Tuesday, October 20, 2015

थायराइड की जांच कब कराये -

प्रत्येक व्यक्ति को पैंतीस वर्ष के बाद प्रत्येक पांच वर्षों में  एक बार स्वयं के थायराइड ग्रंथि की कार्यकुशलता की जांच अवश्य ही करवा लेनी चाहिए ,खासकर उनलोगों में  जिनमें इस समस्या के होने की संभावना अधिक हो उन्हें अक्सर जांच करवा लेनी चाहिए -


हायपो-थायराईडिज्म महिलाओं में 60  की उम्र को पार कर जाने पर अक्सर देखा जाता है ,जबकि हायपर-थायराईडिज्म 60 से ऊपर की महिलाओं और पुरुषों दोनों में  ही पाया जा सकता है I हाँ ,दोनों ही स्थितियों में रोगी  का  पारिवारिक इतिहास अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू होता है |


थायराइड नेक-टेस्ट क्या है :-


आईने में  अपने गर्दन के सामने वाले हिस्से पर अवश्य गौर करें और यदि आपको कुछ अलग सा महसूस हो रहा हो तो चिकित्सक से अवश्य ही परामर्श लें | अपनी गर्दन को पीछे की और झुकायें,थोड़ा पानी निगलें और कॉलर की हड्डी के ऊपर एडम्स-एप्पल से नीचे कोई उभार नजर आये तो इस प्रक्रिया को  एक दो बार दुहरायें और तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें |


थायराइड की समस्या को कैसे जाने :-



यदि आपके चिकित्सक को आपके थायराइड ग्रंथि से सम्बंधित किसी समस्या से पीड़ित होने का शक उत्पन्न होता है तो आपके रक्त की जांच ही एकमात्र   सरल उपाय है |

टी .एस .एच . (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) के स्तर की जांच इस में महत्वपूर्ण मानी जाती है | टी .एस .एच. (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) एक मास्टर हार्मोन  है जो थायराईड ग्रंथि पर अपना नियंत्रण बनाए रखता है | यदि टी. एस .एच .(थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) का स्तर अधिक है तो इसका मतलब है आपकी थायराइड ग्रंथि कम काम (हायपो-थायराडिज्म ) कर रही है   और इसके विपरीत  टी. एस .एच  (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) का स्तर कम होना थायराइड ग्रंथि के हायपर-एक्टिव होने (हायपर-थायराईडिज्म) की स्थिति की और इंगित करता  है | चिकित्सक इसके अलावा आपके रक्त में थायराइड हारमोन टी .थ्री .एवं टी .फोर . की जांच भी करा सकते है |


हाशिमोटो-डिजीज के कारण उत्पन्न हायपो -थारायडिज्म क्या है:-



हायपो -थारायडिज्म का एक प्रमुख कारण हाशिमोटो-डिजीज  होता है,यह एक ऑटो-इम्यून-डीजीज है जिसमें शरीर खुद ही थायराइड ग्रंथि को नष्ट करने लग जाता है जिस कारण  थायराइड ग्रंथि “थायराक्सिन”  का निर्माण नहीं कर पाती है | इस रोग का पारिवारिक इतिहास भी मिलता है |


हायपो-थायराईडिज्म के अन्य कारण क्या हैं:-



पीयूष ग्रंथि (PITUITARY GLAND )  टी. एस .एच (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) को उत्पन्न करती है जो थायराइड की कार्यकुशलता के लिए जिम्मेदार होता है अतः पीयूष ग्रंथि (PITUITARY GLAND ) के पर्याप्त मात्रा में  टी. एस .एच    (थायराइड-स्टिमुलेटिंग-हारमोन ) उत्पन्न न कर पाने के कारण भी हायपो-थायराईडिज्म उत्पन्न हो सकता है | इसके अलावा थायराइड ग्रंथि पर प्रतिकूल असर डालने वाली दवाएं भी इसका कारण हो सकती हैं |

ग्रेव्स डीजीज के कारण  उत्पन्न हायपर-थायराईडिज्म क्या है :-



हायपर-थायराईडिज्म का एक प्रमुख कारण ग्रेव्स डीजीज होता हैI यह भी एक ऑटो-इम्यून डीजीज है जो थायराइड ग्रंथि पर हमला करता है  इससे थायराइड ग्रंथि से  “थायराक्सिन” हार्मोन का निर्माण बढ़ जाता है और हायपर-थायराईडिज्म की स्थिति पैदा हो जाती है जिसकी पहचान व्यक्ति की आँखों को देखकर की जा सकती है जो नेत्रगोलक से बाहर की ओर निकली सी प्रतीत होती हैं |

थायराइड ग्रंथि की गड़बड़ी से क्या उपद्रव पैदा हो सकते हैं:-



इस ग्रंथि की कार्यकुशलता में  आयी गड़बड़ी को जान-बूझकर अनदेखा कर देने पर हायपो -थारायडिज्म की स्थिति में रक्त में  कोलेस्टरोल की मात्रा बढ़ जाती है, फलस्वरूप व्यक्ति के स्ट्रोक या हार्ट-एटैक से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है | कई बार हायपो -थारायडिज्मकी स्थिति में रोगी में  बेहोशी छा  सकती है तथा शरीर का तापक्रम खतरनाक  स्तर तक गिर जाता है|


योग के जरिए भी थायराइड से बचा जा सकता है। खासकर कपालभाती करने से थायराइड की समस्या से निजात पाया जा सकता है।


ज्यादातर मामलों में थायराइड या इसके संक्रमति भाग को निकालने की सर्जरी की जाती है, बाद में बची हुई कोशिकाओं को नष्ट करने या दोबारा इस समस्या के होने पर रेडियोएक्टिव आयोडीन उपचार किया जाता है।


