एकाग्रता बढ़ाने की यह प्राचीन पद्धति है। पतंजलि ने 5000 वर्ष पूर्व इस पद्धति का विकास किया था। कुछ लोग इसे ‘त्राटक’ कहते हैं। योगी और संत इसका अभ्यास परा-मनोवैज्ञानिक शक्ति के विकास के लिये भी करते हैं। परन्तु मैने दो वर्ष तक इसका अभ्यास किया और पाया कि एकाग्रता बढ़ाने में यह काफी उपयोगी है।
इससे आत्मविश्वास पैदा होता है, योग्यता बढ़ती है, और आपके मस्तिष्क की शक्ति का विकास कई प्रकार से होता है। यह विधि आपकी स्मरण-शक्ति को तीक्ष्ण बनाती है । प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रयोग की गई यह बहुत ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पद्धति है।अब तो आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने भी यह सिद्ध कर दिया है।
दिए चित्र को आप सादे कागज़ से काले घेरे में एक छोटा सा पीला बिंदु बना के दीवाल पे नजरो के बराबर की दुरी पे स्थापित कर दे आसन लगा के बेठे तो नीचे कुछ ऊनी या कुश के आसन का प्रयोग करे आपकी अर्जित शक्तियां भूमि में प्रवेश न हो |
इसका सबसे उत्तम और अच्छा समय यह है कि इसका अभ्यास सूर्योदय के समय किया जाए। किन्तु यदि अन्य समय में भी इसका अभ्यास करें तो कोई हानि नहीं है।रात को भी शांति से किसी भी समय कर सकते है |
ध्यान रक्खे इसका शान्त स्थान में बैठकर अभ्यास करें। जिससे कोई अन्य व्यक्ति आपको बाधा न पहुँचाए।
पहला चरण :-
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स्क्रीनपर बने पीले बिंदु आरामपूर्वक देखें।
दूसरा चरण :-
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जब भी आप बिन्दु को देखें, हमेशा सोचिये-
“मेरे विचार पीत बिन्दु के पीछे जा रहे हैं”
इस अभ्यास के मध्य आँखों में पानी आ सकता है, चिन्ता न करें। आँखों को बन्द करें, अभ्यास स्थगित कर दें। यदि पुनः अभ्यास करना चाहें, तो आँखों को धीरे-से खोलें। आप इसे कुछ मिनट के लिये और दोहरा सकते हैं।
अन्त में, आँखों पर ठंडे पानी के छीटे मारकर इन्हें धो लें। एक बात का ध्यान रखें, आपका पेट खाली भी न हो और अधिक भरा भी न हो।
यदि आप चश्में का उपयोग करते हैं तो अभ्यास के समय चश्मा न लगाएँ। यदि आप पीत बिन्दु को नहीं देख पाते हैं तो अपनी आँखें बन्द करें एवं भौंहों के मध्य में चित्त एकाग्र करें । इसे अन्त:त्राटक कहते है । कम-से-कम तीन सप्ताह तक इसका अभ्यास करें। परन्तु, यदि आप इससे अधिक लाभ पाना चाहते हैं तो निरन्तर अपनी सुविधानुसार करते रहें।
उच्चता के अभ्यास के लिए हमारी दूसरी पोस्ट पे देखे -
इससे आत्मविश्वास पैदा होता है, योग्यता बढ़ती है, और आपके मस्तिष्क की शक्ति का विकास कई प्रकार से होता है। यह विधि आपकी स्मरण-शक्ति को तीक्ष्ण बनाती है । प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रयोग की गई यह बहुत ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पद्धति है।अब तो आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने भी यह सिद्ध कर दिया है।
दिए चित्र को आप सादे कागज़ से काले घेरे में एक छोटा सा पीला बिंदु बना के दीवाल पे नजरो के बराबर की दुरी पे स्थापित कर दे आसन लगा के बेठे तो नीचे कुछ ऊनी या कुश के आसन का प्रयोग करे आपकी अर्जित शक्तियां भूमि में प्रवेश न हो |
इसका सबसे उत्तम और अच्छा समय यह है कि इसका अभ्यास सूर्योदय के समय किया जाए। किन्तु यदि अन्य समय में भी इसका अभ्यास करें तो कोई हानि नहीं है।रात को भी शांति से किसी भी समय कर सकते है |
ध्यान रक्खे इसका शान्त स्थान में बैठकर अभ्यास करें। जिससे कोई अन्य व्यक्ति आपको बाधा न पहुँचाए।
पहला चरण :-
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स्क्रीनपर बने पीले बिंदु आरामपूर्वक देखें।
दूसरा चरण :-
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जब भी आप बिन्दु को देखें, हमेशा सोचिये-
“मेरे विचार पीत बिन्दु के पीछे जा रहे हैं”
इस अभ्यास के मध्य आँखों में पानी आ सकता है, चिन्ता न करें। आँखों को बन्द करें, अभ्यास स्थगित कर दें। यदि पुनः अभ्यास करना चाहें, तो आँखों को धीरे-से खोलें। आप इसे कुछ मिनट के लिये और दोहरा सकते हैं।
अन्त में, आँखों पर ठंडे पानी के छीटे मारकर इन्हें धो लें। एक बात का ध्यान रखें, आपका पेट खाली भी न हो और अधिक भरा भी न हो।
यदि आप चश्में का उपयोग करते हैं तो अभ्यास के समय चश्मा न लगाएँ। यदि आप पीत बिन्दु को नहीं देख पाते हैं तो अपनी आँखें बन्द करें एवं भौंहों के मध्य में चित्त एकाग्र करें । इसे अन्त:त्राटक कहते है । कम-से-कम तीन सप्ताह तक इसका अभ्यास करें। परन्तु, यदि आप इससे अधिक लाभ पाना चाहते हैं तो निरन्तर अपनी सुविधानुसार करते रहें।
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