Tuesday, June 09, 2015

रोगों का निदान चुम्बक -चिकित्सा द्वारा ....!


* केवल पृथ्वी ही नहीं, बल्कि मानव शरीर और प्रत्येक कण एक चुम्बक है। यही कारण है कि सभी जीवों के स्वास्थ्य और उनकी जीवन-शक्ति का संबंध पृथ्वी के साथ है।

* यदि हम नंगे पांव घास पर चलें तो थकावट और विषाद दूर हो जाते हैं और कुछ ही समय बाद हम भले-चंगे और प्रसन्नचित्त हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि पृथ्वी की चुम्बक शक्ति हमारे शरीर में प्रविष्ट हो जाती है।

* चुम्बक के प्रभाव की प्रक्रिया हमारा शरीर छोटी-छोटी कोशिकाओं से मिलकर बना है जो अपने-आप में नन्हे-मुन्ने चुम्बक हैं। शरीर के सभी अंगों का निर्माण इन्हीं चुम्बकीय कोशिकाओं से हुआ है और प्रत्येक अंग अपना चुम्बकीय क्षेत्र स्वयं बनाता है।

*  विभिन्न अंगों के ये चुम्बकीय क्षेत्र सदा एक-जैसे नहीं रहते बल्कि उनमें लगातार परिवर्तन होता रहता है। यह उतार-चढ़ाव इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर कितना सक्रिय है, उसे आराम मिलता है या नहीं, उस पर बाहरी प्रभाव कौन-कौन से पड़ते हैं और उसे भोजन से कितने पौष्टिक तत्व प्राप्त होते हैं। स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि अलग-अलग चुम्बकीय क्षेत्रों और विभिन्न अंगों के चुम्बकीय क्षेत्रों के बीच संतुलन बना रहे।

चुम्बक चिकित्सा संतुलन ही स्वास्थ्य का मूलाधार है:-
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* रोगों की रोकथाम के लिये आवश्यक है कि शरीर में जमें अनावश्यक तत्त्वों को बाहर निकाला जावे एवं शरीर के सभी अंग उपांगों को संतुलित रख शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित रखा जाये। जो अधिक सक्रिय हैं, उन्हें शान्त किया जावे तथा जो असक्रिय हैं, उन्हें सक्रिय किया जावे। चुम्बक का उपचार इन सभी कार्यो में प्रभावशाली होता है। शरीर में चुम्बकीय ऊर्जा का असंतुलन एवं कमी अनेक रोगों का मुख्य कारण होती है। यदि इस असंतुलन को दूर कर अन्य माध्यम से पुनः चुम्बकीय ऊर्जा उपलब्ध करा दी जावे तो रोग दूर हो सकते हैं। चुम्बकीय चिकित्सा का यहीं सिद्धान्त है।

पृथ्वी के चुम्बक का हमारे जीवन पर प्रभाव:-
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* जब तक पृथ्वी के चुम्बक का हमारी चुम्बकीय ऊर्जा पर संतुलन और नियंत्रण रहता है तब तक हम प्रायः स्वस्थ रहते हैं। जितने-जितने हम प्रकृति के समीप खुले वातावरण में रहते हैं, हमारे स्वास्थ्य में निश्चित रूप से सुधार होता है। पृथ्वी और हमारे मध्य जितने अधिक लोह उपकरण होते हैं, उतना ही कम पृथ्वी के चुम्बक से हमारा सम्पर्क रहता है। इसी कारण खुले वातावरण में विचरण करने वाले, गाँवों में रहने वाले, कुएँ का पानी पीने वाले, पैदल चलने वाले, अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ रहते हैं। जितना-जितना पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से संपर्क बढ़ता है, उतनी-उतनी शरीर की सारी क्रियायें संतुलित एवं नियन्त्रित होती है, उतने-उतने हम रोग मुक्त होते जाते हैं।