थायराइड को सर्जरी के माध्यम से हटाते हैं और उसकी जगह मरीज को हमेशा थायराइड रिप्लेसमेंट हार्मोन लेना पड़ता है। कई बार केवल उन गांठों को भी हटाया जाता है जिनमें कैंसर मौजूद है। जबकि दोबारा होने पर रेडियोएक्टिव आयोडीन उपचार के तहत आयोडीन की मात्रा से उपचार किया जाता है।


सर्जरी के बाद रेडियोएक्टिव आयोडीन की खुराक मरीज के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि यह कैंसर की सूक्ष्म कोशिकाओं को मार देती है। इसके अलावा, ल्यूटेटियम ऑक्ट्रियोटाइड उपचार से भी इसका इलाज किया जाता है।


थायरॉइड ग्रंथि से कितने कम या ज्यादा मात्रा में हार्मोन्स निकल रहे हैं, यह खून की जांच से पता लगाया जाता है। खून की जांच तीन तरह से की जाती है, टी-3, टी-4 और टीएसएच से। इसमें हार्मोन्स के स्तर का पता लगाया जाता है। मरीज की स्थिति देखकर डॉक्टर तय करते हैं कि उसको कितनी मात्रा में दवा की खुराक दी जाए।


हायपरथायरॉइड के मरीजों को थायरॉइड हार्मोन्स को ब्लॉक करने के लिए अलग किस्म की दवा दी जाती है। हाइपोथायरॉयडिज्म का इलाज करने के लिए आरंभ में ऐल-थायरॉक्सीन सोडियम का इस्तेमाल किया जाता है, जो थायरॉइड हार्मोन्स के स्त्राव को नियंत्रित करता है। तकरीबन 90 प्रतिशत मामलों में दवा ताउम्र खानी पड़ती है। पहली ही स्टेज पर इस बीमारी का इलाज करा लिया जाए तो रोगी की दिनचर्या आसान हो जाती है।


थायराइड की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए भी कचनार का फूल बहुत ही गुणकारी है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति लगातार दो महीने तक कचनार के फूलों की सब्जी अथवा पकौड़ी बनाकर खाएं तो उन्हें आराम मिलता है।


खाने मे बैंगन, सिंघाडा, जामुन आदि बैंगनी रंग की वस्तुओं में आयोडिन होता है। पानी की कठोरता कम करने हेतु अजवाईन का नित्य प्रयोग करने व बोर की जड़ को दूध के साथ एवं विदारिकन्द की जड को दूध के साथ उबाल कर पीने एवं आयुर्वेद के सिद्धान्तों दिनचर्या, ऋतुचर्या का पालन कर एवं मानसिक तनाव से दूर रहकर थाईराइड रोग से बचा जा सकता है।


हाइपोथायरायडिज्म के लिए उपचारों में आयुर्वेदिक इलाज एक उपचार है :-



हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित लोग थकान और हार्मोनल असंतुलन  से पीड़ित होते हैं।  अगर वे खुद को पूरी तरह से ठीक करना चाहते हैं तो उनको अपने आहार पे और उनके दवाईंयों पे ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती हैं।


हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित लोगों को दूध का उपभोग करना चाहिए।

हाइपोथायरायडिज्म के उपचार में सहायता के लिए इन लोगों को कुछ विशिष्ट सब्जियां जैसे ककडी बडी मात्रा में खाने को भी कहा जाता हैं।

मूंग की दाल और चने की दाल की तरह दलहन हाइपोथायरायडिज्म के उपचार में मदद करते हैं।

चावल और जौ खाए।

योग थायरॉयड ग्रंथि को स्थिर करने में मदद करता है। सर्वांगासन और सुर्यनमस्कार जैसे विभिन्न आसन थायरॉयड ग्रंथि को पर्याप्त थायराइड हार्मोन का उत्पान करने में मदद करते हैं।

थायराइड हार्मोन का अधिक उत्पादन करने में प्राणायाम थायरॉयड ग्रंथि को मदद करता है।

गोक्षुरा, ब्राम्ही,जटामासी,पुनरवना जैसी कई जड़ी बूटियाँ हाइपोथायरायडिज्म के लिए आयुर्वेदिक इलाज में उपयोग की जाती हैं।

आयोडीन की कमी के कारण हाइपोथायरायडिज्म होता हैं। आयोडीन की उच्च मात्रा होनें वाले खाद्य पदार्थ खाने सें इस हालत में सुधार होने में मदद मिलेगी।

हायपोथायरायडिज्म के लिए आयुर्वेदिक इलाज में महायोगराज गुग्गुलु और अश्वगंधा  के साथ  भी इलाज किया जाता हैं।

उचित उपचार  और एक उचित आहार के साथ नियमित रूप से व्यायाम की मदद के साथ हाइपो थायरायडिज्म से पीड़ित लोग जल्दी ठीक हो सकते हैं।


पीठ पे कूबड़ निकलना :-



माँसपेशियों में कमजोरी आने लगती है, हड्डियाँ सिकुड़कर व्यक्ति की ऊँचाई कम होकर कूबड़ निकलता है। कम आगे की ओर झुक जाती है। इन सभी समस्याओं से बचने के लिए नियमित रक्त परीक्षण करने के साथ रोगी को सोते समय शवासन का प्रयोग करते हुए तकिए का उपयोग नहीं करना चाहिए। उसी प्रकार सोते-सोते टीवी देखने या किताब पढ़ने से बचना चाहिए। भोजन में हरी सब्जियों का भरपूर प्रयोग करें और आयो‍डीन युक्त नमक का प्रयोग भोजन में करें।

नोट :-सभी लोगो को चाहिए कि आयुर्वेद या होमियोपेथी तथा प्राकतिक चिकित्सा और योग द्वारा ही निदान कराए

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