Friday, September 18, 2015

आक के विभिन्न उपयोग-

बहुत सी चीजे प्रकति ने हमें दी है जो हमारे ही आस-पास मौजूद है परन्तु जानकारी के अभाव में हम उसकी विशेषताओं से अनजान है इसी में एक नाम है मदार ( आक ) का भी है -



आक के सभी अंग जड़, पत्ते, फूल एवं दूध औषधि के रूप में बहुत उपयोगी होते हैं। आक के जड़ की छाल तिक्त, पाचक, दीमक, वामक एवं बल्य रसायन युक्त होती है। इसके पत्तों एवं डंठलों में कैलॉट्रोपिन तथा कैलॉट्रोपेगिन रसायन पाए जाते हैं।

आक के सभी अंग मोम जैसी सफेद परत से ढंके रहते हैं। इसके सभी अंगों से सफेद दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है। जिसे आक का दूध कहते हैं। आक प्रायः दो प्रकार का होता है लाल तथा सफेद। लाल आक आसानी से सब जगह पाया जाता है। यों तो यह पौधा वर्ष भर फलता−फूलता है। परन्तु सर्दियों के मौसम में यह विशेष रूप से बढ़ता है।

चोट−मोच, जोड़ों की सूजन (शोथ) में आक के दूध में नमक मिलाकर लगाना चाहिए।

आक के दूध को हल्दी और तिल के साथ उबालकर मालिश करने से आम -वात, त्वचा रोग, दाद, छाजन आदि ठीक होता है।

आक की छाल के प्रयोग से पाचन संस्थान मजबूत होता है।

अतिसार और आव होने की स्थिति में भी आक की छाल लाभदायक सिद्ध होती है। इससे रोगी को वमन की आशंका भी कम होती है। मरोड़ के दस्त होने पर आक के जड़ की छाल 200 ग्राम, जीरा तथा जवाखार 100−100 ग्राम और अफीम 50 ग्राम सबको महीन चूर्ण करके पानी के साथ गीला करके छोटी−छोटी गोलियां बना लें। रोगी को एक−एक गोली दिन में तीन बार दें इससे तुरन्त लाभ होगा।

त्वचीय रोगों के इलाज में आक विशेष रूप से उपयोगी होता है। लगभग सभी त्वचा रोगों में आक की छाल को पानी में घिसकर प्रभावित भाग पर लगाया जाता है। यदि त्वचा पर खुजली अधिक हो तो छाल को नीम के तेल में घिसकर लगाया जा सकता है।

श्वेत कुष्ठ में भी इसके प्रयोग से फायदा मिलता है। आक के सूखे पत्तों का चूर्ण श्वेत कुष्ठ प्रभावित स्थानों पर लगाने से तुरन्त लाभ मिलता है। इस चूर्ण को किसी तेल या मलहम में मिलाकर भी लगाया जा सकता है


बिच्छू के काटने पर विष उतारने के लिए आक की जड़ को पानी में पीसकर लेप लगाया जाता है।


कुत्ते के काट लेने पर दंश स्थान पर या काटने से बने घाव में आक का दूध अच्छी तरह भर देना चाहिए। इससे विष का प्रभाव खत्म हो जाता है और फिर कोई परेशानी नहीं होती।


आक के पत्तों का चूर्ण लगाने से पुराने से पुराना घाव भी ठीक हो जाता है। कांटा, फांस आदि चुभने पर आक के पत्ते में तेल चुपड़कर उसे गर्म करके बांधते हैं।


जीर्ण ज्वर के इलाज के लिए आक को कुचलकर लगभग बारह घंटे गर्म पानी में भिगो दे, इसके बाद इसे खूब रगड़−रगड़ कर कपड़े से छान कर इसका सेवन करें इससे शीघ्र फायदा पहुंचता है। मलेरिया के बुखार में इसकी छाल पान से खिलाते हैं।


किसी गुम चोट पर मोच के इलाज के लिए आक के पत्ते को सरसों के तेल में पकाकर उससे मालिश करनी चाहिए।


कान और कनपटी में गांठ निकलने एवं सूजन होने पर आक के पत्ते पर चिकनाई लगाकर हल्का गर्म करके बांधते हैं। कान में दर्द हो तो आक के सूखे पत्ते पर घी लगाकर, आग पर सेंककर उसका रस निकालकर ठंडा कर कान में एक बूंद डालें।


यदि आप सिर में फंगल संक्रमण के कारण होने वाली खुजली से परेशान हैं तो आप इसका अर्क (दुग्ध ) का स्थानिक प्रयोग करें और लाभ देखें।


मदार के पीले पके पत्तों पर घी चुपड़ कर धीमी आंच में गर्म कर उससे रस निकालकर दो से तीन बूँद कान में डालने से कान के रोगों में बड़ा ही लाभ मिलता है।


दांत के किसी भी प्रकार के दर्द में मदार के दूध में हल्का सैंधा नमक मिलाकर पीड़ा वाले स्थान पर लगा देने मात्र से दंतशूल में लाभ मिलता है।


