Thursday, September 24, 2015

दूर्वा घास भी रक्खे आपको स्वस्थ -

दूर्वा घास यानी की दूब घास का महत्व :-
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कहा जाता है कि समुद्र-मंथन के समय जब देवतागण अम्रत-कलश को ले कर जा रहे थे तो अम्रत-कलश से छलक कर कुछ बूंद प्रथ्वी के दूर्वा घास पर गिर गई थी इसलिए दूर्वा घास अमर हो गई -दूर्वा को बारह साल आप उखाड़ के  अलग रख दे और बारह साल बाद भी अगर मिटटी में लगा दे तो भी ये पुनर्जीवित हो  जाती  है - जबकि और किसी वनस्पति में येसा नहीं है -


भगवान् कृष्ण ने भी गीता में कहा है जो भी भक्ति के साथ एक दूर्वा पत्ती,एक फूल,एक फल,या पानी के साथ मेरी पूजा करता है में उसे दिल से स्वीकार करता हूँ -


यह घास बारहमासी है और तेजी से बढ़ता है गहरे हरे रंग की होती है इस घास को पूरी तरह उखाड़ लेने के बाद भी वापस जल्दी ही दुबारा उग आती है - इस तरह ..इसका बार-बार अंकुरित होना -जीवन के उत्थान का एक शक्तिशाली प्रतीक , नवीकरण , पुनर्जन्म और प्रजनन क्षमता को परिलक्षित करता है-


भगवान गणेश और विश्व पालक नारायण की पूजा में -दूर्वा घास , आवश्यक तौर पर इस्तेमाल किया जाता है- लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे हिन्दू सनातन धर्म में किसी भी परंपरा को बनाने से पीछे उसका एक ठोस वैज्ञानिक आधार हुआ करता है-और दूर्वा घास के साथ भी यही है-


पवित्र दूर्वा घास का आध्यात्मिक और औषधीय महत्व यह प्रत्येक और प्राचीन हिंदू धर्म में हर रस्म न केवल आध्यात्मिक महत्व का है , लेकिन यह भी बहुत हमारे भौतिक जीवन में महत्व है कि यह भी रहते उदाहरणों में से एक है . हिंदू अनुष्ठान में प्राचीन काल से, दूर्वा घास एक महत्व पूर्ण भूमिका निभाता है. घास से बने छल्ले अक्सर या तो होमा की रस्म शुरू करने से पहले पहने जाते हैं - प्रसाद आग के लिए - और पूजा . घास प्रतिभागियों पर एक सफ़ाई प्रभाव माना जाता है . घास भी गणेश मंदिरों में एक भेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है -


हमारे देश भारत में दूर्वा घास को पवित्र माना जाता है क्योंकि हिन्दूओं के लगभग हर पूजा में दूर्वा घास का इस्तेमाल किया जाता है, विशेषकर भगवान गणेश की पूजा तो बिना दूर्वा घास के हो ही नहीं सकता।


इन सबके अलावा दूर्वा घास का एक अलग ही पहलू है। आयुर्वेदिक दवा बनाने में दूर्वा घास का प्रयोग किया जाता है। दूर्वा घास कैल्सियम, फॉस्फोरस, फाइबर, पोटाशियम, प्रोटीन का स्रोत है। इसके अलावा स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी इसका योगदान अतुलनीय है।


दूर्वा घास ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में मदद करती है। कई प्रकार के अनुसंधान से यह पता चला है कि दूर्वा घास में ग्लासेमिक (रक्त में शुगर और ग्लूकोज़ होना) गुण होता है यानि इसमें रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को कम करने की क्षमता होती है। जिसके कारण इससे संबंधित बीमारियाँ जैसे मधुमेह, से लड़ने में कुछ हद तक मदद करती है।


दूर्वा घास शरीर में प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टेम) को उन्नत करने में भी सहायता करती है। इसमें एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबायल (रोगाणुरोधी-बीमारी को रोकने की क्षमता) गुण होने के कारण यह शरीर के किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है।


दूर्वा घास फ्लेवनाइड का प्रधान स्रोत होता है, जिसके कारण यह अल्सर को रोकने में मदद करती है। यह सर्दी-खांसी के बीमारी से भी लड़ने में मदद करती है, क्योंकि इसके सेवन से बलगम कम होता है।


यह मसूड़ों से रक्त बहने और मुँह से दुर्गंध निकलने की समस्या से भी राहत दिलाती है। दूर्वा घास त्वचा संबंधी समस्या से भी राहत दिलाने में सहायता करती है। इसमें एन्टी-इन्फ्लैमटेरी (सूजन और जलन को कम करता है), एन्टीसेप्टिक (रोगाणु को रोकने की क्षमता) गुण होने के कारण त्वचा संबंधी कई समस्याओं, जैसे- खुजली, त्वचा पर चकत्ते और एक्जिमा आदि समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करती है।


दूर्वा घास को हल्दी के साथ पीसकर पेस्ट बनाकर त्वचा के ऊपर लगाने से त्वचा संबंधी समस्याओं से कुछ हद तक राहत मिल सकती है। कुष्ठ रोग और खुजली जैसी समस्याओं से राहत दिलाने में भी सहायता करती है।


दूर्वा घास रक्त को शुद्ध करने में अहम् भूमिका निभाती है। यह रक्त की क्षारियता को बनाये रखने में मदद करती है। यह लाल रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने में मदद करती है जिसके कारण हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है। जब किसी दुर्घटना के कारण, अत्यधिक मासिक स्राव या नाक से रक्त बहने के कारण रक्त की कमी हो जाती है तो यह उस कमी को पूरा करने में मदद करती है।


दूर्वा घास हृदय के स्वास्थ्य को उन्नत करने में भी मदद करती है क्योंकि यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में अहम् भूमिका निभाती है।


दूर्वा घास महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं, विशेषकर यू.टी.आई-यूरेनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (मूत्र मार्ग संक्रमण) के उपचार में प्रभावकारी रूप से काम करती है।


महिलाओं में बवासीर और सफ़ेद योनि स्राव जैसी समस्याएं आम होती हैं, इससे राहत पाने के लिए दही के साथ दूर्वा घास को मिलाकर खा सकते हैं।जो माँ बच्चों को दूध पिला रही हैं उनके लिए भी लाभकारी होता है क्योंकि यह प्रोलेक्टिन हॉर्मोन को उन्नत करने में भी मदद करती है। साथ ही पी.सी.ओ.एस. यानि पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (सेक्स हॉर्मोन में असंतुलन) के खतरे को कम करने में भी प्राकृतिक रूप से सहायता करती है।


दूर्वा घास पेट संबंधी समस्या में भी अहम् भूमिका निभाती है। अनियोजित जीवनशैली के कारण हजम की समस्या भी आम बन गई है। लेकिन दूर्वा घास के लगातार सेवन से पेट की बीमारी का खतरा कुछ हद तक कम होने के साथ हजम शक्ति को भी उन्नत करती है। कब्ज़ से राहत दिलाने में भी मदद करती है। यह प्राकृतिक रूप से शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करती है और एसिडटी से भी राहत दिलाती है।


दूर्वा घास पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण शरीर को सक्रिय और ऊर्जायुक्त बनाये रखने में
बहुत सहायता करती है। यह अनिद्रा रोग, थकान, तनाव जैसे रोगों में प्राकृतिक उपचार के रूप में प्रभावकारी साबित हुआ है। इसके नियमित सेवन से शरीर और मन में नया जीवन लौट आता है।


उपचार और प्रयोग-

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