चुम्बक का शरीर पर प्रभाव:-
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* चुम्बक का थोड़ा या ज्यादा प्रभाव प्रायः सभी पदार्थो पर पड़ता है। चुम्बक की विशेषता है कि वह किसी भी अवरोधक को पार कर अपना प्रभाव छोड़ने की क्षमता रखता है। जिस प्रकार बेटरी चार्ज करने के पश्चात् पुनः उपयोगी बन जाती है, उसी प्रकार शारीरिक चुम्बकीय प्रभाव को चुम्बकों द्वारा संतुलित एवं नियन्त्रित किया जा सकता है। चुम्बक का प्रभाव हड्डी जैसे कठोरतम भाग को पार कर सकता है, अतः हड्डी सम्बन्धी दर्द निवारण में चुम्बकीय चिकित्सा रामबाण के तुल्य सिद्ध होती है। चुम्बक चिकित्सा शरीर से पीड़ा दूर करने में बहुत प्रभावशाली होती है। चुम्बक घावों को शीघ्र भरता है। रक्त संचार ठीक करता है एवं हड्डियों को जोड़ने में मदद करता है।

* रोग ग्रस्त अंग पर आवश्यकतानुसार चुम्बक का स्पर्श करने से, चुम्बकीय ऊर्जा उस क्षेत्र में संतुलित की जा सकती है। स्थायी रोगों, दर्द आदि में इससे काफी राहत मिलती हैं। चुम्बकीय उपचार करते समय इस बात का ध्यान रहे कि, रोगी को सिर में भारीपन न लगें, चक्कर आदि न आवें। ऐसी स्थिति में तुरन्त चुम्बक हटाकर धरती पर नंगे पैर घूमना चाहिये अथवा एल्यूमिनियम या जस्ते पर खड़े रहने अथवा स्पर्श करने से शरीर में चुम्बक चिकित्सा द्वारा किया गया अतिरिक्त चुम्बकीय प्रभाव कम हो जाता है।

चुम्बक का सिद्धान्त:-
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* छड़ी वाले चुम्बक को धागे से बांध सीधा लटकाने पर जो किनारा भौगोलिक उत्तर की तरफ स्थिर होता है, यानि जो पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव की तरफ आकर्षित होता है, चुम्बकीय चिकित्सा में उस ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। दूसरा किनारा उससे विपरीत यानी उत्तरी ध्रुव (True North Pole) होता है। दो चुम्बकों के विपरीत ध्रुवों में आकर्षण होता है तथा समान ध्रुव एक दूसरे को दूर फेंकते हैं। दक्षिणी ध्रुव का प्रभाव गर्मी बढ़ाना, फैलाना, उत्तेजित करना, सक्रियता बढ़ाना होता है, जबकि उत्तरी ध्रुव का प्रभाव इसके विपरीत शरीर में गर्मी कम करना, अंग सिकोड़ना, शांत करना, सक्रियता को नियन्त्रित एवं सन्तुलित करना आदि होता है।

चुम्बकीय उपचार की विधियाँ:-
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* हमारे शरीर के चारों तरफ चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र होता है। जिसे आभा मण्डल भी कहते हैं। प्रायः दाहिने हाथ से हम अधिक कार्य करते हैं। अतः दाहिने भाग में दक्षिणी ध्रुव के गुण वाली ऊर्जा तथा बांयें भाग में उत्तरी ध्रुव के गुण वाली ऊर्जा का प्रायः अधिक प्रभाव होता है। अतः चुम्बकीय ऊर्जा के संतुलन होने हेतु बायीं हथेली पर दक्षिणी ध्रुव एवं दाहिनी हथेली पर चुम्बक के उत्तरी ध्रुव का स्पर्श करने से बहुत लाभ होता है। शरीर के चुम्बक का, उपचार वाले उपकरण चुम्बक से आकर्षण होने लगता है और शरीर में चुम्बकीय ऊर्जा का संतुलन होने लगता है। परन्तु यह सिद्धान्त सदैव सभी परिस्थितियों में विशेषकर रोगावस्था में लागू हो, आवश्यक नहीं..?