आक के आठ से दस पत्तों में पांच से दस ग्राम काली मिर्च मिलाकर अच्छी तरह पीसकर ,थोड़ी हल्दी मिलाकर मंजन करने से दांत को मजबूती मिलती है।


आधे सिर के दर्द में पीले पड़े हुए मदार के एक से दो पत्तों के रस को नाक में टपका देने से लाभ मिलता है।


मदार के फूल को सुखाकर त्रिकटु (सौंठ ,मरीच और पिप्पली ) और यवक्षार के साथ मिलाकर बारिक पीस लें।अदरक स्वरस के साथ पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बना लें। बस तैयार हो गई गले की खरास के लिए चूसने वाली दवा इससे आपका गला ठीक रहता है और सूखी खांसी में भी लाभ मिलता है।


जौंडिस (कामला ) के रोगियों में मदार की एक कोपल को खाली पेट पान के पत्ते में रखकर चबाने से लाभ मिलता है।


यदि पुराना घाव जो ठीक न हो रहा हो या नाडी व्रण/भगंदर जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई हो तो मदार का दूध 5 से 10 मिली की मात्रा में 2.5 ग्राम दारुहरिद्रा के साथ मिलाकर रूई के बत्ती बनाकर घाव या नासूर पर लगाने मात्र से लाभ मिलता है।


पसलियों या मांसपेशियों की दर्द में मदार के दूध में थोड़ा काला तिल मिलाकर जब लेप सा तैयार हो जाए तो इसे हल्का गर्म कर दर्द वाले स्थान पर लेप कर दें और ठीक इसके ऊपर आक के पत्तों को तिल या सरसों के तेल में चुपड़कर तवे पर हल्का सा गर्म कर प्रभावित स्थान पर बाँध दे।दर्द में फौरन आराम मिलेगा।


यदि आप जोड़ों की दर्द से हों परेशान तो बस मदार के फूल को सौंठ,काली मिर्च ,हरिद्रा और नागरमोथा के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें और इसे एक से दो गोली सुबह-शाम चिकित्सक के निर्देशन में लें इससे आपको निश्चित लाभ मिलेगा।


मदार के पत्तों को कूटकर पोटली बनाकर ,घी लगाकर तवे पर गर्म कर (पोटली स्वेदन ) करने से भी दर्द में आराम मिलता है।


खुजली या दाद जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही हो तो मदार के फूलों के गुच्छों को तोडऩे से निकले दूध में नारियल का तेल मिलाकर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।


त्वचा के रोगों जैसे एक्जीमा आदि में मदार के दूध को 50 मिली की मात्रा में लेकर इससे दुगनी मात्रा में सरसों का तेल ( 100 मिली ) लेकर ,हल्दी के पाउडर 100 ग्राम और मैनसिल 10 ग्राम क़ी मात्रा में एक साथ खरल में दूध के साथ मिलाकर लेप सा बनाकर ,पुन: इसमें तिल तेल एक लीटर और इतना ही पानी मिलाकर पकायें, जब पानी उड़ जाय और तेल सिद्ध हो जाय तो इसे प्रभावित स्थान पर लगाने से चर्म रोगों में बड़ा लाभ मिलता है।


मदार के पत्तों के रस को लगभग 1000 मिली की मात्रा में लेकर कच्ची हल्दी का रस निकालकर 250 मिली की मात्रा में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं ,जब तेल शेष रहे तो इसे छान कर पुराने से पुराने घाव जिससे मवाद आ रहा हो में लगायें और लाभ देखें


आग से जले हुए घाव में भी लगभग तीन ग्राम मदार के पत्तों की राख को तिल के तेल के साथ मिलाकर खरल में पीसकर इसमें 2.5 ग्राम चूने का पानी मिलाकर जले हुए स्थान पर लेपित करें इससे अग्निदग्ध व्रण में लाभ मिलता है।


मदार के दूध की 5 बूँद .कच्चे पपीते का रस 10 बूँद और चिरायता का रस 15 बूँद एक साथ गौमूत्र के साथ मिलाकर पुराने बुखार से पीड़ित रोगी में देने से लाभ मिलता है।


खांसी होने पर आक के फूलों को राब में उबालकर सेवन करने से आराम पहुंचता है।



दमे के उपचार के लिए तो आक एक रामबाण औषधि है। आक के पीले पड़े पत्ते लेकर चूना तथा नमक बराबर मात्रा में लेकर, पानी में घोलकर उसके पत्तों पर लेप करें। इन पत्तों को धूप में सुखाकर मिट्टी की हांड़ी में बंद करके उपलों की आग में रखकर भस्म बना लें। इस भस्म की दो−दो ग्राम मात्रा का दिन में दो बार सेवन करने से दमे में आश्चर्यजनक लाभ होता है। इस दवा के सेवन के साथ−साथ यह भी जरूरी है कि रोगी दही तथा खटाई का सेवन नहीं करे-

सावधानी से चिकित्सक के निर्देशन में हो तो बेहतर होगा।

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