Saturday, June 27, 2015

माला का संस्कार कैसे करे -


कोई भी जप , साधना या अनुष्ठान में माला की जरुरत होती है ! प्रायः जनसाधारण बाजार से माला खरीदकर उसी से जप आरम्भ कर देते है ! ऐसी माला से जप करना निरर्थक व निषिद्ध है क्योंकि उससे कोई लाभ या सिद्धि सम्भव नहीं है -



सर्वप्रथम माला क्रय करने के बाद विधवत उसके संस्कार करना चाहिए अन्यथा जप निष्फल है !


माला संस्कार की विधि जो प्राप्त होती है उसमें कुछ न कुछ कमी अवश्य रहती है जैसे संस्कार दिया है तो प्राणप्रतिष्ठा नहीं होती , आज आप सब के लाभार्थ मैं माला संस्कार की संपूर्ण विधि पर प्रकाश डाल रहा हु आशा करता हु की साधक भाई - बहनो के कुछ काम आ जाये !



विधि :-
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साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए अब सर्व प्रथम आचमन - पवित्रीकरण करने के बाद गणेश -गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले

तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा ले ! एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा ! इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे !

अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित ( धोये ) करे !

आप सोचे-गे कि पंचगव्य क्या है ?

तो जान ले गाय का दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर यह पांच चीज गौ का ही हो उसको पंचगव्य कहते है ! पंचगव्य से माला को स्नान करना है - स्नान करते हुए अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन का उच्चारण करे !

फिर समस्य़ा हो गयी यहाँ कि यह अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन क्या है ?

तो नोट कर ले - ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !!

यह उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धोले ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक उच्चारण होगा !

माला को पंचगव्य से स्नान कराने के बाद निम्न मंत्र बोलते हुए माला को जल से धो ले -

        ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः
        भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः !!

अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन- कुमकुम आदि का तिलक करे -

     ॐ वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कल विकरणाय नमो      बलविकरणाय नमः !
     बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!

अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले -

  ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:

अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न ईशान मंत्र का १०८ बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे -

   ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदा शिवोम !!

अब साधक माला की प्राण - प्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे -

  ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः !!

अब माला को बाय हाथ में लेकर दाय हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है !

ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम जीव इह स्थितः !
ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा !
ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ !!

अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे ! इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है भाइयो !

नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करे -

   ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ साधिनी साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा !

   ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !

जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए !

गोमुख रूपी थैली ( गोमुखी ) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है !

आशा करता हु अब आप जब भी माला बाजार से ख़रीदेगे तो उपरोक्त विधान अनुसार संस्कार अवश्य करेगे !

संस्कारित माला  से ही किसी भी मन्त्र जप करने से पूर्ण-फल की प्राप्ति होती है-

जप नियम :-
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मंत्र तो हम सभी जपते है। लेकिन अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो वे मंत्र हमारे लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकते हैं।

जप तीन प्रकार का होता है- वाचिक, उपांशु और मानसिक।

वाचिक जप धीरे-धीरे बोलकर होता है। उपांशु-जप इस प्रकार किया जाता है, जिसे दूसरा न सुन सके। मानसिक जप में जीभ और ओष्ठ नहीं हिलते। तीनों जपों में पहले की अपेक्षा दूसरा और दूसरे की अपेक्षा तीसरा प्रकार श्रेष्ठ है।

प्रातःकाल दोनों हाथों को उत्तान कर, सायंकाल नीचे की ओर करके तथा मध्यान्ह में सीधा करके जप करना चाहिए। प्रातःकाल हाथ को नाभि के पास, मध्यान्ह में हृदय के समीप और सायंकाल मुँह के समानांतर में रखे। घर में जप करने से एक गुना, गौशाला में सौ गुना, पुण्यमय वन या बगीचे तथा तीर्थ में हजार गुना, पर्वत पर दस हजार गुना, नदी-तट पर लाख गुना, देवालय में करोड़ गुना तथा शिवलिंग के निकट अनंत गुना फल प्राप्त होता है। जप की गणना के लिए लाख, कुश, सिंदूर और सूखे गोबर को मिलाकर गोलियाँ बना लें।

जप करते समय दाहिने हाथ को जप माली में डाल लें अथवा कपड़े से ढँक लेना आवश्यक होता है। जप के लिए माला को अनामिका अँगुली पर रखकर अँगूठे से स्पर्श करते हुए मध्यमा अँगुली से फेरना चाहिए। सुमेरु का उल्लंघन न करें। तर्जनी न लगाएँ। सुमेरु के पास से माला को घुमाकर दूसरी बार जपें।

ध्यान रक्खे :-
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जप करते समय हिलना, डोलना, बोलना, क्रोध न करें, मन में कोई गलत विचार या भावना न बनाएँ अन्यथा जप करने का कोई भी फल प्राप्त न होगा।

शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही, एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।

यहां मंत्र जप से संबंधित 12 जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं-

१-मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।

२-मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।

३-अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।

४-मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।

५-एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें।

६ -मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।

७ -किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।

८-मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें।

९-मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।

१०-मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय।

११-मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए।

१२ -माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।

विशेष:-
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कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें।

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