*अतः स्थानीय रोगों में चुम्बकीय गुणों की आवश्यकतानुसार चुम्बकों का स्पर्श भी करना पड़ सकता है। फिर भी चुम्बकीय उपचार की निम्न तीन मुख्य विधियाँ मुख्य होती है।

* रोगग्रस्त अंग पर आवश्यकतानुसार चुम्बक का स्पर्श करने से, चुम्बकीय ऊर्जा उस क्षेत्र में संतुलित की जा सकती है। स्थायी रोगों, दर्द आदि में इससे काफी राहत मिलती हैं।

* एक्युप्रेशर की रिफलेक्सोलोजी के सिद्धान्तानुसार शरीर की सभी नाडि़यों के अंतिम सिरे दोनों हथेली एवं दोनों पगथली के आसपास होते हैं। इन क्षेत्रों को चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में रखने से वहां पर जमें विजातीय पदार्थ दूर हो जाते हैं तथा रक्त एवं प्राण ऊर्जा का शरीर में प्रवाह संतुलित होने लगता है, जिससे रोग दूर हो जाते हैं। इस विधि के अनुसार दोनों हथेली एवं दोनों पगथली के नीचे कुछ समय के लिये चुम्बक को स्पर्श कराया जाता है। दाहिनी हथेली एवं पगथली के नीचे सक्रियता को संतुलित करने वाला उत्तरी ध्रुव तथा बांयी पगथली एवं हथेली के नीचे शरीर में सक्रियता बढ़ाने वाला दक्षिणी ध्रुव लगाना चाहिये।

* चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में किसी पदार्थ अथवा द्रव्य, तरल पदार्थों को रखने से उसमें चुम्बकीय गुण प्रकट होने लगते हैं जैसे- जल, दूध, तेल आदि तरल पदार्थो में चुम्बकीय ऊर्जा का प्रभाव बढ़ाकर उपयोग करने से काफी लाभ पहुंचता है। चुम्बकीय जल का उपयोग:- चुम्बक के प्रभाव को पानी, दूध, तेल एवं अन्य द्रवों में डाला जा सकता है। शक्तिशाली चुम्बकों पर ऐसे द्रव रखने से थोड़े समय में ही उनमें चुम्बकीय गुण आने लगते हैं। जितनी देर उसको चुम्बकीय प्रभाव में रखा जाता है, चुम्बक हटाने के पश्चात् लगभग उतने लम्बे समय तक उसमें चुम्बकीय प्रभाव रहता है। प्रारम्भ के 10-15 मिनटों में 60 से 70 प्रतिशत चुम्बकीय प्रभाव आ जाता है। परन्तु पूर्ण प्रभावित करने के लिये द्रवों को कम से कम शक्तिशाली चुम्बकों के 6 से 8 घंटे तक प्रभाव में रखना पड़ता है। चुम्बक को हटाने के पश्चात् धीरे-धीरे द्रव में चुम्बकीय प्रभाव क्षीण होता जाता है।

* चुम्बकीय जल बनाने के लिये पानी को स्वच्छ कांच की गिलास अथवा बोतलों में भर, लकड़ी के पट्टे पर शक्तिशाली चुम्बकों के ऊपर रख दिया जाता है। 8 से 10 घंटे चुम्बकीय क्षेत्र में रहने से उस पानी में चुम्बकीय गुण आ जाते हैं। उत्तरी ध्रुव के सम्पर्क वाला उत्तरी ध्रुव का पानी तथा दक्षिणी ध्रुव के सम्पर्क वाला दक्षिणी ध्रुव के गुणों वाला पानी बन जाता है। दोनों के संपर्क में रखने से जो पानी बनता है उसमें दोनों ध्रुवों के गुण आ जाते है। तांबे के बर्तन में S Pole (दक्षिणी ध्रुव) तथा चांदी के बर्तन में N Pole (उत्तरी ध्रुव ) द्वारा ऊर्जा प्राप्त पानी अधिक प्रभावशाली एवं गुणकारी होता है। चुम्बकीय जल की मात्रा का सेवन रोग एवं रोगी की स्थिति के अनुसार किया जाता है। स्वस्थ व्यक्ति भी यदि चुम्बकीय जल का नियमित सेवन करें तो, शरीर की रोग निरोधक क्षमता बढ़ जाती है। रोग की अवस्थानुसार चुम्बकीय जल का प्रयोग प्रतिदिन 2-3 बार किया जा सकता है। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि चुम्बकीय प्रभाव से पानी दवाई बन जाता है। अतः उसको सादे पानी की तरह आवश्यकता से अधिक मात्रा में में नहीं पीना चाहिये। चुम्बक के अन्य उपचारों के साथ आवश्यकतानुसार चुम्बकीय पानी पीने से उपचार की प्रभावशालीता बढ़ जाती है। अतः चुम्बकीय उपचार से आधा घंटे पूर्व शरीर की आवश्यकतानुसार चुम्बकीय पानी अवश्य पीना चाहिये। चुम्बकीय जल की भांति यदि दूध को भी चंद मिनट तक चुम्बकीय प्रभाव वाले क्षेत्र में रखा जाये तो, वह शक्तिवर्द्धक बन जाता है।

