Saturday, December 13, 2014

रक्त विकार एक घातक रोग है....!



*अर्थात् खून की खराबी ...

* यदि समय रहते इसका उपचार न किया जाए तो कष्टदायी चर्म रोग घेर लेते हैं| इनसे व्यक्ति के मन में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है| इस रोग में छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले मिर्च, चाय, अचार, तेल, खटाई आदि का प्रयोग बंद कर देना चाहिए, तभी कोई उपचार कारगर सिद्ध होता है|
* समय से भोजन न करने, मिर्च-मसालों का अधिक प्रयोग, प्रकृति के विरुद्ध भोजन जैसे-मछली-दूध, केला- करेला, दही-नीबू, दही-शहद, शहद-नीबू आदि का सेवन, नाड़ी की दुर्बलता, कब्ज, अजीर्ण आदि कारणों से खून में खराबी पैदा हो जाती है|
* खून खराब होने पर तरह-तरह के चर्म रोग हो जाते हैं| त्वचा के ददोरे, फोड़े-फुन्सी, दाद-खाज, खुजली आदि अनेक रोग बन जाते हैं| त्वचा में खुजली होती है| चकत्ते पड़ जाते हैं| खून नीला- सा दिखाई देने लगता है| पेट साफ नहीं रहता| खांसी एवं वायु रोग का प्रकोप हो जाता है|
* करे ये उपाय ---
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* रात को गरम पानी के साथ दो हरड़ का चूर्ण लें| दिन में दो बार एक-एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी से लें|
* नीम की छाल, उसवा और कुटकी - इन तीनों का चूर्ण 3-3 ग्राम दिन में दो बार शहद के साथ चाटें|
* चोपचीनी, मंजीठ और गिलोय का चूर्ण 3-3 ग्राम फांककर ऊपर से एक गिलास दूध पी लें|
* सौंफ, गावजबां, गुलाब के फूल तथा मुलहठी - सब 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर दो कप पानी डालकर आग पर रख दें| जब पानी जलकर आधा रह जाए तो छानकर उसमें मिश्री मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें| इससे पेट साफ हो जाएगा और साफ खून बनने की क्रिया शुरू हो जाएगी|
* लौकी की सब्जी बगैर नमक के उबली हुई खाने से भी खून की खराबी दूर होती है|
* 10 ग्राम गुलकंद का सेवन दूध के साथ करें|
* नीम की छाल को पानी में घिस लें| फिर उसमें कपूर मिलाकर शरीर के रोगग्रस्त भाग पर लगाएं| शरीर पर गोमूत्र मलकर थोड़ी देर तक यों ही बैठे रहें| फिर स्नान कर लें| गोमूत्र त्वचा रोगों के लिए बहुत लाभकारी है|
* खून की खराबी दूर करने के लिए सरसों के तेल में लाल मिर्च को पीसकर डालें| फिर यथास्थान लगाएं|
* अंजीर के पत्तों को पीसकर घी में मिला लें| स्नान से पूर्व शरीर पर इसकी मालिश करें|
* चर्म रोग वाले स्थान को दिन में तीन-चार बार फिटकिरी के पानी से धोना चाहिए|
* कच्चे पपीते का रस दो चम्मच सुबह के समय सेवन करें|
* करेले का रस एक-एक चम्मच सुबह-शाम सेवन करें|
* शरीर पर मूंगफली के तेल की मालिश करें|
* पानी में लहसुन का रस दो चम्मच की मात्रा में मिलाकर पिएं|
* गाय के गोबर को निचोड़कर उसके पानी से शरीर की मालिश करें|

कुष्माण्डा (पेठा) - दुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। यह औषधि से पेठा मिठाई बनती है। इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हडा भी कहते हैं। यह कुम्हड़ा पुष्टिकारक वीर्य को बल देने वाला (वीर्यवर्धक) व रक्त के विकार को ठीक करता है एवं पेट को साफ करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। यह दो प्रकार की होती है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति ने पेठे के उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करना चाहिए।

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