवले के जूस को 2 ग्राम हल्दी के पावडर में मिला लीजिए। इस घोल को दिन में दो बार लीजिए। इसको लेने से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है।
औसत आकार का एक टमाटर, एक खीरा और एक करेला को लीजिए। इन तीनों को मिलाकर जूस निकाल लीजिए। इस जूस को हर रोज सुबह-सुबह खाली पेट लीजिए। इससे डायबिटीज में फायदा होता है।
डायबिटीज के मरीजों के लिए सौंफ बहुत फायदेमंद होता है। सौंफ खाने से डायबिटीज नियंत्रण में रहता है। हर रोज खाने के बाद सौंफ खाना चाहिए।
मधुमेह के रोगियों को जामुन खाना चाहिए। काले जामुन डायबिटीज के मरीजों के लिए अचूक औषधि मानी जाती है। जामुन को काले नमक के साथ खाने से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है।
डायबिटीज के मरीजों को शतावर का रस और दूध का सेवन करना चाहिए। शतावर का रस और दूध को एक समान मात्रा में लेकर रात में सोने से पहले मधुमेह के रोगियों को सेवन करना चाहिए। इससे मधुमेह नियंत्रण में रहता है।
मधुमेह मरीजो को नियमित रूप से दो चम्मच नीम का रस और चार चम्मच केले के पत्ते के रस को मिलाकर पीना चाहिए।
चार चम्मच आंवले का रस, गुड़मार की पत्ती मिलाकर काढ़ बनाकर पीने मधुमेह नियंत्रण में रहता है।
गेहूं के पौधों में रोगनाशक गुण होते हैं। गेहूं के छोटे-छोटे पौधों से रस निकालकर सेवन करने से मुधमेह नियंत्रण में रहता है।
मधुमेह के रोगियों को खाने को अच्छे से चबाकर खाना चाहिए। अच्छे से चबाकर खाने से भी मधुमेह को नियंत्रण में किया जा सकता है।
मधुमेह रोगियों को नियमित व्यायाम और योगा करना चाहिए।
तुलसी का चूर्ण-100 ग्राम
आम की गुठली का चूर्ण-100 ग्राम
नीम के बीजो का चूर्ण-100 ग्राम
मेथी के बीजों का चूर्ण-100
तेजपान की का चूर्ण-100 ग्राम
करेले के बीजों का चूर्ण-100 ग्राम
गुडमार का चूर्ण -100 ग्राम
कासनी चूर्ण-100 ग्राम
चित्रक चूर्ण-100 ग्राम
इन सभी चूर्णों को अच्छे से मिलाकर कपडे से छान कर रख लें. इसे प्रतिदिन सुबह शाम एक छोटे चम्मच की मात्रा पानी में भोजन के बाद लेने से मधुमेह को नियंत्रित रखा जा सकता है.
यह सन्देश चंद्रकांत शर्मा का मुंगेली, छत्तीसगढ़ से है. अपने इस सन्देश में चंद्रकांतजी हमें मधुमेह को नियंत्रित करने की पारंपरिक औषधि के बारे में बता रहे है. इनका कहना है कि:-
गुडमार की पत्तियाँ- 30 ग्राम
नीम की पत्तियाँ- 30 ग्राम
तुलसी की पत्तियाँ- 30 ग्राम
सदाबहार की पत्तियाँ -30 ग्राम
बेल की पत्तियाँ -30 ग्राम
जामुन गिरी- 50 ग्राम
वंशलोचन -20 ग्राम
जायफल -10 ग्राम
जावित्री -10 ग्राम
छोटी इलायची -10 ग्राम
कालीमिर्च- 30 ग्राम
तेजपत्र -20 ग्राम
करेला बीज -20 ग्राम
इन सभी को सुखाकर चूर्ण बना लें. इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में प्रातः और शाम पानी के साथ लें. अगर इस मिश्रण की गोलियाँ बनानी हो तो बबूल की गोंद का पानी मिलाकर इसकी 3-3 ग्राम की गोलियाँ बनाकर सुबह-शाम 1-1 गोली ले सकते है.