* इसी प्रकार किसी भी तेल को 45 से 60 दिन तक उच्च क्षमता वाले चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र में लगातार रखने से उसकी ताकत बढ़ जाती है। ऐसा तेल बालों में इस्तेमाल करने से बालों सम्बन्धी रोग जैसे गंजापन, समय से पूर्व सफेद होना ठीक होते हैं।

* चुम्बकीय तेल की मालिश भी साधारण तेल से ज्यादा प्रभावकारी होती है। जितने लम्बे समय तक तेल को चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र में रखा जाता है, उतनी लम्बी अवधि तक उसमें चुम्बकीय गुण रहते हैं। थोड़े-थोड़े समय पश्चात् पुनः थोड़े समय के लिये चुम्बकीय क्षेत्र में ऐसा तेल रखने से उसकी शक्ति पुनः बढ़ायी जा सकती है। जोड़ों के दर्द में ऐसे तेल की मालिश अत्यधिक लाभप्रद होती है।

* दक्षिणी ध्रुव से प्रभावित दूध विकसित होते हुए बच्चों के लिये बहुत लाभप्रद होता है। दोनों ध्रुवों से प्रभावित दूध शक्तिवर्धक होता है।

* दोनों ध्रुवों से प्रभावित तेल बालों की सभी विसंगतियां दूर करता है। सिर पर लगाने अथवा मानसिक रोगों के लिये चुम्बकीय ऊर्जा से ऊर्जित नारियल का तेल तथा जोड़ों के दर्द हेतु सूर्यमुखी, सरसों अथवा तिल्ली का चुम्बकीय तेल अधिक गुणकारी होता है।

* चुम्बक से चिकित्सा दो प्रकार से की जाती है- अंग विशेष का उपचार और सामान्य उपचार।

अंग विशेष का उपचार:-
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* उपचार की इस विधि में चुम्बक का ध्रुव रोगग्रस्त अंग पर लगाया जाता है। चुम्बक चमड़ी के साथ या कपड़े के ऊपर से लगा दिया जाता है और उस पर कोई दबाव नहीं डाला जाता। यदि यह तय हो कि रोग कीटाणुओं के कारण हैं तो उत्तरी ध्रुव लगाना चाहिए अन्यथा दक्षिणी ध्रुव। यदि रोगग्रस्त अंग पर हाथ लगाने से भी पीड़ा होती हो या सूजन अथवा घाव हो या कोई फोड़ा-फुंसी हो, तो चुम्बक उसके पास ही, जहां पर पीड़ा का अनुभव न होता हो, लगा दिया जाता है। यदि यह आवश्यक पाया जाए कि दोनों ध्रुवों का प्रयोग करना चाहिए तो दोनों ध्रुव थोड़े-थोड़े फासले पर रोगग्रस्त अंग पर रख दिए जाते हैं। दूसरा तरीका यह है कि चुम्बक का एक भाग रोगग्रस्त अंग पर और दूसरा उसी अंग की ओर की हथेली या तलवे से लगा दिया जाए।

सामान्य उपचार:-
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* यह उपचार उस दशा में आवश्यक है जब रोग किसी एक अंग तक ही सीमित न हो बल्कि इतना फैल गया हो कि सारे शरीर या अधिकतर अंगों पर उसका प्रकोप हो। ऐसी दशा में चुम्बक के दोनों ध्रुव हथेलियों या तलवों के साथ लगा दिए जाते हैं। इस प्रयोजन के लिए दो चुम्बकों की आवश्यकता पड़ती है। कारण यह है कि हथेलियों और तलवों का मस्तिष्क और हृदय से संबंध होता है और स्नायुओं और रक्तवाहिनी नाड़ियों के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों से भी। वास्तव में तलवों और हथेलियों में स्नायु पुंज होते हैं और वहां तक पहुंचने वाली नाड़ियां सारे शरीर में फैली होती हैं। उनके माध्यम से चुम्बक का प्रभाव शरीर के कोने-कोने तक पहुंच जाता है। यही कारण है कि चुम्बक लगाने के लिए हथेलियां और तलवे शरीर के सबसे उपयुक्त अंग हैं।

