प्रकति ने हमें वह सब कुछ दिया है मगर सच कहा है कि जब तक आपको किसी भी वनस्पति के गुण की जानकारी नहीं आपके लिए व्यर्थ है .लेकिन जब पलाश के गुणों के बारे में जान जायेंगे तो सच में आपका मन अंगारा हो जाएगा.
इसे ढाक ,टेशू ,पलाश,गुजराती में खाकरा,तमिल में पुगु, कतुमुसक, किन्जुल आदि नामों से पुकारते है।
पलाश के औषधीय गुण :-
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दूध के साथ प्रतिदिन एक पलाश पुष्प पीसकर दूध में मिला के गर्भवती माता को पिलायें, इससे बल-वीर्यवान संतान की प्राप्ति होती है।
अंडकोष बढ़ गया हो तो पलाश की छाल का 6 ग्राम चूर्ण पानी के साथ निगल लीजिये।
नारी को गर्भ धारण करते ही अगर गाय के दूध में पलाश के कोमल पत्ते पीस कर पिलाते रहिये तो शक्तिशाली और पहलवान बालक पैदा होगा।
यदि इसी पलाश के बीजों को मात्र लेप करने से नारियां अनचाहे गर्भ से बच सकती हैं।
पेशाब में जलन हो रही हो या पेशाब रुक रुक कर हो रहा हो तो पलाश के फूलों का एक चम्मच रस निचोड़ कर दिन में 3 बार पी लीजिये .
बवासीर के मरीजों को पलाश के पत्तों का साग ताजे दही के साथ खाना चाहिए लेकिन साग में घी ज्यादा चाहिए।
बुखार में शरीर बहुत तेज दाहक रहा हो तो पलाश के पत्तों का रस लगा लीजिये शरीर पर 15 मिनट में सारी जलन ख़त्म .
जो घाव भर ही न रहा हो उस पर पलाश की गोंद का बारीक चूर्ण छिड़क लीजिये फिर देखिये।
फील्पाँव या हाथीपाँव में पलाश की जड़ के रस में सरसों का तेल मिला कर रख लीजिये बराबर मात्रा में।फिर सुबह शाम 2-2 चम्मच पीजिये।
नेत्रों की ज्योति बढानी है तो पलाश के फूलों का रस निकाल कर उसमें शहद मिला लीजिये और आँखों में काजल की तरह लगाकर सोया कीजिए। अगर रात में दिखाई न देता हो तो पलाश की जड़ का अर्क आँखों में लगाइए।
नपुंसकता की चिकित्सा के लिए भी इसके बीज काम आते हैं। अन्य दवाओं में मिला के इसका प्रयोग होता है .
शरीर में अन्दर कहीं गांठ उभर आयी हो तो इसके पत्तों को गर्म करके बांधिए या उनकी चटनी पीस कर गरम करके उस स्थान पर लेप कीजिए।
इसके बीजों को नीबू के रस में पीस कर लगाने से दाद खाज खुजली में आराम मिलता है।
इसी पलाश से एक ऐसा रसायन भी बनाया जाता है जिसके अगर खाया जाए तो बुढापा और रोग आस-पास नहीं आ सकते।
इसके पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी के पात्र में किये गये भोजन के समान लाभ प्राप्त होते हैं।
इसका गोंद हड्डियों को मजबूत बनाता है। पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।
वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है। इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें। यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है, कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं।
महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें। अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है।
रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है।
आँख आने पर (Conjunctivitis) फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजें।
पलाश के बीजों में पैलासोनिन नामक तत्त्व पाया जाता है, जो उत्तम कृमिनाशक है। 3 से 6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें । चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरण्डी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलायें, इससे कृमि निकल जायेंगे।
बीज-चूर्ण को नींबू के रस में मिलाकर दाद पर लगाने से वह मिट जाती है।
पलाश के बीज आक (मदार) के दूध में पीसकर बिच्छूदंश की जगह पर लगाने से दर्द मिट जाता है।
नाक, मल-मूत्रमार्ग अथवा योनि द्वारा रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें।
इसे इन्ही गुणों के कारण ब्रह्मवृक्ष कहना उचित है
पलाश में- मिरस्तीक, पामिटिक, स्तीयरिक, एवं एरेकिदिक एसिड, तेल, प्रोटीन, राल, ब्यूटीन, ग्लूकोसाइड, ब्यूटेन, सल्फ्यूरीन, पालास्ट्रीन, आइसो, मोनो स्पर्मोसाइड , कारियोप्सीन , थायमीन, रिबोफ्लेवीन, सेल्यूलोज आदि रासायनिक तत्व पाए जाते हैं।
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