उपचार और प्रयोग-
हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर (आइएचबीटी) ने 2000 में इसका अनुसंधान व शोध कार्य शुरू किया था। इसके पत्तों को सीधे उपभोक्ताओं को देना संभव नहीं था, इसलिए संस्थान ने इसी साल इसके ऐसे उत्पाद बाजार में उतारे, जिन्हें सीधे प्रयोग में लाया जा सकता है। इसके उत्पाद आइपीआर (इनटेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट) संरक्षण प्राप्त हैं। संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ.अनिल सूद ने बताया कि स्टीविया की कई प्रजातियां विकसित की गई हैं। इसके बाद प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी विकसित की गई और इस टेक्नोलॉजी का पेटेंट करवाया गया है।
स्टीविया के गुण:-
चीनी विभिन्न रसायनों से गुजरने के कारण स्वास्थ्य के लिए हानि-कारक है, जबकि स्टीविया एस्ट्रेसी कुल का बहुवर्षीय शाकीय पौधा है, जिससे मधुमेह, दिल के रोग और मोटापे में लाभ मिलता है। इसका प्रयोग स्वाद बढ़ाने, हर्बल चाय और पेय में किया जाता है। यह शरीर में शर्करा स्तर को प्रभावित नहीं करता-
इसके ये हैं उत्पाद:-
बाजार में स्टीविया(madhurguna) पाउडर डिप पैकेट में उपलब्ध है। इसका मूल्य 100 रुपये प्रति पैकेट है। यह पानी में शीघ्र ही घुल जाता है। इसे हिम स्टीविया, जीरो क्लोरीज व स्टीविया स्वीटर के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा स्टीविया गोलियां भी बाजार में उपलब्ध हैं-
क्या है स्टीविया:-
स्टीविया शाकीय पौधा है। इसको खेत में उगाया जाता है और इसकी पत्तियों का उपयोग होता है। आइएचबीटी ने इसकी सुधरी हुई संकर प्रजातियां विकसित की हैं, जिन्हें बीज से उगाया है। व्यावसायिक तौर पर इस पौधे की पत्तियों से स्टीवियोसाइड, रेबाडियोसाइड व यौगिकों के मिश्रण को निष्पादन कर उपयोग में लाया जाता है। वैज्ञानिकों ने इसके परिशोधन करने के लिए ऑन विनिमन रेजिन एवं पोलिमेरिक एडजौंरेंट रेजिन प्रक्रियाओं का विकास किया है-
दक्षिण अमेरिका के पौध विविधता केंद्र में इस पौधे की उत्पत्ति हुई थी। जापान, चीन, ताइवान, थाईलैंड, कोरिया, मैक्सिको, मलेशिया, इंडोनेशिया, तंजानिया, कनाडा व अमेरिका में इसकी खेती जारी है।
भारत में साल 2000 से इसकी व्यावसायिक खेती शुरू हुई।
स्टीविया की फसल को बहुवर्षीय फसल के रूप में उगाया जा सकता है लेकिन यह सूखे को सहन नहीं करसकती। इसको बार-बार सिंचाई की जरूरत होती है। पहली सिंचाई के दो या तीन दिन के बाद दूसरी बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है।
डायबिटीज के मरीजों के लिए मीठा खाना जहर नहीं बनेगा बशर्ते वह मीठा खाने के तुरंत बाद आयुर्वेदिक पौधे स्टीविया की कुछ पत्तियों को चबा लें। गन्ने से तीन सौ गुणा अधिक मीठा होने के बावजूद स्टीविया पौधे फैट व शुगर से फ्री है। इतना अधिक मीठा होने के बावजूद यह शुगर को कम तो करता ही है साथ ही इसे रोकने में भी सहायक है।
खाना खाने से बीस मिनट पहले स्टीविया की पत्तियों का सेवन अत्यधिक फायदेमंद होता है। अद्भुत गुणों का संगम आयुर्वेदिक पौधा घर में भी लगाया जा सकता है। एक बार लगाया गया पौधा पांच वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है-