* प्रश्न यह है कि चुम्बक हथेलियों से कब लगाए जाएं और तलवों से कब..? और फिर यह भी देखना है कि किस हथेली या तलवे पर चुम्बक का कौन सा ध्रुव लगाना चाहिए। यदि रोग शरीर के ऊपरी भाग में हो तो चुम्बक हथेलियों के नीचे रख दिए जाते हैं और यदि निचले भाग में हो तो तलवों पर चुम्बक का प्रभाव डाला जाता है। यदि सारे शरीर में या उसके अधिकतर भागों में रोग व्याप्त हो तो चुम्बक एक दिन हथेलियों के नीचे रखे जाते हैं और अगले दिन तलवों के नीचे। यदि दिन में दो बार चुम्बक लगाना आवश्यक हो तो सवेरे हथेलियों के नीचे और शाम को तलवों के नीचे लगाने चाहिए। यदि रोग बहुत बढ़ गया हो तो चुम्बक पहले हथेलियों के नीचे लगाए जाएं और उसके बाद तलवों के नीचे। रोगों की चिकित्सा चुम्बक चिकित्सा शरीर की विभिन्न व्यवस्थाओं अर्थात रक्त-संचार, स्नायु-व्यवस्था, पाचन-क्रिया, श्वास-व्यवस्था और मल-मूत्र तथा प्रजनन-व्यवस्था को नियमित करके रोगों का उपचार करती है। जब ये सारी व्यवस्थाएं नियमित रूप से चल रही हों तो मनुष्य को कोई भी आंतरिक रोग नहीं होता और वह स्वस्थ रहता है। प्रत्येक रोग या विकार उपर्युक्त व्यवस्थाओं से संबंधित है और चूंकि चुम्बक-चिकित्सा इन विकारों को दूर कर सकती है, इसलिए वह लगभग सभी रोगों के इलाज में सफल होती है।

कमर का दर्द:-
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* अक्सर लोग कमर के किसी न किसी भाग में दर्द होने की शिकायत करते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि गलत ढंग से बैठना, अचानक कोई झटका लग जाना, या कठोर परिश्रम। आराम करने से या सेंकने से पीड़ा कम होती है लेकिन नीचे झुकने आदि से बढ़ जाती है। कमर में पीड़ा गठिया या वात के कारण हो सकती है, स्पोंडिलाइटिस के कारण या रीढ़ की हड्डी के किसी टुकड़े के अपने स्थान से हिल जाने के कारण। चिकित्सा: यदि कमर के ऊपरी या निचले भाग में पीड़ा हो तो ऊपरी भाग में चुम्बक का उत्तरी ध्रुव और निचले भाग में दक्षिणी ध्रुव लगाना चाहिए। यदि दायीं या बायीं ओर पीड़ा हो तो दायीं ओर उत्तरी ध्रुव और बायीं तरफ दक्षिणी ध्रुव लगाना चाहिए। ऐसा पानी भी पिलाना चाहिए जो चुम्बक के दोनों ध्रुवों से तैयार किया गया हो। रक्त चाप रक्त चाप सामान्य- तया 60-90 से लेकर 100-140 तक होता है। इससे अधिक बढ़ जाए तो उसे उच्च और कम हो तो उसे निम्न रक्त चाप कहते हैं। रक्त चाप बढ़ने का कारण चर्बी में वृद्धि, कठोर परिश्रम, अनिद्रा, मानसिक तनाव या मोटापा हो सकता है।

चिकित्सा:-
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* यदि रक्त चाप बढ़ा हुआ हो तो ऊंची शक्ति के चुम्बक पर दोनों हथेलियां पांच छः मिनट तक रखी जाएं या मध्यम शक्ति के चुम्बकों पर दस मिनट तक। अच्छा यही रहेगा कि यह इलाज सवेरे किया जाए।

* यदि रक्त चाप कम हो तो यही इलाज ऊंची शक्ति के चुम्बकों की सहायता से पंद्रह बीस मिनट तक और मध्यम शक्ति के चुम्बकों से आधे घंटे तक किया जाए।

* बढे़ हुए रक्त चाप के लिए चुम्बकों से बने बाजूबंद मिलते हैं जिन्हें दायीं कलाई पर बांधा जाता है। उसी बाजूबंद को बायीं कलाई पर बांधा जाए तो निम्न रक्त चाप में लाभ होता है। ये बाजूबंद एक या दो घंटे तक बंधे रहने चाहिए।

* चुम्बक के दोनों धु्रवों से तैयार किया गया पानी पीने से भी रक्त चाप सामान्य हो जाता है।

पेट की पीड़ा:-
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* कई बार पेट में वायु के कारण या अंतड़ियों की मांसपेशियों में ऐंठन के कारण घोर पीड़ा होने लगती है। दबाव डालने से, मल के निकास से या वायु के निकास से रोगी को आराम मिलता है।

चिकित्सा:-
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* रोगी को प्रातः और संध्या समय दस मिनट तक अपनी दोनों हथेलियां ऊंची शक्ति के चुम्बकों पर रखनी चाहिए। उसके बाद अर्ध-चंद्राकार, चीनी मिट्टी के बने चुम्बक दोनों नासिकाओं से लगाने चाहिए। रोगी को ठंडी चीजें खानी या पीनी नहीं चाहिए और हो सके तो नहाने से भी परहेज करना चाहिए। उसे चुम्बक के दक्षिणी ध्रुव से तैयार किया गया पानी भी पीना चाहिए।

आंखों की सूजन:-
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* आंखों में कई बार सूजन हो जाती है और उनसे मवाद निकलता है। इसके कई कारण हो सकते हैं। आंखें लाल हो जाती हैं और सूजन के कारण पीड़ा भी होती है।

चिकित्सा:-
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* अर्ध-चंद्राकार, चीनी मिट्टी के बने चुम्बक दोनों आंखों से लगाने चाहिए, चाहे एक ही आंख में सूजन हो या एक में अधिक और दूसरी में कम। ये चुम्बक कई बार आठ से दस मिनट तक लगाने चाहिए। आंखों को चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से तैयार किए गए पानी से धोना चाहिए और वही पानी पीना भी चाहिए।

घट्टा :-
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* कई बार तलवों या पैर के ऊपर घट्टे बन जात है जो कांटे के सामान चुभते हैं। उनमें बड़ी पीड़ा होती है और रोगी को चलने में कष्ट का अनुभव होता है।

चिकित्सा:-
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* ऊंची या मध्यम शक्ति के चुम्बक तलवों के नीचे दिन में दो बार लगाने चाहिए। चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से तैयार किया गया पानी पीया भी जाए और उससे घट्टों को धोया भी जाए।

मधुमेह:-
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* मधुमेह दो प्रकार का होता है। एक में मूत्र में शक्कर आती है और दूसरे में केवल बहुमूत्रता होती है। पहले प्रकार के मधुमेह में बार-बार मूत्र त्याग करने की इच्छा होती है, रोगी को प्यास लगती है और वह बहुत पानी पीता है और उसके मूत्र और लहू, दोनों में शक्कर की मात्रा बढ़ जाती है। दूसरे प्रकार के मधुमेह में मूत्र तो बहुत आता है लेकिन उसमें शक्कर नहीं होती। जब हम मधुमेह की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय मुख्य रूप से पहले प्रकार के मधुमेह से होता है। मधुमेह का कारण यह है कि पैन्क्रियाज नाम की ग्रंथि ठीक से काम नहीं करती। यह रोग कई मामलों में वंशानुगत होता है।

चिकित्सा:-
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* रोगी को सवेरे दस मिनट तक अपनी हथेलियां ऊंची शक्ति के चुम्बकों पर रखनी चाहिए.
उपचार स्वास्थ्य और प्रयोग-

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