स्टीविया का पौधा मधुमेह रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। स्टीविया बहुत मीठा होता है लेकिन शुगर फ्री होता है। स्टीविया खाने से पैंक्रियाज से इंसुलिन आसानी से मुक्त होता है।
आपको दूर करना हो शूगर या फिर मोटापा या आ रही हो कैलोरी की दिक्कत तीनों मर्ज में स्टीविया का करेंगे यूज तो होगा लाभ भरपूर।
कुछ यहीं कहना है आयुर्वेद चिकित्सकों का, उनकी माने तो यदि रोजाना स्टीविया के चार पत्तों का चायपत्ति के रूप में सेवन किया जाए तो यह रामबाण की तरह साबित होगा।
मौजूदा समय में शुगर, मोटापा, कैलोरी आदि रोग आम हो चुके है, रोगियों की संख्या भी बढ़ने लगी है। रोग से निजात पाने को पीड़ित लोग उपचार के लिए अंग्रेजी दवाओं का सहारा ले रहे है, तो दूसरी ओर कई तरह के परहेज कर राहत पाने के प्रयास करते है। किंतु अयुर्वेद में तीनों मर्ज के हरबल प्लांट स्टीविया पौधे का उल्लेख किया गया है, जिस पर आयुर्वेद चिकित्सकों को अभी भी विश्वास कायम है। उनकी माने तो स्टीविया साइट नाम का एक रसायन होता है, जोकि चीनी से तीन सौ गुना अधिक मीठा होता है, इसे पचाने से शरीर में एंजाइम नहीं
होता और न ही ग्लूकोस की मात्रा बढ़ती है।
अब आपको मिठास को तरसने की जरूरत नहीं:-
अक्सर डाक्टर शुगर के मरीजों से चीनी के सेवन न करने की हिदायद देते है। ऐसे में इस बीमारी से पीड़ित काफी समय के लिए मिठास को तरस जाते है। किंतु शुगर के मरीज स्टीविया में चीनी से अधिक मिठास होने के चलते मीठास को तरसेंगे भी नहीं और इसके लगातार सेवन से शुगर पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
मोटापा भी होगा दूर:-
आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार स्टीविया से शुगर के अलावा मोटापे से भी निजात पाई जा सकती है। मोटापे के शिकार व्यक्तियों के लिए भी यह पौधा किसी वरदान से कम नहीं है। शुगर ही मोटापे का कारण बनती दिखाई दे रही है, यदि शुगर न भी हो और इसका सेवन किया जाए तो न ही शुगर होने की नोबत बन पाएगी और न ही मोटापा हो-
कैलोरी भी नहीं बढती :-
आज कैलोरी की प्रोबलम भी काफी बढने लगी है ऐसे में भले ही स्टीविया चीनी से अधिक मीठा हो किंतु इसमें ग्लूकोस की मात्रा न होने के चलते इससे कैलोरी के अनियंत्रित होने की संभावना नहीं रहती। यही कारण है कि स्टीविया का मौजूदा समय में कई शुगर फ्री पदार्थो को बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाने लगा है।
खासियत क्या है इसमें :-
स्टीविया में शुगर, मोटापा, कैलोरी को दूर करने के अलावा कई खूबियों का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है-
शक्कर से 25 गुना ज्यादा मीठा परंतु शक्कर रहित है।
15 आवश्यक खनीजों तथा विटामिन्स होते है।
पूर्णतया कैलोरी शून्य उत्पाद।
इसे पकाया जा सकता है आर्थात इसे चाय, काफी, दूध आदि के साथ उबालकर भी प्रयोग किया जा सकता है।
मधुमेय रोगियों के लिए उपयुक्त है क्योकि यह पेनक्रियाज की बीटा कोशिकाओं पर अपना प्रभाव डालकर उन्हें इन्सुलिन तैयार करने में मदद करता है।
दांतो की केवेटीज, बैक्टीरिया, सड़न आदि को भी रोकता है।
ब्लड प्रेशर में नियंत्रित करता है।
इसमें एंटी एजिंग, एंटी डैंड्रफ जैसे गुण पाये जाता है तथा नॉन फर्मन्टेबल होता है।
स्टीविया के सेवन से नहीं बढ़ता ग्लूकोस:-
अमुमन, शुगर के मरीज का मीठा खाने से ग्लूकोस बढ़ता है, इसी कारण उसे तकलीफ होती है। ऐसे में यदि वह मीठे के स्थान पर स्टीविया का सेवन करता है, तो इसमें ग्लूकोस की मात्रा नहीं होती और साथ ही यह मीठे का काम भी करता है। ऐसे में इसका सेवन शुगर के रोगियों के लिए लाभकारी साबित होता है।
मधुमेह के लिए अन्य घरेलू उपचार :-
10 मिग्रा आंवले के जूस को 2 ग्राम हल्दी के पावडर में मिला लीजिए। इस घोल को दिन में दो बार लीजिए। इसको लेने से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है।
औसत आकार का एक टमाटर, एक खीरा और एक करेला को लीजिए। इन तीनों को मिलाकर जूस निकाल लीजिए। इस जूस को हर रोज सुबह-सुबह खाली पेट लीजिए। इससे डायबिटीज में फायदा होता है।
डायबिटीज के मरीजों के लिए सौंफ बहुत फायदेमंद होता है। सौंफ खाने से डायबिटीज नियंत्रण में रहता है। हर रोज खाने के बाद सौंफ खाना चाहिए।
मधुमेह के रोगियों को जामुन खाना चाहिए। काले जामुन डायबिटीज के मरीजों के लिए अचूक औषधि मानी जाती है। जामुन को काले नमक के साथ खाने से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित होती है।
डायबिटीज के मरीजों को शतावर का रस और दूध का सेवन करना चाहिए। शतावर का रस और दूध को एक समान मात्रा में लेकर रात में सोने से पहले मधुमेह के रोगियों को सेवन करना चाहिए। इससे मधुमेह नियंत्रण में रहता है।
मधुमेह मरीजो को नियमित रूप से दो चम्मच नीम का रस और चार चम्मच केले के पत्ते के रस को मिलाकर पीना चाहिए।
चार चम्मच आंवले का रस, गुड़मार की पत्ती मिलाकर काढ़ बनाकर पीने मधुमेह नियंत्रण में रहता है।
गेहूं के पौधों में रोगनाशक गुण होते हैं। गेहूं के छोटे-छोटे पौधों से रस निकालकर सेवन करने से मुधमेह नियंत्रण में रहता है।
मधुमेह के रोगियों को खाने को अच्छे से चबाकर खाना चाहिए। अच्छे से चबाकर खाने से भी मधुमेह को नियंत्रण में किया जा सकता है।
मधुमेह रोगियों को नियमित व्यायाम और योगा करना चाहिए।
मधुमेह को नियंत्रण में रखने के लिए:-
तुलसी का चूर्ण-100 ग्राम
आम की गुठली का चूर्ण-100 ग्राम
नीम के बीजो का चूर्ण-100 ग्राम
मेथी के बीजों का चूर्ण-100
तेजपान की का चूर्ण-100 ग्राम
करेले के बीजों का चूर्ण-100 ग्राम
गुडमार का चूर्ण -100 ग्राम
कासनी चूर्ण-100 ग्राम
चित्रक चूर्ण-100 ग्राम
इन सभी चूर्णों को अच्छे से मिलाकर कपडे से छान कर रख लें. इसे प्रतिदिन सुबह शाम एक छोटे चम्मच की मात्रा पानी में भोजन के बाद लेने से मधुमेह को नियंत्रित रखा जा सकता है.
एक और नुस्खा :-
यह सन्देश चंद्रकांत शर्मा का मुंगेली, छत्तीसगढ़ से है. अपने इस सन्देश में चंद्रकांतजी हमें मधुमेह को नियंत्रित करने की पारंपरिक औषधि के बारे में बता रहे है. इनका कहना है कि:-
गुडमार की पत्तियाँ- 30 ग्राम
नीम की पत्तियाँ- 30 ग्राम
तुलसी की पत्तियाँ- 30 ग्राम
सदाबहार की पत्तियाँ -30 ग्राम
बेल की पत्तियाँ -30 ग्राम
जामुन गिरी- 50 ग्राम
वंशलोचन -20 ग्राम
जायफल -10 ग्राम
जावित्री -10 ग्राम
छोटी इलायची -10 ग्राम
कालीमिर्च- 30 ग्राम
तेजपत्र -20 ग्राम
करेला बीज -20 ग्राम
इन सभी को सुखाकर चूर्ण बना लें. इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में प्रातः और शाम पानी के साथ लें. अगर इस मिश्रण की गोलियाँ बनानी हो तो बबूल की गोंद का पानी मिलाकर इसकी 3-3 ग्राम की गोलियाँ बनाकर सुबह-शाम 1-1 गोली ले सकते है.
उपचार और प्रयोग-
No comments:
Post a Comment